[ऋषि- नृमेध आङ्गिरस । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
7919
प्रास्य धारा अक्षरन्वृष्णः सुतस्यौजसा । देवॉ अनु प्रभूषतः॥1॥
सत् - संगति बिन नहीं सवेरा हम विद्वानों का संग करें ।
विद्या से ऑचल भर - कर फिर सारी दुनियॉ की डगर धरें॥1॥
7920
सप्तिं मृजन्ति वेधसो गृणन्तः कारवो गिरा । ज्योतिर्जज्ञानमुक्थ्यम्॥2॥
पहले हम निज शक्ति बढायें विश्व - पटल पर फिर पहुँचायें ।
सबका हो कल्याण जगत में वसुधा में परिवार को पायें ॥2॥
7921
सुषहा सोम तानि ते पुनानाय प्रभूवसो । वर्धा समुद्रमुक्थ्यम्॥3॥
ज्ञान - मार्ग में आओ समझो अपना ही है पृथ्वी परिवार ।
कर्म - मार्ग पर चलें निरन्तर यह ही है संस्कृति का आधार ॥3॥
7922
विश्वा वसूनि सञ्जयन्पवस्व सोम धारया । इनु द्वेषांसि सध्रयक्॥4॥
राग - द्वेष से बचे रहें हम तब ही मञ्जिल होगी आसान ।
लक्ष्य बडा ले कर चलना है तब ही होगा दायित्व - भान ॥4॥
7923
रक्षा सु नो अररुषः स्वनात्समस्य कस्य चित् । निदो यत्र मुमुच्महे॥5॥
प्रगति चाहिए यदि जीवन में लक्ष्य एक निर्धारित कर लो ।
डगर - डगर फिर बढो निरन्तर तुम साहस का दामन धर लो॥5॥
7924
एन्दो पार्थिवं रयिं दिव्यं पवस्व धारया । द्युमन्तं शुष्ममा भर॥6॥
हे पावन पूजनीय परमेश्वर मुझको सत् - पथ पर पहुँचाओ ।
प्रभु तुम मेरे अवगुण हर लो अपना मानो मुझको अपनाओ ॥6॥
7919
प्रास्य धारा अक्षरन्वृष्णः सुतस्यौजसा । देवॉ अनु प्रभूषतः॥1॥
सत् - संगति बिन नहीं सवेरा हम विद्वानों का संग करें ।
विद्या से ऑचल भर - कर फिर सारी दुनियॉ की डगर धरें॥1॥
7920
सप्तिं मृजन्ति वेधसो गृणन्तः कारवो गिरा । ज्योतिर्जज्ञानमुक्थ्यम्॥2॥
पहले हम निज शक्ति बढायें विश्व - पटल पर फिर पहुँचायें ।
सबका हो कल्याण जगत में वसुधा में परिवार को पायें ॥2॥
7921
सुषहा सोम तानि ते पुनानाय प्रभूवसो । वर्धा समुद्रमुक्थ्यम्॥3॥
ज्ञान - मार्ग में आओ समझो अपना ही है पृथ्वी परिवार ।
कर्म - मार्ग पर चलें निरन्तर यह ही है संस्कृति का आधार ॥3॥
7922
विश्वा वसूनि सञ्जयन्पवस्व सोम धारया । इनु द्वेषांसि सध्रयक्॥4॥
राग - द्वेष से बचे रहें हम तब ही मञ्जिल होगी आसान ।
लक्ष्य बडा ले कर चलना है तब ही होगा दायित्व - भान ॥4॥
7923
रक्षा सु नो अररुषः स्वनात्समस्य कस्य चित् । निदो यत्र मुमुच्महे॥5॥
प्रगति चाहिए यदि जीवन में लक्ष्य एक निर्धारित कर लो ।
डगर - डगर फिर बढो निरन्तर तुम साहस का दामन धर लो॥5॥
7924
एन्दो पार्थिवं रयिं दिव्यं पवस्व धारया । द्युमन्तं शुष्ममा भर॥6॥
हे पावन पूजनीय परमेश्वर मुझको सत् - पथ पर पहुँचाओ ।
प्रभु तुम मेरे अवगुण हर लो अपना मानो मुझको अपनाओ ॥6॥
प्रगति चाहिए यदि जीवन में लक्ष्य एक निर्धारित कर लो ।
ReplyDeleteडगर - डगर फिर बढो निरन्तर तुम साहस का दामन धर लो॥5॥
लक्ष्य सम्मुख हो तो गति आ ही जाती है