Sunday, 25 May 2014

सूक्त - 29

[ऋषि- नृमेध आङ्गिरस । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7919
प्रास्य धारा अक्षरन्वृष्णः सुतस्यौजसा । देवॉ अनु प्रभूषतः॥1॥

सत् - संगति  बिन  नहीं  सवेरा  हम  विद्वानों  का  संग  करें ।
विद्या से ऑचल भर - कर फिर सारी दुनियॉ  की डगर धरें॥1॥

7920
सप्तिं मृजन्ति वेधसो गृणन्तः कारवो गिरा । ज्योतिर्जज्ञानमुक्थ्यम्॥2॥

पहले  हम  निज  शक्ति बढायें विश्व - पटल पर फिर पहुँचायें ।
सबका हो कल्याण जगत में वसुधा में परिवार  को  पायें ॥2॥

7921
सुषहा सोम तानि ते पुनानाय प्रभूवसो । वर्धा समुद्रमुक्थ्यम्॥3॥

ज्ञान - मार्ग  में  आओ  समझो  अपना  ही  है  पृथ्वी   परिवार । 
कर्म - मार्ग पर चलें निरन्तर यह ही है संस्कृति का आधार ॥3॥

7922
विश्वा वसूनि सञ्जयन्पवस्व सोम धारया । इनु द्वेषांसि सध्रयक्॥4॥

राग - द्वेष  से  बचे  रहें  हम  तब  ही  मञ्जिल  होगी  आसान ।
लक्ष्य बडा ले कर चलना  है  तब  ही  होगा दायित्व - भान ॥4॥

7923
रक्षा सु नो अररुषः स्वनात्समस्य कस्य चित् । निदो यत्र मुमुच्महे॥5॥

प्रगति  चाहिए  यदि  जीवन  में  लक्ष्य  एक  निर्धारित   कर लो ।
डगर - डगर फिर बढो निरन्तर तुम साहस का दामन  धर लो॥5॥

7924
एन्दो पार्थिवं रयिं दिव्यं पवस्व धारया । द्युमन्तं शुष्ममा भर॥6॥

हे  पावन  पूजनीय  परमेश्वर  मुझको  सत् - पथ  पर  पहुँचाओ ।
प्रभु तुम मेरे अवगुण हर लो अपना मानो मुझको अपनाओ ॥6॥  

1 comment:

  1. प्रगति चाहिए यदि जीवन में लक्ष्य एक निर्धारित कर लो ।
    डगर - डगर फिर बढो निरन्तर तुम साहस का दामन धर लो॥5॥

    लक्ष्य सम्मुख हो तो गति आ ही जाती है

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