[ऋषि- बिन्दु आङ्गिरस । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
7925
प्र धारा अस्य शुष्मिणो वृथा पवित्रे अक्षरन् । पुनानो वाचमिष्यति॥1॥
जग में विविध तरह के बल हैं पर अद्भुत है वाणी का वैभव ।
वाक् - शक्ति है जिसके भीतर उसका होता नहीं पराभव ॥1॥
7926
इन्दुर्हियानः सोतृभिर्मृज्यमानः कनिक्रदत् । इयर्ति वग्नुमिन्द्रियम्॥2॥
पण्डित जो प्रवचन करते हैं भाषा होती है मधुर - मनोरम् ।
जानो समझो करो उसे फिर वाणी का वैभव है अनुपम॥2॥
7927
आ नः शुष्मं नृषाह्यं वीरवन्तं पुरुस्पृहम् । पवस्व सोम धारया॥3॥
दुष्ट - दलन अति आवश्यक है हे प्रभु तुम ही रक्षा करना ।
सत्पथ पर हम चलें निरन्तर मेरा जीवन तुम ही गढना ॥3॥
7928
प्र सोमो अति धारया पवमानो असिष्यदत् । अभि द्रोणान्यासदम्॥4॥
प्रभु तुम ही सन्मार्ग दिखाना कर्म - योग की राह बताना ।
कर्मानुसार मानव फल पाता यही सीख सबको सिखलाना ॥4॥
7929
अप्सु त्वा मधुमत्तमं हरिं हिन्वन्त्यद्रिभिः। इन्दविन्द्राय पीतये॥5॥
हे परमेश्वर हे परममित्र अज्ञान - तमस को तुम्हीं मिटाना ।
हम सब को ज्ञानालोक मिले तुम ज्ञान - गली में पहुँचाना ॥5॥
7930
सुनोता मधुमत्तमं सोममिन्द्राय वज्रिणे । चारुं शर्धाय मत्सरम्॥6॥
उत्तम - भोजन फल औषधि का निज जीवन में उपयोग करें ।
तन - मन को फिर स्वस्थ बना कर चरैवेति की डगर धरें ॥6॥
7925
प्र धारा अस्य शुष्मिणो वृथा पवित्रे अक्षरन् । पुनानो वाचमिष्यति॥1॥
जग में विविध तरह के बल हैं पर अद्भुत है वाणी का वैभव ।
वाक् - शक्ति है जिसके भीतर उसका होता नहीं पराभव ॥1॥
7926
इन्दुर्हियानः सोतृभिर्मृज्यमानः कनिक्रदत् । इयर्ति वग्नुमिन्द्रियम्॥2॥
पण्डित जो प्रवचन करते हैं भाषा होती है मधुर - मनोरम् ।
जानो समझो करो उसे फिर वाणी का वैभव है अनुपम॥2॥
7927
आ नः शुष्मं नृषाह्यं वीरवन्तं पुरुस्पृहम् । पवस्व सोम धारया॥3॥
दुष्ट - दलन अति आवश्यक है हे प्रभु तुम ही रक्षा करना ।
सत्पथ पर हम चलें निरन्तर मेरा जीवन तुम ही गढना ॥3॥
7928
प्र सोमो अति धारया पवमानो असिष्यदत् । अभि द्रोणान्यासदम्॥4॥
प्रभु तुम ही सन्मार्ग दिखाना कर्म - योग की राह बताना ।
कर्मानुसार मानव फल पाता यही सीख सबको सिखलाना ॥4॥
7929
अप्सु त्वा मधुमत्तमं हरिं हिन्वन्त्यद्रिभिः। इन्दविन्द्राय पीतये॥5॥
हे परमेश्वर हे परममित्र अज्ञान - तमस को तुम्हीं मिटाना ।
हम सब को ज्ञानालोक मिले तुम ज्ञान - गली में पहुँचाना ॥5॥
7930
सुनोता मधुमत्तमं सोममिन्द्राय वज्रिणे । चारुं शर्धाय मत्सरम्॥6॥
उत्तम - भोजन फल औषधि का निज जीवन में उपयोग करें ।
तन - मन को फिर स्वस्थ बना कर चरैवेति की डगर धरें ॥6॥
आनंद दायक !!
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ReplyDeleteजग में विविध तरह के बल हैं पर अद्भुत है वाणी का वैभव ।
वाक् - शक्ति है जिसके भीतर उसका होता नहीं पराभव ॥1॥
हमारे नये प्रधानमन्त्री के पास वाकशक्ति का वरदान है