Saturday 24 May 2014

सूक्त - 30

[ऋषि- बिन्दु आङ्गिरस । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7925
प्र धारा अस्य शुष्मिणो वृथा पवित्रे अक्षरन् । पुनानो वाचमिष्यति॥1॥

जग  में  विविध  तरह  के  बल  हैं  पर अद्भुत  है वाणी का वैभव ।
वाक् - शक्ति  है  जिसके  भीतर  उसका  होता  नहीं  पराभव ॥1॥

7926
इन्दुर्हियानः सोतृभिर्मृज्यमानः कनिक्रदत् । इयर्ति वग्नुमिन्द्रियम्॥2॥

पण्डित जो  प्रवचन  करते  हैं  भाषा  होती  है  मधुर - मनोरम् ।
जानो  समझो  करो उसे  फिर  वाणी  का  वैभव  है अनुपम॥2॥

7927
आ नः शुष्मं नृषाह्यं वीरवन्तं पुरुस्पृहम् । पवस्व सोम धारया॥3॥

दुष्ट - दलन  अति  आवश्यक  है  हे  प्रभु  तुम  ही  रक्षा  करना ।
सत्पथ  पर  हम  चलें  निरन्तर मेरा जीवन तुम ही गढना ॥3॥

7928
प्र सोमो अति धारया पवमानो असिष्यदत् । अभि द्रोणान्यासदम्॥4॥

प्रभु  तुम  ही  सन्मार्ग  दिखाना  कर्म - योग  की  राह  बताना ।
कर्मानुसार मानव फल पाता यही सीख सबको सिखलाना ॥4॥

7929
अप्सु त्वा मधुमत्तमं हरिं हिन्वन्त्यद्रिभिः। इन्दविन्द्राय पीतये॥5॥

हे  परमेश्वर  हे  परममित्र  अज्ञान - तमस  को  तुम्हीं  मिटाना ।
हम  सब  को ज्ञानालोक मिले तुम ज्ञान - गली में पहुँचाना ॥5॥

7930
सुनोता मधुमत्तमं सोममिन्द्राय वज्रिणे । चारुं शर्धाय मत्सरम्॥6॥

उत्तम - भोजन  फल औषधि  का  निज जीवन में उपयोग करें ।
तन - मन को फिर स्वस्थ बना कर चरैवेति की डगर  धरें ॥6॥

2 comments:


  1. जग में विविध तरह के बल हैं पर अद्भुत है वाणी का वैभव ।
    वाक् - शक्ति है जिसके भीतर उसका होता नहीं पराभव ॥1॥
    हमारे नये प्रधानमन्त्री के पास वाकशक्ति का वरदान है

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