[ऋषि- अवत्सार काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
8077
तरत्स मन्दी धावति धारा सुतस्यान्धसः। तरत्स मन्दी धावति॥1॥
परमेश्वर आनन्द - प्रदाता सन्मार्ग वही दिखलाता है ।
भूले - भटके राही को वह मञ्जिल तक पहुँचाता है ॥1॥
8078
उस्त्रा वेद वसूनां मर्तस्य देव्यवसः। तरस्त मन्दी धावति॥2॥
प्रभु के आनन्द से ही तो मानव आनन्द का अनुभव करता है ।
मात्र वही आनन्द - रूप है सबको सम्प्रेषित करता है ॥2॥
8079
ध्वस्त्रयोः पुरुषन्त्योरा सहस्त्राणि दद्महे । तरस्त मन्दी धावति॥3॥
ज्ञान - योग है वह परमात्मा कर्म - योग का है वह धाम ।
चरैवेति से मनुज सीखता पथ पर चलता अविरल अविराम्॥3॥
8080
आ ययोस्त्रिंशतं तना सहस्त्राणि च दद्महे । तरत्स मन्दी धामहि॥4॥
कर्म - मार्ग पर चलने वाला अपनी आयु बढा सकता है ।
नेक राह पर चल- कर मानव आत्मज्ञान भी पा सकता है॥4॥
8077
तरत्स मन्दी धावति धारा सुतस्यान्धसः। तरत्स मन्दी धावति॥1॥
परमेश्वर आनन्द - प्रदाता सन्मार्ग वही दिखलाता है ।
भूले - भटके राही को वह मञ्जिल तक पहुँचाता है ॥1॥
8078
उस्त्रा वेद वसूनां मर्तस्य देव्यवसः। तरस्त मन्दी धावति॥2॥
प्रभु के आनन्द से ही तो मानव आनन्द का अनुभव करता है ।
मात्र वही आनन्द - रूप है सबको सम्प्रेषित करता है ॥2॥
8079
ध्वस्त्रयोः पुरुषन्त्योरा सहस्त्राणि दद्महे । तरस्त मन्दी धावति॥3॥
ज्ञान - योग है वह परमात्मा कर्म - योग का है वह धाम ।
चरैवेति से मनुज सीखता पथ पर चलता अविरल अविराम्॥3॥
8080
आ ययोस्त्रिंशतं तना सहस्त्राणि च दद्महे । तरत्स मन्दी धामहि॥4॥
कर्म - मार्ग पर चलने वाला अपनी आयु बढा सकता है ।
नेक राह पर चल- कर मानव आत्मज्ञान भी पा सकता है॥4॥
प्रभु के आनन्द से ही तो मानव आनन्द का अनुभव करता है ।
ReplyDeleteमात्र वही आनन्द - रूप है सबको सम्प्रेषित करता है ॥2॥
सही कहा है..