[ऋषि- कवि भार्गव । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री । ]
8027
अया सोमः सुकृत्यया महश्चिदभ्यवर्धत । मन्दान उद्वृषायते ॥1॥
सत् - कर्मों की होती है पूजा कर्मों से बनता मनुज महान ।
अभ्युदय चाहते जो जीवन में सत् - कर्मों का छेडें अभियान ॥1॥
8028
कृतानीदस्य कर्त्वा चेतन्ते दस्युतर्हणा । ऋणा च धृष्णुश्चयते॥2॥
प्रभु दुष्टों को दण्डित करते सत् - जन का करते प्रति - पाल ।
धन - वैभव सबको देते हैं उद्योगी का सदा चमकता - भाल ॥2॥
8029
आत्सोम इन्द्रियो रसो वज्रः सहस्त्रसा भुवत्। उक्थं यदस्य जायते॥3॥
परमात्मा ने जीवात्मा को अनन्त - बलों से किया सुसज्जित ।
जब मानव आत्म - ज्ञान पाता है तब होता है मनुज विभूषित ॥3॥
8030
स्वयं कविर्विधर्तरि विप्राय रत्नमिच्छति । यदी ममृज्यते धियः॥4॥
मनुज जहॉ जिस जगह खडा है खुद ही है उसका जिम्मेदार ।
सत् - जन ही यश - वैभव पाता है दुर्जन को पडती है मार ॥4॥
8031
सिषासतू रयीणां वाजेष्वर्वताविव । भरेषु जिग्युषामसि ॥5॥
जीवन - रण में कर्म - योग की सचमुच अद्भुत महिमा है ।
उद्योगी विजय - दुँदुभी सुनता परमेश्वर की ऐसी गरिमा है ॥5॥
8027
अया सोमः सुकृत्यया महश्चिदभ्यवर्धत । मन्दान उद्वृषायते ॥1॥
सत् - कर्मों की होती है पूजा कर्मों से बनता मनुज महान ।
अभ्युदय चाहते जो जीवन में सत् - कर्मों का छेडें अभियान ॥1॥
8028
कृतानीदस्य कर्त्वा चेतन्ते दस्युतर्हणा । ऋणा च धृष्णुश्चयते॥2॥
प्रभु दुष्टों को दण्डित करते सत् - जन का करते प्रति - पाल ।
धन - वैभव सबको देते हैं उद्योगी का सदा चमकता - भाल ॥2॥
8029
आत्सोम इन्द्रियो रसो वज्रः सहस्त्रसा भुवत्। उक्थं यदस्य जायते॥3॥
परमात्मा ने जीवात्मा को अनन्त - बलों से किया सुसज्जित ।
जब मानव आत्म - ज्ञान पाता है तब होता है मनुज विभूषित ॥3॥
8030
स्वयं कविर्विधर्तरि विप्राय रत्नमिच्छति । यदी ममृज्यते धियः॥4॥
मनुज जहॉ जिस जगह खडा है खुद ही है उसका जिम्मेदार ।
सत् - जन ही यश - वैभव पाता है दुर्जन को पडती है मार ॥4॥
8031
सिषासतू रयीणां वाजेष्वर्वताविव । भरेषु जिग्युषामसि ॥5॥
जीवन - रण में कर्म - योग की सचमुच अद्भुत महिमा है ।
उद्योगी विजय - दुँदुभी सुनता परमेश्वर की ऐसी गरिमा है ॥5॥
अनुपम काव्यमय अनुवाद
ReplyDeleteपरमात्मा ने जीवात्मा को अनन्त - बलों से किया सुसज्जित ।
ReplyDeleteजब मानव आत्म - ज्ञान पाता है तब होता है मनुज विभूषित ॥3॥
आत्मज्ञान बिना सब सूना
सुन्दर बोध...
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