[ऋषि- मेध्यातिथि काण्व । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
7997
जनयन्रोचना दिवो जनयन्नप्सु सूर्यम् । वसानो गा अपो हरिः॥1॥
परमात्मा आलोक - प्रदाता कण - कण में वह बसता है ।
सूर्य-चन्द्र है छटा उसी की सुखमय संसार यहॉ पलता है॥1॥
7998
एष प्रत्नेन मन्मना देवो देवेभ्योस्परि । धारया पवते सुतः ॥2॥
वेद - ऋचा की महिमा अद्भुत मन का तमस मिटाती है ।
वैज्ञानिक अन्वेषण करता यह दुनियॉ लाभ उठाती है ॥2॥
8099
वावृधानाय तूर्वये पवन्ते वाजसातये । सोमा:सहस्त्रपाजसः॥3॥
परमात्मा प्रेरित करते हैं सन्मार्ग वही दिखलाते हैं ।
उद्यम - फल सबसे मीठा है हम सबको सिखलाते हैं ॥3॥
8000
दुहानः प्रत्नमित्पयः पवित्रे परि षिच्यते । क्रन्दन्देवॉ अजीजनत्॥4॥
वेद - ऋचाओं से मिलता है मन की तृप्ति और सन्तोष ।
कर्म - मार्ग पर चलने वाला पाता है पावन परितोष॥4॥
8001
अभि विश्वानि वार्याभि देवॉ ऋतावृधः। सोमः पुनानो अर्षति॥5॥
सबका कल्याण वही करता है वह करुणा का सागर है ।
पर उद्योगी सब सुख पाता भर जाता सुख - गागर है ॥5॥
8002
गोमन्नः सोम वीरवदश्वावद्वाजवत्सुतः। पवस्व बृहतीरिषः॥6॥
शौर्य - धैर्य देता परमेश्वर दुर्जन को दण्डित करता है ।
वीरों को प्रोत्साहित करता दया - दृष्टि सब पर रखता है॥6॥
7997
जनयन्रोचना दिवो जनयन्नप्सु सूर्यम् । वसानो गा अपो हरिः॥1॥
परमात्मा आलोक - प्रदाता कण - कण में वह बसता है ।
सूर्य-चन्द्र है छटा उसी की सुखमय संसार यहॉ पलता है॥1॥
7998
एष प्रत्नेन मन्मना देवो देवेभ्योस्परि । धारया पवते सुतः ॥2॥
वेद - ऋचा की महिमा अद्भुत मन का तमस मिटाती है ।
वैज्ञानिक अन्वेषण करता यह दुनियॉ लाभ उठाती है ॥2॥
8099
वावृधानाय तूर्वये पवन्ते वाजसातये । सोमा:सहस्त्रपाजसः॥3॥
परमात्मा प्रेरित करते हैं सन्मार्ग वही दिखलाते हैं ।
उद्यम - फल सबसे मीठा है हम सबको सिखलाते हैं ॥3॥
8000
दुहानः प्रत्नमित्पयः पवित्रे परि षिच्यते । क्रन्दन्देवॉ अजीजनत्॥4॥
वेद - ऋचाओं से मिलता है मन की तृप्ति और सन्तोष ।
कर्म - मार्ग पर चलने वाला पाता है पावन परितोष॥4॥
8001
अभि विश्वानि वार्याभि देवॉ ऋतावृधः। सोमः पुनानो अर्षति॥5॥
सबका कल्याण वही करता है वह करुणा का सागर है ।
पर उद्योगी सब सुख पाता भर जाता सुख - गागर है ॥5॥
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गोमन्नः सोम वीरवदश्वावद्वाजवत्सुतः। पवस्व बृहतीरिषः॥6॥
शौर्य - धैर्य देता परमेश्वर दुर्जन को दण्डित करता है ।
वीरों को प्रोत्साहित करता दया - दृष्टि सब पर रखता है॥6॥
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