Wednesday, 28 May 2014

सूक्त - 24

[ऋषि- असित काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7888
प्र सोमासो अधन्विषुः पवमानास इन्दवः। श्रीणाना अप्सु मृञ्जत्॥1॥

अनन्त  गुणों  का  वह  स्वामी  है  गुण आनन्द - दायक  होते  हैं ।
जब  प्रभु  का  चिन्तन  करते  हैं  हम आनन्द - बीज  बोते  हैं ॥1॥

7889
अभि गावो अधन्विषुरापो न प्रवता यतीः। पुनाना इन्द्रमाशत॥2॥

कर्म - मार्ग  के  पथिक  सर्वदा  प्रभु  का  करते  हैं  साक्षात्कार ।
सामर्थ्यानुरूप  फल  मिलता  प्रभु  हैं  हम  सबके  आधार  ॥2॥

7890
प्र पवमान धन्वसि सोमेन्द्राय पातवे । नृभिर्यतो वि नीयसे ॥3॥

कर्म - मार्ग और  ज्ञान - मार्ग  के  राही  को  प्रभु  से  है  प्यार ।
चरैवेति - पथ  पर  वह  चलते  प्रेम - मात्र जीवन का सार ॥3॥

7891
त्वं सोम नृमादनः पवस्व चर्षणीसहे । सस्निर्यो अनुमाद्यः॥4॥

कर्म  -  योग  की  महिमा  न्यारी  सब  कर्मानुकूल  फल  पाते ।
सत्कर्मों का फल शुभ - शुभ है दुर्जन बहुत - बहुत पछताते॥4॥

7892
इन्दो यदद्रिभिःसुतःपवित्रं परिधावसि । अरमिन्द्रस्य धाम्ने॥5॥

मनुज - देह में प्रभु रहता है पर पावन - मन है उसको प्यारा ।
योगी बहुत  भाग्य - शाली है प्रभु का है वह बडा - दुलारा ॥5॥

7893
पवस्व वृत्रहन्तमोक्थेभिरनुमाद्यः। शुचिः पावको अद्भुतः ॥6॥

परमात्मा अत्यन्त अद्भुत  है  उसकी  बनी  नहीं  परिभाषा ।
परमेश्वर आनन्द - रूप  है  वह  तो  है  भावों  की  भाषा ॥6॥

7894
शुचिः पावक उच्यते सोमः सुतस्य मध्वः। देवावीरघशंसह॥7॥

सज्जन  सदा  फूलते - फलते  दुर्जन  तितर - बितर  हो जाते ।
जैसी  करनी  वैसी  ही  भरनी  बात  पते  की  वही  बताते ॥7॥

 

2 comments:

  1. सुन्दर सन्देश...

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  2. परमात्मा अत्यन्त अद्भुत है उसकी बनी नहीं परिभाषा ।
    परमेश्वर आनन्द - रूप है वह तो है भावों की भाषा ॥6॥

    तभी न कहते हैं ईश्वर भाव का भूखा है

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