Thursday, 29 May 2014

सूक्त - 22

[ऋषि- असित काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7874
एते सोमास आशवो रथा इव प्र वाजिनः।सर्गा:सृष्टा अहेषत॥1॥

अनन्त - शक्ति का वह स्वामी है विद्युत - समान है उसका बल ।
सब कुछ जाना नहीं गया है चखना  है अभी निरन्तर  फल ॥1॥

7875
एते वाता इवोरवः पर्जन्यस्येव वृष्टयः। अग्नेरिव भ्रमा वृथा॥2॥

जलना पावक का स्वभाव है धरा - गगन सब हैं गति - शील ।
सबकी गति की सीमायें हैं  पैरों पर मानो ठुकी  हो  कील ॥2॥

7876
एते पूता विपश्चितः सोमासो दध्याशिरः। विद्या व्यानशुर्धियः॥3॥

अन्वेषण  होते  रहें  निरन्तर  मिलेगी  अविरल  राह  अनेक ।
परिशोध करें ज्ञानी - विज्ञानी लाभान्वित हों जन प्रत्येक॥3॥

7877
एते मृष्टा अमर्त्या: ससृवांसो न शश्रमुः। इयक्षन्तः पथो रजः॥4॥

दिव्य - ज्योति को लेकर नभ पर ग्रह- उपग्रह अविरल चलते हैं ।
सामर्थ्यानुसार अन्वेषण चलते वैज्ञानिक चिन्तन करते  हैं ॥4॥

7878
एते  पृष्ठानि  रोदसोर्विप्रयन्तो  व्यानशुः । उतेदमुत्तमं  रजः ॥5॥

परमात्मा  की  रचना  अद्भुत आकर्षण  का  अद्भुत - खेल ।
कहीं विकर्षण जादू चलता चलती रहती  है सृष्टि - रेल ॥5॥

7879
तन्तुं तन्वानमुत्तममनु प्रवत आशत । उतेदमुत्तमाय्यम्॥6॥

कण - कण में परमात्मा बसता कण- कण में उसकी रचना है ।
उसकी रचना उसका वैभव है हमको अपना जीवन गढना है॥6॥

7880
त्वं सोम पणिभ्य आ वसु गव्यानि धारयः। ततं तन्तुमचिक्रदः॥7॥

परमात्मा  का  रौद्र - रूप  ही  दुष्टों  को  दण्डित  करता  है ।
देव - असुर संग्राम यही है अहम् का घर खाली रहता है ॥7॥ 
 

2 comments:

  1. सुन्दर संकलन...

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  2. कण - कण में परमात्मा बसता कण- कण में उसकी रचना है ।
    उसकी रचना उसका वैभव है हमको अपना जीवन गढना है॥6॥

    कितना सुंदर बोध देती पंक्तियाँ..

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