[ऋषि- अवत्सार काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
8065
यवंयवं नो अन्धसा पुष्टम्पुष्टं परि स्त्रव । सोम विश्वा च सौभगा॥1॥
हे प्रभु अतुलित बल के स्वामी शौर्य - धैर्य का दो वरदान ।
अन्न - धान तुम ही देना प्रभु सुख - वैभव भी करो प्रदान॥1॥
8066
इन्दो यथा तव स्तवो यथा ते जातमन्धसः। नि बर्हिषि प्रिये सदः॥2॥
तुम ही यश वैभव के स्वामी यश - वैभव का दे दो दान ।
अन्न - धान - औषधि भी देना दया - दृष्टि रखना भगवान ॥2॥
8067
उत नो गोविदश्ववित्पवस्य सोमान्धसा । मक्षूतमेभिरहभिः॥3॥
हे अतुलित वैभव के मालिक सुख - वैभव तुम देते रहना ।
तुझको याद सदा करते हैं तुम भी मेरी सुधि लेते रहना ॥3॥
8068
यो जिनाति न जीयते हन्ति शत्रुमभीत्य । स पवस्व सहस्त्रजित्॥4॥
काल सतत सबको खाता है पर वह खुद रहता अविनाशी ।
उपासनीय है वह परमेश्वर कण- कण में है क्या मथुरा-काशी॥4॥
8065
यवंयवं नो अन्धसा पुष्टम्पुष्टं परि स्त्रव । सोम विश्वा च सौभगा॥1॥
हे प्रभु अतुलित बल के स्वामी शौर्य - धैर्य का दो वरदान ।
अन्न - धान तुम ही देना प्रभु सुख - वैभव भी करो प्रदान॥1॥
8066
इन्दो यथा तव स्तवो यथा ते जातमन्धसः। नि बर्हिषि प्रिये सदः॥2॥
तुम ही यश वैभव के स्वामी यश - वैभव का दे दो दान ।
अन्न - धान - औषधि भी देना दया - दृष्टि रखना भगवान ॥2॥
8067
उत नो गोविदश्ववित्पवस्य सोमान्धसा । मक्षूतमेभिरहभिः॥3॥
हे अतुलित वैभव के मालिक सुख - वैभव तुम देते रहना ।
तुझको याद सदा करते हैं तुम भी मेरी सुधि लेते रहना ॥3॥
8068
यो जिनाति न जीयते हन्ति शत्रुमभीत्य । स पवस्व सहस्त्रजित्॥4॥
काल सतत सबको खाता है पर वह खुद रहता अविनाशी ।
उपासनीय है वह परमेश्वर कण- कण में है क्या मथुरा-काशी॥4॥
काशी में बैठे हैं, प्रकाशमय है यहाँ का आध्यात्मिक वातावरण।
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