[ऋषि- मेध्यातिथि काण्व । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
7991
प्र ये गावो न भूर्णयस्त्वेषा अयासो अक्रमुः। घ्नन्तः कृष्णामप त्वचम्॥1॥
सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा सबका ध्यान वही रखता है ।
हम सबको वह प्रेरित करता सबका जीवन वह गढता है ॥1॥
7992
सुवितस्य मनामहेSति सेतुं दुराव्यम् । साह्वांसो दस्युमव्रतम्॥2॥
जगत - सेतु है वह परमात्मा रखता है सब के सुख का ध्यान ।
सूर्य - चन्द्र आलोक बिछाते सुख - कर है उसका अभियान ॥2॥
7993
शृण्वे वृष्टेरिव स्वनः पवमानस्य शुष्मिणः। चरन्ति विद्युतो दिवि॥3॥
परमात्मा पावस पर देता पृथ्वी पर रिम- झिम बरसात ।
सुख - साधन बिखरे धरती पर मल्हार सुनाता पात - पात॥3॥
7994
आ पवस्व महीमिषं गोमदिन्दो हिरण्यवत् । अश्वावद्वाजवत् सुतः॥4॥
अनन्त - शक्ति का वह स्वामी है परमात्मा है स्वयं - प्रकाश ।
सबको वही प्रकाशित करता तम का करता है वह नाश ॥4॥
7995
स पवस्व विचर्षण आ मही रोदसी पृण । उषा: सूर्यो न रश्मिभिः॥5॥
सूर्य - किरण धरती पर आती प्रति - दिन होता नया - बिहान ।
सज्जन को सुख - साधन देता रखता है उसका पूरा ध्यान ॥5॥
7996
परि णः शर्मयन्त्या धारया सोम विश्वतः। सरा रसेव विष्टपम्॥6॥
परमात्मा आनन्द - उत्स है आओ कर लें हम भी रस-पान ।
कर्म - मार्ग तुम ही दिखलाना दया - दृष्टि रखना भगवान ॥6॥
7991
प्र ये गावो न भूर्णयस्त्वेषा अयासो अक्रमुः। घ्नन्तः कृष्णामप त्वचम्॥1॥
सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा सबका ध्यान वही रखता है ।
हम सबको वह प्रेरित करता सबका जीवन वह गढता है ॥1॥
7992
सुवितस्य मनामहेSति सेतुं दुराव्यम् । साह्वांसो दस्युमव्रतम्॥2॥
जगत - सेतु है वह परमात्मा रखता है सब के सुख का ध्यान ।
सूर्य - चन्द्र आलोक बिछाते सुख - कर है उसका अभियान ॥2॥
7993
शृण्वे वृष्टेरिव स्वनः पवमानस्य शुष्मिणः। चरन्ति विद्युतो दिवि॥3॥
परमात्मा पावस पर देता पृथ्वी पर रिम- झिम बरसात ।
सुख - साधन बिखरे धरती पर मल्हार सुनाता पात - पात॥3॥
7994
आ पवस्व महीमिषं गोमदिन्दो हिरण्यवत् । अश्वावद्वाजवत् सुतः॥4॥
अनन्त - शक्ति का वह स्वामी है परमात्मा है स्वयं - प्रकाश ।
सबको वही प्रकाशित करता तम का करता है वह नाश ॥4॥
7995
स पवस्व विचर्षण आ मही रोदसी पृण । उषा: सूर्यो न रश्मिभिः॥5॥
सूर्य - किरण धरती पर आती प्रति - दिन होता नया - बिहान ।
सज्जन को सुख - साधन देता रखता है उसका पूरा ध्यान ॥5॥
7996
परि णः शर्मयन्त्या धारया सोम विश्वतः। सरा रसेव विष्टपम्॥6॥
परमात्मा आनन्द - उत्स है आओ कर लें हम भी रस-पान ।
कर्म - मार्ग तुम ही दिखलाना दया - दृष्टि रखना भगवान ॥6॥
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