[ऋषि- श्यावाश्व आत्रेय । देवता- पवमान सोम । छ न्द- गायत्री ।]
7937
प्र सोमासो मदच्युतः श्रवसे नो मघोनः।सुता विदथे चक्रमुः॥1॥
जो जन प्रभु - उपासना करते प्रभु रखते हैं उनका ध्यान ।
परमात्मा यश - वैभव देते दीन - बन्धु हैं वे भगवान ॥1॥
7938
आदीं त्रितस्य योषणो हरिं हित्वन्त्यद्रिभिः। इन्दुमिन्द्राय पीतये॥2॥
जो जप - तप - सुमिरन करते हैं उनका मन - हर होता व्यक्तित्व ।
अभ्युदय निरन्तर होता रहता व्यापक होता सह - अस्तित्व ॥2॥
7939
आदीं हंसो यथा गणं विश्वस्यावीवशन्मतिम् । अत्यो न गोभिरज्यते॥3॥
अपना - पन आकर्षित करता वह परमात्मा मुझको भाता है ।
अपने समान ही वह लगता है कितना अद्भुत यह नाता है ॥3॥
7940
उभे सोमावचाकशन्मृगो न तक्तो अर्षति । सीदन्नृतस्य योनिमा॥4॥
कण - कण में वह बसा हुआ है इस जगती का वह है स्वामी ।
सभी रसों का वही प्रणेता परमात्मा के हम अनुगामी ॥4॥
7941
अभि गावो अनूषत योषा जारमिव प्रियम् । अगन्नाजिं यथा हितम्॥5॥
परमात्मा आत्मीय सभी का करता है सब पर उपकार ।
पर साधक है उसको प्यारा प्रभु है एक - मात्र आधार ॥5॥
7942
अस्मे धेहि द्युमद्यशो मघवद्भ्यश्च मह्यं च । सनिं मेधामुत श्रवः॥6॥
ज्ञान - मार्ग पर जो चलते हैं मात्र अभ्युदय है अभियान ।
कर्मानुरूप सब को फल मिलता कृपा - सिन्धु हैं वे भगवान॥6॥
7937
प्र सोमासो मदच्युतः श्रवसे नो मघोनः।सुता विदथे चक्रमुः॥1॥
जो जन प्रभु - उपासना करते प्रभु रखते हैं उनका ध्यान ।
परमात्मा यश - वैभव देते दीन - बन्धु हैं वे भगवान ॥1॥
7938
आदीं त्रितस्य योषणो हरिं हित्वन्त्यद्रिभिः। इन्दुमिन्द्राय पीतये॥2॥
जो जप - तप - सुमिरन करते हैं उनका मन - हर होता व्यक्तित्व ।
अभ्युदय निरन्तर होता रहता व्यापक होता सह - अस्तित्व ॥2॥
7939
आदीं हंसो यथा गणं विश्वस्यावीवशन्मतिम् । अत्यो न गोभिरज्यते॥3॥
अपना - पन आकर्षित करता वह परमात्मा मुझको भाता है ।
अपने समान ही वह लगता है कितना अद्भुत यह नाता है ॥3॥
7940
उभे सोमावचाकशन्मृगो न तक्तो अर्षति । सीदन्नृतस्य योनिमा॥4॥
कण - कण में वह बसा हुआ है इस जगती का वह है स्वामी ।
सभी रसों का वही प्रणेता परमात्मा के हम अनुगामी ॥4॥
7941
अभि गावो अनूषत योषा जारमिव प्रियम् । अगन्नाजिं यथा हितम्॥5॥
परमात्मा आत्मीय सभी का करता है सब पर उपकार ।
पर साधक है उसको प्यारा प्रभु है एक - मात्र आधार ॥5॥
7942
अस्मे धेहि द्युमद्यशो मघवद्भ्यश्च मह्यं च । सनिं मेधामुत श्रवः॥6॥
ज्ञान - मार्ग पर जो चलते हैं मात्र अभ्युदय है अभियान ।
कर्मानुरूप सब को फल मिलता कृपा - सिन्धु हैं वे भगवान॥6॥
सुन्दर कथ्य...
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