Wednesday, 28 May 2014

सूक्त - 23

[ऋषि- असित काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7881
सोमा असृग्रमाशवो मधोर्मदस्य धारया । अभि विश्वानि काव्या॥1॥

वेद - ऋचायें अति - अद्भुत  हैं  विधि - निषेध  का  देतीं  ज्ञान ।
यह विद्या - निधान है सचमुच परमात्मा - पूरित - विज्ञान ॥1॥

7882
अनु प्रत्नास आयवः पदं नवीयो अक्रमुः। रुचे जनन्त सूर्यम् ॥2॥

विविध  शक्ति  है  परा - प्रकृति  में अन्वेषण अविरल करना  है ।
भरे - पडे हैं सुख - साधन सब बस सम्मुख लाकर रखना है ॥2॥

7883
आ पवमान नो भरार्यो अदाशुषो गयम् । कृधि प्रजावतीरिषः॥3॥

हे  परमेश्वर  विनती  सुन  लो  हम  सब  को  दैवीय - गुण  देना ।
हे  प्रभु  मेरा  मन  पावन  हो   अपने - पन  से  अपना  लेना ॥3॥

7884
अभि सोमास आयवः पवन्ते मद्यं मदम् । अभि कोशं मधुश्चुतम्॥4॥

विविध - विभूति  भरी  है  जग  में  पर यह वीरों को मिलती  है ।
अन्वेषन अति आवश्यक है नव - नूतन कलियॉ खिलती हैं ॥4॥

7885
सोमो अर्षति धर्णसिर्दधान इन्द्रियं रसम् । सुवीरो अभिशस्तिपा:॥5॥

धरा - गगन  दोनों अनुपम  हैं नित - नवीन हैं और निरन्तर ।
तुम कितने हो पात्र यहॉ पर पग - पग पाओ बढो परस्पर ॥5॥

7886
इन्द्राय सोम पवसे देवेभ्यः सधमाद्यः। इन्दो वाजं सिषाससि ॥6॥

परमात्मा  प्रोत्साहित  करता  उद्यम - पथ  पर  पहुँचाता  है ।
जितनी  है  सामर्थ्य  तुम्हारी उतना  सुख  देने आता  है ॥6॥

7887
अस्य पीत्वा मदानामिन्द्रो वृत्राण्यप्रति । जघान जघनच्च नु ॥7॥

इस  दुनियॉ  में  जितने  सुख  हैं आनन्द - सुख  सबसे  भारी  है ।
हे  प्रभु  दया - दृष्टि  तुम  रखना  देखो  अब  अपनी   बारी है ॥7॥  

1 comment:

  1. विविध शक्ति है परा - प्रकृति में अन्वेषण अविरल करना है ।
    भरे - पडे हैं सुख - साधन सब बस सम्मुख लाकर रखना है ॥2॥

    माँ प्रकृति को कोटि कोटि प्रणाम..

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