[ऋषि- अयास्य आङ्गिरस । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
8009
प्र ण इन्दो महे तन ऊर्मिं न बिभ्रदर्षसि । अभि देवॉ अयास्यः॥1॥
जो कर्म - मार्ग को नहीं जानते वे सुख - वैभव से रहते दूर ।
उद्योगी बन चलें निरन्तर पा सकते हैं वैभव भर - पूर ॥1॥
8010
मती जुष्टो धिया हितःसोमो हिन्वे परावति । विप्रस्य धारया कविः॥2॥
वेद शब्द में ज्ञान है अद्भुत यह विद् धातु से बना हुआ है ।
जीवन के हर मोड को छूता ज्ञान - अमृत से सना हुआ है ॥2॥
8011
अयं देवेषु जागृविःसुत एति पवित्र आ । सोमो याति विचर्षणिः॥3॥
सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा सबकी सुधि वह ही लेता है ।
पावन - मन में वह रहता है सुख - सुविधा - साधन देता है ॥3॥
8012
स नःपवस्व वाजयुश्चक्राणश्चारुमध्वरम् । बर्हिष्मॉ आ विवासति॥4॥
परमात्मा की व्यापक सत्ता वह ही है जगती का वितान ।
वही सखा प्रोत्साहित करता वसुधा का वह नव - बिहान ॥4॥
8013
स नो भगाय वायवे विप्रवीरः सदावृधः। सोमो देवेष्वा यमत् ॥5॥
साधक को सत्पथ दिखलाता सज्जन - बल - वर्धन करता है ।
चरैवेति का मर्म सिखाता हम सब का जीवन गढता है ॥5॥
8014
स नो अद्य वसुत्तये क्रतुविद् गातुवित्तमः। वाजं जेषि श्रवो बृहत्॥6॥
कवियों में वह उत्तम कवि है सब के कर्मों का वह ज्ञाता ।
ज्ञानी को वह प्रेरित कतता है वह जग का आलोक - प्रदाता ॥6॥
8009
प्र ण इन्दो महे तन ऊर्मिं न बिभ्रदर्षसि । अभि देवॉ अयास्यः॥1॥
जो कर्म - मार्ग को नहीं जानते वे सुख - वैभव से रहते दूर ।
उद्योगी बन चलें निरन्तर पा सकते हैं वैभव भर - पूर ॥1॥
8010
मती जुष्टो धिया हितःसोमो हिन्वे परावति । विप्रस्य धारया कविः॥2॥
वेद शब्द में ज्ञान है अद्भुत यह विद् धातु से बना हुआ है ।
जीवन के हर मोड को छूता ज्ञान - अमृत से सना हुआ है ॥2॥
8011
अयं देवेषु जागृविःसुत एति पवित्र आ । सोमो याति विचर्षणिः॥3॥
सर्व - व्याप्त है वह परमात्मा सबकी सुधि वह ही लेता है ।
पावन - मन में वह रहता है सुख - सुविधा - साधन देता है ॥3॥
8012
स नःपवस्व वाजयुश्चक्राणश्चारुमध्वरम् । बर्हिष्मॉ आ विवासति॥4॥
परमात्मा की व्यापक सत्ता वह ही है जगती का वितान ।
वही सखा प्रोत्साहित करता वसुधा का वह नव - बिहान ॥4॥
8013
स नो भगाय वायवे विप्रवीरः सदावृधः। सोमो देवेष्वा यमत् ॥5॥
साधक को सत्पथ दिखलाता सज्जन - बल - वर्धन करता है ।
चरैवेति का मर्म सिखाता हम सब का जीवन गढता है ॥5॥
8014
स नो अद्य वसुत्तये क्रतुविद् गातुवित्तमः। वाजं जेषि श्रवो बृहत्॥6॥
कवियों में वह उत्तम कवि है सब के कर्मों का वह ज्ञाता ।
ज्ञानी को वह प्रेरित कतता है वह जग का आलोक - प्रदाता ॥6॥
जीवन में कर्म ही प्रधान है...
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