[ऋषि- अवत्सार काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
8057
उत्ते शुष्मासो अस्थू रक्षो भिन्दन्तो अद्रिवः। नुदस्व या: परिस्पृधः॥1॥
हे आयुध - धर हे परमेश्वर तुम हम सबकी रक्षा करना ।
कर्मानुसार तुम फल देते हो तुम सबकी सुधि लेते रहना॥1॥
8058
अया निजघ्निरोजसा रथसङ्गे धने हिते । स्तवा अबिभ्युषा हृदा॥2॥
जो साधक कर्म - मार्ग पर चलते वे पाते हैं प्रभु का सामीप्य ।
निर्भय होकर जीवन-जीते उनको मिलता प्रभु का सान्निध्य ॥2॥
8059
अस्य व्रतानि नाधृषे पवमानस्य दूढ्या । रुज यस्त्वा पृतन्यति॥3॥
असत्य सत्य से डर - कर रहता श्रुतियॉ हमको समझाती हैं ।
सज्जन प्रति- पल उपक्रम करते दिव्य-शक्तियॉ मिल जाती हैं॥3॥
8060
तं हिन्वन्ति मदच्युतं हरिं नदीषु वाजिनम्।इन्दुमिन्द्राय मत्सरम्॥4॥
आनन्द - रूप है वह परमात्मा वह सबको प्रेरित करता है ।
अज्ञान-तिमिर को वही मिटाता सबका ध्यान वही रखता है॥4॥
8057
उत्ते शुष्मासो अस्थू रक्षो भिन्दन्तो अद्रिवः। नुदस्व या: परिस्पृधः॥1॥
हे आयुध - धर हे परमेश्वर तुम हम सबकी रक्षा करना ।
कर्मानुसार तुम फल देते हो तुम सबकी सुधि लेते रहना॥1॥
8058
अया निजघ्निरोजसा रथसङ्गे धने हिते । स्तवा अबिभ्युषा हृदा॥2॥
जो साधक कर्म - मार्ग पर चलते वे पाते हैं प्रभु का सामीप्य ।
निर्भय होकर जीवन-जीते उनको मिलता प्रभु का सान्निध्य ॥2॥
8059
अस्य व्रतानि नाधृषे पवमानस्य दूढ्या । रुज यस्त्वा पृतन्यति॥3॥
असत्य सत्य से डर - कर रहता श्रुतियॉ हमको समझाती हैं ।
सज्जन प्रति- पल उपक्रम करते दिव्य-शक्तियॉ मिल जाती हैं॥3॥
8060
तं हिन्वन्ति मदच्युतं हरिं नदीषु वाजिनम्।इन्दुमिन्द्राय मत्सरम्॥4॥
आनन्द - रूप है वह परमात्मा वह सबको प्रेरित करता है ।
अज्ञान-तिमिर को वही मिटाता सबका ध्यान वही रखता है॥4॥
जो साधक कर्म - मार्ग पर चलते वे पाते हैं प्रभु का सामीप्य ।
ReplyDeleteनिर्भय होकर जीवन-जीते उनको मिलता प्रभु का सान्निध्य ॥2॥
वेदों का संरक्षण कितना अमूल्य है..