[ऋषि- कवि भार्गव । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
8032
तं त्वा नृम्णानि बिभ्रतं सधस्थेषु महो दिवः। चारुं सुकृत्ययेमहे॥1॥
नभ में कितनी नभ - गंगायें भू - सम्पदा भरी धरती पर ।
अद्भुत है यह दुनियॉ प्रभु - वर जाने कैसा होगा परमेश्वर ॥1॥
8033
संवृक्तधृष्णुमुक्थ्यं महामहिव्रतं मदम् । शतं पुरो रुरुक्षणिम्॥2॥
धर्म - मार्ग ही पूजनीय है सब निर्भय हो - कर चलते हैं ।
उपासना अति - आवश्यक है प्रभु सबको प्रेरित करते हैं ॥2॥
8034
अतस्त्वा रयिमभि राजानं सुक्रतो दिवः। सुपर्णो अव्यथिर्भरत्॥3॥
हे परम - मित्र हे परमात्मा सम्पूर्ण धनों के तुम भण्डार ।
कण - कण में है वास तुम्हारा अविरल करते हो उपकार ॥3॥
8035
विश्वस्मा इत्स्वर्दृशे साधारणं रजस्तुरम् । गोपामृतस्य निर्भरत्॥4॥
सत - रज- तम से प्रकृति बनी है पर रज - गुण की है प्रधानता ।
सतचितआनन्द प्रभु के गुण हैं पर चित की रहती सदा प्रबलता॥4॥
8036
अधा हिन्वान इन्द्रियं ज्यायो महित्वमानशे । अभिष्टिकृद्विचर्षणिः॥5॥
परमेश्वर हम सब के प्रेरक अति - अद्भुत है उनकी महिमा ।
सर्व - व्याप्त है वह परमेश्वर अभीष्ट - प्रदाता की है गरिमा ॥5॥
8032
तं त्वा नृम्णानि बिभ्रतं सधस्थेषु महो दिवः। चारुं सुकृत्ययेमहे॥1॥
नभ में कितनी नभ - गंगायें भू - सम्पदा भरी धरती पर ।
अद्भुत है यह दुनियॉ प्रभु - वर जाने कैसा होगा परमेश्वर ॥1॥
8033
संवृक्तधृष्णुमुक्थ्यं महामहिव्रतं मदम् । शतं पुरो रुरुक्षणिम्॥2॥
धर्म - मार्ग ही पूजनीय है सब निर्भय हो - कर चलते हैं ।
उपासना अति - आवश्यक है प्रभु सबको प्रेरित करते हैं ॥2॥
8034
अतस्त्वा रयिमभि राजानं सुक्रतो दिवः। सुपर्णो अव्यथिर्भरत्॥3॥
हे परम - मित्र हे परमात्मा सम्पूर्ण धनों के तुम भण्डार ।
कण - कण में है वास तुम्हारा अविरल करते हो उपकार ॥3॥
8035
विश्वस्मा इत्स्वर्दृशे साधारणं रजस्तुरम् । गोपामृतस्य निर्भरत्॥4॥
सत - रज- तम से प्रकृति बनी है पर रज - गुण की है प्रधानता ।
सतचितआनन्द प्रभु के गुण हैं पर चित की रहती सदा प्रबलता॥4॥
8036
अधा हिन्वान इन्द्रियं ज्यायो महित्वमानशे । अभिष्टिकृद्विचर्षणिः॥5॥
परमेश्वर हम सब के प्रेरक अति - अद्भुत है उनकी महिमा ।
सर्व - व्याप्त है वह परमेश्वर अभीष्ट - प्रदाता की है गरिमा ॥5॥
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