[ऋषि- त्रित आप्त्य । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
7949
प्र सुवानो धारया तनेन्दुर्हिन्वानो अर्षति । रुजद् दृळ्हा व्योजसा॥1॥
प्रभु हम सबको प्रेरित करते कर्मानुसार ही फल देते हैं ।
सत्कर्मी शुभ - फल पाता है प्रभु उसको अपना लेते हैं ॥1॥
7950
सुत इन्द्राय वायवे वरुणाय मरुद्भ्यः। सोमो अर्षति विष्णवे॥2॥
कण- कण में वह विद्यमान है पर पावन - मन में रहता है ।
कर्म - मार्ग तुम सब अपना लो परमेश्वर हमसे कहता है ॥2॥
7951
वृषाणं वृषभिर्यतं सुन्वन्ति सोमभद्रिभिः। दुहन्ति शक्मना पयः॥3॥
कर्म - मार्ग पर जो चलते हैं करते हैं अविरल अभ्यास ।
परमानन्द उन्हीं को मिलता परमेश्वर हैं आस - पास ॥3॥
7952
भुवत्त्रितस्य मर्ज्यो भुवदिन्द्राय मत्सरः। सं रूपैरज्यते हरिः॥4॥
यम - नियम साधना जो करते हैं प्रभु से करते हैं सम्वाद ।
जीवन उनका सार्थक होता मिट जाता उनका अवसाद ॥4॥
7953
अभीमृतस्य विष्टपं दुहते पृश्निमातरः। चारु प्रियतमं हविः॥5॥
कर्म - योग का पथिक निरन्तर प्रभु की उपासना करता है ।
वह प्रभु का दर्शन करता है निज जीवन को वह गढता है ॥5॥
7954
समेनमह्रुताइमा गिरो अर्षन्ति सस्त्रुतः। धेनूर्वाश्रो अवीवशत्॥6॥
शुभ - विचार का मनन सदा हो वही सोच मन में ढल जाए ।
सत्कर्मों का फल भी मीठा है प्रत्येक - जीव प्रभु दर्शन पाए ॥6॥
7949
प्र सुवानो धारया तनेन्दुर्हिन्वानो अर्षति । रुजद् दृळ्हा व्योजसा॥1॥
प्रभु हम सबको प्रेरित करते कर्मानुसार ही फल देते हैं ।
सत्कर्मी शुभ - फल पाता है प्रभु उसको अपना लेते हैं ॥1॥
7950
सुत इन्द्राय वायवे वरुणाय मरुद्भ्यः। सोमो अर्षति विष्णवे॥2॥
कण- कण में वह विद्यमान है पर पावन - मन में रहता है ।
कर्म - मार्ग तुम सब अपना लो परमेश्वर हमसे कहता है ॥2॥
7951
वृषाणं वृषभिर्यतं सुन्वन्ति सोमभद्रिभिः। दुहन्ति शक्मना पयः॥3॥
कर्म - मार्ग पर जो चलते हैं करते हैं अविरल अभ्यास ।
परमानन्द उन्हीं को मिलता परमेश्वर हैं आस - पास ॥3॥
7952
भुवत्त्रितस्य मर्ज्यो भुवदिन्द्राय मत्सरः। सं रूपैरज्यते हरिः॥4॥
यम - नियम साधना जो करते हैं प्रभु से करते हैं सम्वाद ।
जीवन उनका सार्थक होता मिट जाता उनका अवसाद ॥4॥
7953
अभीमृतस्य विष्टपं दुहते पृश्निमातरः। चारु प्रियतमं हविः॥5॥
कर्म - योग का पथिक निरन्तर प्रभु की उपासना करता है ।
वह प्रभु का दर्शन करता है निज जीवन को वह गढता है ॥5॥
7954
समेनमह्रुताइमा गिरो अर्षन्ति सस्त्रुतः। धेनूर्वाश्रो अवीवशत्॥6॥
शुभ - विचार का मनन सदा हो वही सोच मन में ढल जाए ।
सत्कर्मों का फल भी मीठा है प्रत्येक - जीव प्रभु दर्शन पाए ॥6॥
यम - नियम साधना जो करते हैं प्रभ से करते हैं सम्वाद ।
ReplyDeleteजीवन उनका सार्थक होता मिट जाता उनका अवसाद ॥4॥
प्रभु से संवाद हो खत्म हर विवाद हो..