Tuesday 6 May 2014

सूक्त - 62

[ऋषि- जमदग्नि भार्गव । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

8119
एते असृग्रमिन्दवस्तिरः पवित्रमाशवः । विश्वान्यभि सौभगा॥1॥

सेना -  नायक  सब  प्रकार  से  तीनों  सेना  मजबूत  बनाए ।
जल थल नभ हो सभी सुरक्षित प्रजा चैन से मौज मनाए॥1॥

8120
विघ्नन्तो दुरिता पुरु सुगा तोकाय वाजिनः। तना कृण्वन्तो अवर्ते॥2॥

देश  सुरक्षित  रहे  हमारा  नई - पौध   खिल - कर मुस्काए ।
सेना - नायक मति - कौशल से राष्ट्र-प्रगति में हाथ बँटाए॥2॥

8121
कृण्वन्तो वरिवो गवेSभ्यर्षन्ति सुष्टुतिम् । इळामस्मभ्यं संयतम्॥3॥

प्रजा  सुरक्षित  रहे  हमारी  नौनिहाल  हों  सभी  सुरक्षित ।
अविरल नूतन अन्वेषण हो देश की सीमा रहे सुरक्षित॥3॥

8122
असाव्यंशुर्मदायाप्सु दक्षो गिरिष्ठा:। श्येनो न योनिमासदत्॥4॥

सेना - नायक  राज -  धर्म  का  करता  हो  सुन्दर  निर्वाह ।
राष्ट्र - धर्म पर मर - मिटने की रखता हो वह मन में चाह॥4॥

8123
शुभ्रमन्धो देववातमप्सु धूतो नृभिः सुतः। स्वदन्ति गावः पयोभिः॥5॥

जब देश सुरक्षित होता है बस  तभी  ख्याति  वह  पा  सकता  है ।
वैज्ञानिक अन्वेषण करते खलिहान-खेत कुछ-कुछ कहता है॥5॥

8124
आदीमश्वं न हेतारोSशूशुभन्नमृताय । मध्वो रसं सधमादे॥6॥

देश  में खुशहाली आती है विविध - कलायें मुस्काती हैं ।
यश - वैभव बढता जाता है राग-रगिनी खुद गाती हैं ॥6॥

8125
यास्ते धारा मधुश्चुतोSसृग्रमिन्द ऊतये । ताभिः पवित्रमासदः॥7॥

सेनापति  है  कवच  राष्ट्र  का   वह सबको अभय बनाता है ।
सुख-कर जीवन वह देता है प्रगति-पन्थ पर पहुँचाता है॥7॥

8126
सो अर्षेन्द्राय पीतये तिरो रोमाण्यव्यया । सीदन्योना वनेष्वा॥8॥

जब  देश  सुरक्षित  होता  है   तब  वैज्ञानिक  अन्वेषण  करता ।
विज्ञान-ज्ञान विकसित होते हैं नव-विचार हर मन में बहता॥8॥

8127
त्वमिन्दो परि स्त्रव स्वादिष्ठो अङ्गिरोभ्यः। वरिवोविद् घृतं पयः॥9॥

प्रजातन्त्र  में  प्रजा है राजा उसे  सजग अविरल  रहना  है ।
देश-धर्म अति आवश्यक है राजा पर अ‍ॅकुश रखना  है ॥9॥

8128
अयं विचर्षणिर्हितः पवमानः स चेतति । हिन्वान आप्यं बृहत्॥10॥

जो  सेना-नायक  तत्पर   है जो राज-धर्म का रखता ध्यान ।
वह  देश तरक्की करता है वह बन जाता है राष्ट्र- महान॥10॥

8129
एष वृषा वृषव्रतः पवमानो अशस्तिहा । करद्वसूनि दाशुषे॥11॥

सेनापति  से  ही  सब  सुख है देश प्रगति पथ पर जाता है ।
वैज्ञानिक अन्वेषण करता गायक राग- देस गाता है ॥11॥

8130
आ पवस्व सहस्त्रिणं रयिं गोमन्तमश्विनम् । पुरुश्चन्द्रं पुरुस्पृहम्॥12॥

सेना - नायक  अस्त्र - शस्त्र  से  सीमाओं  को  रखे  सुरक्षित ।
शब्द-सर्जना अति उत्तम हो सुन्दर चिन्तन हो सम्प्रेषित॥12॥

8131
एष स्य परि षिच्यते मर्मृज्यमान आयुभिः। उरुगायः कविक्रतुः॥13॥

वह  तेजस्वी  हो  ओजस्वी  हो  सेनापति  हो  गुण - सम्पन्न ।
भीतर चाहे खलबली मची हो पर बाहर दिखता हो प्रसन्न॥13॥

8132
सहस्त्रोतिः शतामघो विमानो रजसः कविः। इन्द्राय पवते मदः॥14॥

विद्वानों  का आदर   करता हो  पूर्वाग्रह  से  हो  वह  मुक्त ।
हर  क्षण चौकन्ना रहता हो जीवन जीता हो उन्मुक्त॥14॥

8133
गिरा जात इह स्तुत इन्दुरिन्द्राय धीयते । विर्योना वसताविव॥15॥

जैसे  अस्त्र - शस्त्र  से  सेना  सदा  सुरक्षित  रहती  है ।
सेनापति का सम्भाषण भी जनता को निर्भय करती है॥15॥

8134
पवमानः सुतो नृभिःसोमो वाजमिवासरत् । चमूषु शक्मनासदम्॥16॥

पराक्रमी  हो  सेना- नायक  तीव्र  वेग  से  वह  चलता  हो ।
भयभीत करे जो दुश्मन को ऐसा शौर्य- धैर्य रखता हो॥16॥

8135
तं त्रिपृष्ठे त्रिवन्धुरे रथे युञ्जन्ति यातवे । ऋषीणां सप्त धीतिभिः॥17॥

सेनापति का यान-अद्भुत हो जो जल थल नभ में सुख से विचरे ।
विकर्षण - आकर्षण दोनों हो अविरल अनन्त परिशोध करे॥17॥

8136
तं सोतारो धनस्पृतमाशुं वाजाय यातवे । हरिं हिनोत वाजिनम्॥18॥

गुण - वान  पुरुष  हो  सेना - नायक  देश - धर्म  सबसे   ऊपर हो ।
संकल्प - विजय का जो रखता हो राष्ट्र-अभ्युदय में तत्पर हो॥18॥

8137
आविशन्कलशं सुतो विश्वा अर्षन्नभि श्रियः। शूरो न गोषु तिष्ठति॥19॥

अस्त्र- शस्त्र का वह ज्ञाता हो नित - नवीनता  का  हो  पुजारी ।
दृढ - स्वभाव का हो सेनापति दुश्मन पर पडता हो भारी॥19॥

8138
आ त इन्दो मदाय कं पयो दुहन्त्यायवः। देवा देवेभ्यो मधु॥20॥

ज्ञान - क्रिया  के ज्ञाता  ही  तो  वैभव  का  करते  उपभोग ।
यह वसुन्धरा वीरों की है वे यथा-योग्य करते उपयोग॥20॥

8139
आ नः सोमं पवित्र आ सृजता मधुमत्तमम् । देवेभ्यो देवश्रुतमम्॥21॥

वरण  करो वह सेना - नायक  जो  मधु-भाषी  मित - भाषी हो ।
सबकी सुने करे जो मन की छवि उज्ज्वल और प्रतापी हो॥21॥

8140
एते सोमा असृक्षत गृणाना: श्रवसे महे । मदिन्तमस्य धारया॥22॥
 
शौर्य - धैर्य  बल  का स्वामी हो उत्तम - गुण  का  हो  भण्डार । 
श्लाघनीय है वह सेनापति जो यश - वैभव का हो आगार॥22॥

8141
अभि गव्यानि वीतये नृम्णा पुनानो अर्षसि । सनद्वाजः परि स्त्रव॥23॥

वसुन्धरा  ही  भूख  मिटाती  सेना - नायक  यह  सब  जाने ।
भू - सम्पदा कहॉ है जाने संकल्प-भ्रमण में सब पहचाने॥23॥

8142
उत नो गोमतीरिषो विश्वा अर्ष परिष्टुभः। गृणानो जमदग्निना॥24॥

जन्म-भूमि हित रहे समर्पित बल - शाली  सेना -  नायक हो ।
देश - धर्म दायित्व निभाए सुख-कर हो सुख- दायक  हो॥24॥

8143
पवस्व वाचो अग्रियः सोम चित्राभिरूतिभिः। अभि विश्वानि काव्या॥25॥

हे  प्रभु  पूजनीय  परमेश्वर  तुम  रक्षा  करना  सदा  हमारी ।
हमको वाणी का वैभव देना हम आए हैं शरण तुम्हारी॥25॥

8144
त्वं समुद्रिया अपोग्रियो वाच ईरयन् । पवस्व विश्वमेजय॥26॥

हे  परमेश्वर  भय  हर  लेना  निर्भय  होकर  जीवन  जी  लें ।
दया-दृष्टि हम पर रखना प्रभु सुख का अमृत हम भी पी लें॥26॥

8145
तुभ्येमा भुवना कवे महिम्ने सोम तस्थिरे । तुभ्यमर्षन्ति सिन्धवः॥27॥

कितनी  सुन्दर  रचना  उसकी  कितना  सुन्दर  सागर  है ।
वह अनन्त भी नेति- नेति है छलका अमृत का गागर है॥27॥

8146
प्र ते दिवो न वृष्टयो धारा यन्त्यसश्चतः। अभि शुक्रामुपस्तिरम्॥28॥

जैसे  सेनायें  परेड  करतीं अपना  महत्व दिखलाती हैं ।
वैसे ही यह धरा - गगन प्रभु का महत्व दर्शाती हैं ॥28॥

8147
इन्द्रायेन्दुं पुनीतनोग्रं दक्षाय साधनम् । ईशानं वीतिराधसम्॥29॥

सेनापति निज दायित्व निभाता सबकी रक्षा वह  करता  है ।
प्रोत्साहन उसको देते रहना जो ध्यान देश का रखता है॥29॥

8148
पवमान ऋतः कविः सोमः पवित्रमासदत् । दधत्स्तोत्रे सुवीर्यम्॥30॥

देश  की  रक्षा  आवश्यक  है  देश - धर्म  है  बहुत  जरूरी ।
प्रोत्साहन दें सेनापति को जिम्मेदारी तब होगी पूरी॥30॥    
   

1 comment:


  1. वरण करो वह सेना - नायक जो मधु-भाषी मित - भाषी हो ।
    सबकी सुने करे जो मन की छवि उज्ज्वल और प्रतापी हो॥21॥
    ऐसा ही शासक आज भारत को चाहिए

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