[ऋषि- जमदग्नि भार्गव । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
8119
एते असृग्रमिन्दवस्तिरः पवित्रमाशवः । विश्वान्यभि सौभगा॥1॥
सेना - नायक सब प्रकार से तीनों सेना मजबूत बनाए ।
जल थल नभ हो सभी सुरक्षित प्रजा चैन से मौज मनाए॥1॥
8120
विघ्नन्तो दुरिता पुरु सुगा तोकाय वाजिनः। तना कृण्वन्तो अवर्ते॥2॥
देश सुरक्षित रहे हमारा नई - पौध खिल - कर मुस्काए ।
सेना - नायक मति - कौशल से राष्ट्र-प्रगति में हाथ बँटाए॥2॥
8121
कृण्वन्तो वरिवो गवेSभ्यर्षन्ति सुष्टुतिम् । इळामस्मभ्यं संयतम्॥3॥
प्रजा सुरक्षित रहे हमारी नौनिहाल हों सभी सुरक्षित ।
अविरल नूतन अन्वेषण हो देश की सीमा रहे सुरक्षित॥3॥
8122
असाव्यंशुर्मदायाप्सु दक्षो गिरिष्ठा:। श्येनो न योनिमासदत्॥4॥
सेना - नायक राज - धर्म का करता हो सुन्दर निर्वाह ।
राष्ट्र - धर्म पर मर - मिटने की रखता हो वह मन में चाह॥4॥
8123
शुभ्रमन्धो देववातमप्सु धूतो नृभिः सुतः। स्वदन्ति गावः पयोभिः॥5॥
जब देश सुरक्षित होता है बस तभी ख्याति वह पा सकता है ।
वैज्ञानिक अन्वेषण करते खलिहान-खेत कुछ-कुछ कहता है॥5॥
8124
आदीमश्वं न हेतारोSशूशुभन्नमृताय । मध्वो रसं सधमादे॥6॥
देश में खुशहाली आती है विविध - कलायें मुस्काती हैं ।
यश - वैभव बढता जाता है राग-रगिनी खुद गाती हैं ॥6॥
8125
यास्ते धारा मधुश्चुतोSसृग्रमिन्द ऊतये । ताभिः पवित्रमासदः॥7॥
सेनापति है कवच राष्ट्र का वह सबको अभय बनाता है ।
सुख-कर जीवन वह देता है प्रगति-पन्थ पर पहुँचाता है॥7॥
8126
सो अर्षेन्द्राय पीतये तिरो रोमाण्यव्यया । सीदन्योना वनेष्वा॥8॥
जब देश सुरक्षित होता है तब वैज्ञानिक अन्वेषण करता ।
विज्ञान-ज्ञान विकसित होते हैं नव-विचार हर मन में बहता॥8॥
8127
त्वमिन्दो परि स्त्रव स्वादिष्ठो अङ्गिरोभ्यः। वरिवोविद् घृतं पयः॥9॥
प्रजातन्त्र में प्रजा है राजा उसे सजग अविरल रहना है ।
देश-धर्म अति आवश्यक है राजा पर अॅकुश रखना है ॥9॥
8128
अयं विचर्षणिर्हितः पवमानः स चेतति । हिन्वान आप्यं बृहत्॥10॥
जो सेना-नायक तत्पर है जो राज-धर्म का रखता ध्यान ।
वह देश तरक्की करता है वह बन जाता है राष्ट्र- महान॥10॥
8129
एष वृषा वृषव्रतः पवमानो अशस्तिहा । करद्वसूनि दाशुषे॥11॥
सेनापति से ही सब सुख है देश प्रगति पथ पर जाता है ।
वैज्ञानिक अन्वेषण करता गायक राग- देस गाता है ॥11॥
8130
आ पवस्व सहस्त्रिणं रयिं गोमन्तमश्विनम् । पुरुश्चन्द्रं पुरुस्पृहम्॥12॥
सेना - नायक अस्त्र - शस्त्र से सीमाओं को रखे सुरक्षित ।
शब्द-सर्जना अति उत्तम हो सुन्दर चिन्तन हो सम्प्रेषित॥12॥
8131
एष स्य परि षिच्यते मर्मृज्यमान आयुभिः। उरुगायः कविक्रतुः॥13॥
वह तेजस्वी हो ओजस्वी हो सेनापति हो गुण - सम्पन्न ।
भीतर चाहे खलबली मची हो पर बाहर दिखता हो प्रसन्न॥13॥
8132
सहस्त्रोतिः शतामघो विमानो रजसः कविः। इन्द्राय पवते मदः॥14॥
विद्वानों का आदर करता हो पूर्वाग्रह से हो वह मुक्त ।
हर क्षण चौकन्ना रहता हो जीवन जीता हो उन्मुक्त॥14॥
8133
गिरा जात इह स्तुत इन्दुरिन्द्राय धीयते । विर्योना वसताविव॥15॥
जैसे अस्त्र - शस्त्र से सेना सदा सुरक्षित रहती है ।
सेनापति का सम्भाषण भी जनता को निर्भय करती है॥15॥
8134
पवमानः सुतो नृभिःसोमो वाजमिवासरत् । चमूषु शक्मनासदम्॥16॥
पराक्रमी हो सेना- नायक तीव्र वेग से वह चलता हो ।
भयभीत करे जो दुश्मन को ऐसा शौर्य- धैर्य रखता हो॥16॥
8135
तं त्रिपृष्ठे त्रिवन्धुरे रथे युञ्जन्ति यातवे । ऋषीणां सप्त धीतिभिः॥17॥
सेनापति का यान-अद्भुत हो जो जल थल नभ में सुख से विचरे ।
विकर्षण - आकर्षण दोनों हो अविरल अनन्त परिशोध करे॥17॥
8136
तं सोतारो धनस्पृतमाशुं वाजाय यातवे । हरिं हिनोत वाजिनम्॥18॥
गुण - वान पुरुष हो सेना - नायक देश - धर्म सबसे ऊपर हो ।
संकल्प - विजय का जो रखता हो राष्ट्र-अभ्युदय में तत्पर हो॥18॥
8137
आविशन्कलशं सुतो विश्वा अर्षन्नभि श्रियः। शूरो न गोषु तिष्ठति॥19॥
अस्त्र- शस्त्र का वह ज्ञाता हो नित - नवीनता का हो पुजारी ।
दृढ - स्वभाव का हो सेनापति दुश्मन पर पडता हो भारी॥19॥
8138
आ त इन्दो मदाय कं पयो दुहन्त्यायवः। देवा देवेभ्यो मधु॥20॥
ज्ञान - क्रिया के ज्ञाता ही तो वैभव का करते उपभोग ।
यह वसुन्धरा वीरों की है वे यथा-योग्य करते उपयोग॥20॥
8139
आ नः सोमं पवित्र आ सृजता मधुमत्तमम् । देवेभ्यो देवश्रुतमम्॥21॥
वरण करो वह सेना - नायक जो मधु-भाषी मित - भाषी हो ।
सबकी सुने करे जो मन की छवि उज्ज्वल और प्रतापी हो॥21॥
8140
एते सोमा असृक्षत गृणाना: श्रवसे महे । मदिन्तमस्य धारया॥22॥
शौर्य - धैर्य बल का स्वामी हो उत्तम - गुण का हो भण्डार ।
श्लाघनीय है वह सेनापति जो यश - वैभव का हो आगार॥22॥
8141
अभि गव्यानि वीतये नृम्णा पुनानो अर्षसि । सनद्वाजः परि स्त्रव॥23॥
वसुन्धरा ही भूख मिटाती सेना - नायक यह सब जाने ।
भू - सम्पदा कहॉ है जाने संकल्प-भ्रमण में सब पहचाने॥23॥
8142
उत नो गोमतीरिषो विश्वा अर्ष परिष्टुभः। गृणानो जमदग्निना॥24॥
जन्म-भूमि हित रहे समर्पित बल - शाली सेना - नायक हो ।
देश - धर्म दायित्व निभाए सुख-कर हो सुख- दायक हो॥24॥
8143
पवस्व वाचो अग्रियः सोम चित्राभिरूतिभिः। अभि विश्वानि काव्या॥25॥
हे प्रभु पूजनीय परमेश्वर तुम रक्षा करना सदा हमारी ।
हमको वाणी का वैभव देना हम आए हैं शरण तुम्हारी॥25॥
8144
त्वं समुद्रिया अपोग्रियो वाच ईरयन् । पवस्व विश्वमेजय॥26॥
हे परमेश्वर भय हर लेना निर्भय होकर जीवन जी लें ।
दया-दृष्टि हम पर रखना प्रभु सुख का अमृत हम भी पी लें॥26॥
8145
तुभ्येमा भुवना कवे महिम्ने सोम तस्थिरे । तुभ्यमर्षन्ति सिन्धवः॥27॥
कितनी सुन्दर रचना उसकी कितना सुन्दर सागर है ।
वह अनन्त भी नेति- नेति है छलका अमृत का गागर है॥27॥
8146
प्र ते दिवो न वृष्टयो धारा यन्त्यसश्चतः। अभि शुक्रामुपस्तिरम्॥28॥
जैसे सेनायें परेड करतीं अपना महत्व दिखलाती हैं ।
वैसे ही यह धरा - गगन प्रभु का महत्व दर्शाती हैं ॥28॥
8147
इन्द्रायेन्दुं पुनीतनोग्रं दक्षाय साधनम् । ईशानं वीतिराधसम्॥29॥
सेनापति निज दायित्व निभाता सबकी रक्षा वह करता है ।
प्रोत्साहन उसको देते रहना जो ध्यान देश का रखता है॥29॥
8148
पवमान ऋतः कविः सोमः पवित्रमासदत् । दधत्स्तोत्रे सुवीर्यम्॥30॥
देश की रक्षा आवश्यक है देश - धर्म है बहुत जरूरी ।
प्रोत्साहन दें सेनापति को जिम्मेदारी तब होगी पूरी॥30॥
8119
एते असृग्रमिन्दवस्तिरः पवित्रमाशवः । विश्वान्यभि सौभगा॥1॥
सेना - नायक सब प्रकार से तीनों सेना मजबूत बनाए ।
जल थल नभ हो सभी सुरक्षित प्रजा चैन से मौज मनाए॥1॥
8120
विघ्नन्तो दुरिता पुरु सुगा तोकाय वाजिनः। तना कृण्वन्तो अवर्ते॥2॥
देश सुरक्षित रहे हमारा नई - पौध खिल - कर मुस्काए ।
सेना - नायक मति - कौशल से राष्ट्र-प्रगति में हाथ बँटाए॥2॥
8121
कृण्वन्तो वरिवो गवेSभ्यर्षन्ति सुष्टुतिम् । इळामस्मभ्यं संयतम्॥3॥
प्रजा सुरक्षित रहे हमारी नौनिहाल हों सभी सुरक्षित ।
अविरल नूतन अन्वेषण हो देश की सीमा रहे सुरक्षित॥3॥
8122
असाव्यंशुर्मदायाप्सु दक्षो गिरिष्ठा:। श्येनो न योनिमासदत्॥4॥
सेना - नायक राज - धर्म का करता हो सुन्दर निर्वाह ।
राष्ट्र - धर्म पर मर - मिटने की रखता हो वह मन में चाह॥4॥
8123
शुभ्रमन्धो देववातमप्सु धूतो नृभिः सुतः। स्वदन्ति गावः पयोभिः॥5॥
जब देश सुरक्षित होता है बस तभी ख्याति वह पा सकता है ।
वैज्ञानिक अन्वेषण करते खलिहान-खेत कुछ-कुछ कहता है॥5॥
8124
आदीमश्वं न हेतारोSशूशुभन्नमृताय । मध्वो रसं सधमादे॥6॥
देश में खुशहाली आती है विविध - कलायें मुस्काती हैं ।
यश - वैभव बढता जाता है राग-रगिनी खुद गाती हैं ॥6॥
8125
यास्ते धारा मधुश्चुतोSसृग्रमिन्द ऊतये । ताभिः पवित्रमासदः॥7॥
सेनापति है कवच राष्ट्र का वह सबको अभय बनाता है ।
सुख-कर जीवन वह देता है प्रगति-पन्थ पर पहुँचाता है॥7॥
8126
सो अर्षेन्द्राय पीतये तिरो रोमाण्यव्यया । सीदन्योना वनेष्वा॥8॥
जब देश सुरक्षित होता है तब वैज्ञानिक अन्वेषण करता ।
विज्ञान-ज्ञान विकसित होते हैं नव-विचार हर मन में बहता॥8॥
8127
त्वमिन्दो परि स्त्रव स्वादिष्ठो अङ्गिरोभ्यः। वरिवोविद् घृतं पयः॥9॥
प्रजातन्त्र में प्रजा है राजा उसे सजग अविरल रहना है ।
देश-धर्म अति आवश्यक है राजा पर अॅकुश रखना है ॥9॥
8128
अयं विचर्षणिर्हितः पवमानः स चेतति । हिन्वान आप्यं बृहत्॥10॥
जो सेना-नायक तत्पर है जो राज-धर्म का रखता ध्यान ।
वह देश तरक्की करता है वह बन जाता है राष्ट्र- महान॥10॥
8129
एष वृषा वृषव्रतः पवमानो अशस्तिहा । करद्वसूनि दाशुषे॥11॥
सेनापति से ही सब सुख है देश प्रगति पथ पर जाता है ।
वैज्ञानिक अन्वेषण करता गायक राग- देस गाता है ॥11॥
8130
आ पवस्व सहस्त्रिणं रयिं गोमन्तमश्विनम् । पुरुश्चन्द्रं पुरुस्पृहम्॥12॥
सेना - नायक अस्त्र - शस्त्र से सीमाओं को रखे सुरक्षित ।
शब्द-सर्जना अति उत्तम हो सुन्दर चिन्तन हो सम्प्रेषित॥12॥
8131
एष स्य परि षिच्यते मर्मृज्यमान आयुभिः। उरुगायः कविक्रतुः॥13॥
वह तेजस्वी हो ओजस्वी हो सेनापति हो गुण - सम्पन्न ।
भीतर चाहे खलबली मची हो पर बाहर दिखता हो प्रसन्न॥13॥
8132
सहस्त्रोतिः शतामघो विमानो रजसः कविः। इन्द्राय पवते मदः॥14॥
विद्वानों का आदर करता हो पूर्वाग्रह से हो वह मुक्त ।
हर क्षण चौकन्ना रहता हो जीवन जीता हो उन्मुक्त॥14॥
8133
गिरा जात इह स्तुत इन्दुरिन्द्राय धीयते । विर्योना वसताविव॥15॥
जैसे अस्त्र - शस्त्र से सेना सदा सुरक्षित रहती है ।
सेनापति का सम्भाषण भी जनता को निर्भय करती है॥15॥
8134
पवमानः सुतो नृभिःसोमो वाजमिवासरत् । चमूषु शक्मनासदम्॥16॥
पराक्रमी हो सेना- नायक तीव्र वेग से वह चलता हो ।
भयभीत करे जो दुश्मन को ऐसा शौर्य- धैर्य रखता हो॥16॥
8135
तं त्रिपृष्ठे त्रिवन्धुरे रथे युञ्जन्ति यातवे । ऋषीणां सप्त धीतिभिः॥17॥
सेनापति का यान-अद्भुत हो जो जल थल नभ में सुख से विचरे ।
विकर्षण - आकर्षण दोनों हो अविरल अनन्त परिशोध करे॥17॥
8136
तं सोतारो धनस्पृतमाशुं वाजाय यातवे । हरिं हिनोत वाजिनम्॥18॥
गुण - वान पुरुष हो सेना - नायक देश - धर्म सबसे ऊपर हो ।
संकल्प - विजय का जो रखता हो राष्ट्र-अभ्युदय में तत्पर हो॥18॥
8137
आविशन्कलशं सुतो विश्वा अर्षन्नभि श्रियः। शूरो न गोषु तिष्ठति॥19॥
अस्त्र- शस्त्र का वह ज्ञाता हो नित - नवीनता का हो पुजारी ।
दृढ - स्वभाव का हो सेनापति दुश्मन पर पडता हो भारी॥19॥
8138
आ त इन्दो मदाय कं पयो दुहन्त्यायवः। देवा देवेभ्यो मधु॥20॥
ज्ञान - क्रिया के ज्ञाता ही तो वैभव का करते उपभोग ।
यह वसुन्धरा वीरों की है वे यथा-योग्य करते उपयोग॥20॥
8139
आ नः सोमं पवित्र आ सृजता मधुमत्तमम् । देवेभ्यो देवश्रुतमम्॥21॥
वरण करो वह सेना - नायक जो मधु-भाषी मित - भाषी हो ।
सबकी सुने करे जो मन की छवि उज्ज्वल और प्रतापी हो॥21॥
8140
एते सोमा असृक्षत गृणाना: श्रवसे महे । मदिन्तमस्य धारया॥22॥
शौर्य - धैर्य बल का स्वामी हो उत्तम - गुण का हो भण्डार ।
श्लाघनीय है वह सेनापति जो यश - वैभव का हो आगार॥22॥
8141
अभि गव्यानि वीतये नृम्णा पुनानो अर्षसि । सनद्वाजः परि स्त्रव॥23॥
वसुन्धरा ही भूख मिटाती सेना - नायक यह सब जाने ।
भू - सम्पदा कहॉ है जाने संकल्प-भ्रमण में सब पहचाने॥23॥
8142
उत नो गोमतीरिषो विश्वा अर्ष परिष्टुभः। गृणानो जमदग्निना॥24॥
जन्म-भूमि हित रहे समर्पित बल - शाली सेना - नायक हो ।
देश - धर्म दायित्व निभाए सुख-कर हो सुख- दायक हो॥24॥
8143
पवस्व वाचो अग्रियः सोम चित्राभिरूतिभिः। अभि विश्वानि काव्या॥25॥
हे प्रभु पूजनीय परमेश्वर तुम रक्षा करना सदा हमारी ।
हमको वाणी का वैभव देना हम आए हैं शरण तुम्हारी॥25॥
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त्वं समुद्रिया अपोग्रियो वाच ईरयन् । पवस्व विश्वमेजय॥26॥
हे परमेश्वर भय हर लेना निर्भय होकर जीवन जी लें ।
दया-दृष्टि हम पर रखना प्रभु सुख का अमृत हम भी पी लें॥26॥
8145
तुभ्येमा भुवना कवे महिम्ने सोम तस्थिरे । तुभ्यमर्षन्ति सिन्धवः॥27॥
कितनी सुन्दर रचना उसकी कितना सुन्दर सागर है ।
वह अनन्त भी नेति- नेति है छलका अमृत का गागर है॥27॥
8146
प्र ते दिवो न वृष्टयो धारा यन्त्यसश्चतः। अभि शुक्रामुपस्तिरम्॥28॥
जैसे सेनायें परेड करतीं अपना महत्व दिखलाती हैं ।
वैसे ही यह धरा - गगन प्रभु का महत्व दर्शाती हैं ॥28॥
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इन्द्रायेन्दुं पुनीतनोग्रं दक्षाय साधनम् । ईशानं वीतिराधसम्॥29॥
सेनापति निज दायित्व निभाता सबकी रक्षा वह करता है ।
प्रोत्साहन उसको देते रहना जो ध्यान देश का रखता है॥29॥
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पवमान ऋतः कविः सोमः पवित्रमासदत् । दधत्स्तोत्रे सुवीर्यम्॥30॥
देश की रक्षा आवश्यक है देश - धर्म है बहुत जरूरी ।
प्रोत्साहन दें सेनापति को जिम्मेदारी तब होगी पूरी॥30॥
ReplyDeleteवरण करो वह सेना - नायक जो मधु-भाषी मित - भाषी हो ।
सबकी सुने करे जो मन की छवि उज्ज्वल और प्रतापी हो॥21॥
ऐसा ही शासक आज भारत को चाहिए