[ऋषि- मेध्यातिथि काण्व । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
8003
यो अत्य इव गोभिर्मदाय हर्यतः। तं गीर्भिर्वासयामसि ॥1॥
सर्वोपरि है वह परमात्मा विद्युत - सम है फिर भी ग्राह्य है ।
अनुष्ठान से वह मिलता है उपासना से सहज प्राप्य है ॥1॥
8004
तं नो विश्वा अवस्युवो गिरःशुम्भन्ति पूर्वथा । इन्दुमिन्द्राय पीतये॥2॥
वह आलोक - पुञ्ज परमात्मा मानव को देता है परितोष ।
हम उनकी पूजा करते हैं वे हमको देते हैं सन्तोष ॥2॥
8005
पुनानो याति हर्यतः सोमो गीर्भिः परिष्कृतः। विप्रस्य मेध्यातिथेः॥3॥
जो ज्ञान - मार्ग पर चलते हैं वे ज्ञान - ज्योति सँग रहते हैं ।
मन - मन्दिर में दीप जलाते परमेश्वर का दर्शन करते हैं॥3॥
8006
पवमान विदा रयिमस्मभ्यं सोम सुश्रियम् । इन्दो सहस्त्रवर्चसम्॥4॥
सबको पावन करने वाला वह प्रभु प्रोत्साहित करता है ।
साधक सद्- गति पाता है आनन्द-रस-पान वही करता है॥4॥
8007
इन्रदुत्यो न वाजसृत्कनिक्रन्ति पवित्र आ । यदक्षारति देवयुः॥5॥
सज्जन के मन के मन्दिर में प्रभु की ज्योति सदा जलती है ।
पावन - मन में प्रभु बसता है जहॉ निर्मल सरिता बहती है॥5॥
8008
पवस्व वाजसातये विप्रस्य गृणतो वृधे । सोम रास्व सुवीर्यम्॥6॥
उद्योगी को सब कुछ मिलता है परमेश्वर देते हैं आनन्द ।
यश - वैभव वह ही पाता है वह ही देते हैं परमानन्द ॥6॥
8003
यो अत्य इव गोभिर्मदाय हर्यतः। तं गीर्भिर्वासयामसि ॥1॥
सर्वोपरि है वह परमात्मा विद्युत - सम है फिर भी ग्राह्य है ।
अनुष्ठान से वह मिलता है उपासना से सहज प्राप्य है ॥1॥
8004
तं नो विश्वा अवस्युवो गिरःशुम्भन्ति पूर्वथा । इन्दुमिन्द्राय पीतये॥2॥
वह आलोक - पुञ्ज परमात्मा मानव को देता है परितोष ।
हम उनकी पूजा करते हैं वे हमको देते हैं सन्तोष ॥2॥
8005
पुनानो याति हर्यतः सोमो गीर्भिः परिष्कृतः। विप्रस्य मेध्यातिथेः॥3॥
जो ज्ञान - मार्ग पर चलते हैं वे ज्ञान - ज्योति सँग रहते हैं ।
मन - मन्दिर में दीप जलाते परमेश्वर का दर्शन करते हैं॥3॥
8006
पवमान विदा रयिमस्मभ्यं सोम सुश्रियम् । इन्दो सहस्त्रवर्चसम्॥4॥
सबको पावन करने वाला वह प्रभु प्रोत्साहित करता है ।
साधक सद्- गति पाता है आनन्द-रस-पान वही करता है॥4॥
8007
इन्रदुत्यो न वाजसृत्कनिक्रन्ति पवित्र आ । यदक्षारति देवयुः॥5॥
सज्जन के मन के मन्दिर में प्रभु की ज्योति सदा जलती है ।
पावन - मन में प्रभु बसता है जहॉ निर्मल सरिता बहती है॥5॥
8008
पवस्व वाजसातये विप्रस्य गृणतो वृधे । सोम रास्व सुवीर्यम्॥6॥
उद्योगी को सब कुछ मिलता है परमेश्वर देते हैं आनन्द ।
यश - वैभव वह ही पाता है वह ही देते हैं परमानन्द ॥6॥
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