[ऋषि- प्रभूवसु आङ्गिरस । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
7955
आ नः पवस्व धरया पवमान रयिं पृथुम् । यया ज्योतिर्विदासि नः॥1॥
जो मनुज स्वयं को पात्र बनाता वह आत्म - ज्ञान पा जाता है ।
प्रभु उसको प्रोत्साहित करता खुद मञ्जिल तक पहुँचाता है ॥1॥
7956
इन्दो समुद्रमीङ्खय पवस्व विश्वमेजय । रायो धर्ता न ओजसा॥2॥
यश - वैभव के स्वामी प्रभु हैं सबको सुख - वैभव देते हैं ।
मन का मालिक मनुज स्वतः है प्रभु सबको अपना लेते हैं॥2॥
7957
त्वया वीरेण वीरवोSभि ष्याम पृतन्यतः। क्षरा णो अभि वार्यम्॥3॥
जिसकी जैसी अभिलाषा है वह वैसा ही फल पाता है ।
प्रभु इच्छानुरूप फल देते आपना उससे अद्भुत नाता है ॥3॥
7958
प्र वाजमिन्दुरिष्यति सिषासन्वाजसा ऋषिः। व्रता विदान आयुधा॥4॥
सत् - पथ पर जो भी चलता है वह ही यश - वैभव पाता है ।
साधक पाता सदा अनुग्रह भव - सागर पार उतर जाता है ॥4॥
7959
तं गीर्भिर्वाचमीङ्खयं पुनानं वासयामसि । सोमं जनस्य गोपतिम्॥5॥
सत् - गुण आकर्षित करता है प्रभु दौड के जाते उसके पास ।
परम - प्राप्ति यह ही कहलाता परमेश्वर रहते आस - पास ॥5॥
7960
विश्वो यस्य व्रते जनो दाधार धर्मणस्पतेः। पुनानस्य प्रभूवसोः॥6॥
वह अनन्त वैभव का स्वामी हम सबके सुख का आधार ।
नीति - नेम का पाठ - पढाता उसकी लीला अपरम्पार ॥6॥
7955
आ नः पवस्व धरया पवमान रयिं पृथुम् । यया ज्योतिर्विदासि नः॥1॥
जो मनुज स्वयं को पात्र बनाता वह आत्म - ज्ञान पा जाता है ।
प्रभु उसको प्रोत्साहित करता खुद मञ्जिल तक पहुँचाता है ॥1॥
7956
इन्दो समुद्रमीङ्खय पवस्व विश्वमेजय । रायो धर्ता न ओजसा॥2॥
यश - वैभव के स्वामी प्रभु हैं सबको सुख - वैभव देते हैं ।
मन का मालिक मनुज स्वतः है प्रभु सबको अपना लेते हैं॥2॥
7957
त्वया वीरेण वीरवोSभि ष्याम पृतन्यतः। क्षरा णो अभि वार्यम्॥3॥
जिसकी जैसी अभिलाषा है वह वैसा ही फल पाता है ।
प्रभु इच्छानुरूप फल देते आपना उससे अद्भुत नाता है ॥3॥
7958
प्र वाजमिन्दुरिष्यति सिषासन्वाजसा ऋषिः। व्रता विदान आयुधा॥4॥
सत् - पथ पर जो भी चलता है वह ही यश - वैभव पाता है ।
साधक पाता सदा अनुग्रह भव - सागर पार उतर जाता है ॥4॥
7959
तं गीर्भिर्वाचमीङ्खयं पुनानं वासयामसि । सोमं जनस्य गोपतिम्॥5॥
सत् - गुण आकर्षित करता है प्रभु दौड के जाते उसके पास ।
परम - प्राप्ति यह ही कहलाता परमेश्वर रहते आस - पास ॥5॥
7960
विश्वो यस्य व्रते जनो दाधार धर्मणस्पतेः। पुनानस्य प्रभूवसोः॥6॥
वह अनन्त वैभव का स्वामी हम सबके सुख का आधार ।
नीति - नेम का पाठ - पढाता उसकी लीला अपरम्पार ॥6॥
सत् - पथ पर जो भी चलता है वह ही यश - वैभव पाता है ।
ReplyDeleteसाधक पाता सदा अनुग्रह भव - सागर पार उतर जाता है ॥4॥
जिसने कृपा का दामन थामा वही पार उतर गया..