[ऋषि- अयास्य आङ्गिरस । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
8015
स पवस्व मदाय कं नृचक्षा देववीतये । इन्दविन्द्राय पीतये॥1॥
मानव के मन - मन्दिर में प्रति - पल परमेश्वर का रहता वास ।
वह हमको रेखाञ्कित करता है हर पल रहता है आस-पास॥1॥
8016
स नो अर्षाभि दूत्यं1त्वमिन्द्राय तोशसे।देवान्त्सखिभ्य आ वरम्॥2॥
कर्मानुसार ही फल मिलता है सत्कर्मों का फल है सुख ।
इससे कोई बच नहीं सकता दुष्कर्मों का प्रति - फल दुख ॥2॥
8017
उत त्वामरुणं वयं गोभिरञ्ज्मो मदाय कम् । वि नो राये दुरो वृधि॥3॥
जीवन में गति आवश्यक है गति है जीवन की पहचान ।
कर्म - मार्ग है सुखद इसी से आ जाओ सब है आह्वान ॥3॥
8018
अत्यू पवित्रमक्रमीद्वाजी धुरं न यामनि । इन्दुर्देवेषु पत्यते ॥4॥
परमात्मा है सबका आश्रय हम सबका है वह आधार ।
वह ज्ञानी के मन में बसता दिव्य - गुणों का है आगार ॥4॥
8019
समी सखायो अस्वरन्वने क्रीळन्तमत्यविम् । इन्दुं नावा अनूषत॥5॥
परमात्मा सबका रक्षक है परमात्मा है सखा - समान ।
मन ही मन हम बातें करते दीन - बन्धु हैं वे भगवान ॥5॥
8020
तया पवस्व धारया यया पीतो विचक्षसे । इन्दो स्तोत्रे सुवीर्यम्॥6॥
ज्ञान - कर्म की अविरल गति से मनुज - मात्र का बढता बल ।
आनन्द - रूप है वह परमेश्वर सबको देता कर्मों का फल ॥6॥
8015
स पवस्व मदाय कं नृचक्षा देववीतये । इन्दविन्द्राय पीतये॥1॥
मानव के मन - मन्दिर में प्रति - पल परमेश्वर का रहता वास ।
वह हमको रेखाञ्कित करता है हर पल रहता है आस-पास॥1॥
8016
स नो अर्षाभि दूत्यं1त्वमिन्द्राय तोशसे।देवान्त्सखिभ्य आ वरम्॥2॥
कर्मानुसार ही फल मिलता है सत्कर्मों का फल है सुख ।
इससे कोई बच नहीं सकता दुष्कर्मों का प्रति - फल दुख ॥2॥
8017
उत त्वामरुणं वयं गोभिरञ्ज्मो मदाय कम् । वि नो राये दुरो वृधि॥3॥
जीवन में गति आवश्यक है गति है जीवन की पहचान ।
कर्म - मार्ग है सुखद इसी से आ जाओ सब है आह्वान ॥3॥
8018
अत्यू पवित्रमक्रमीद्वाजी धुरं न यामनि । इन्दुर्देवेषु पत्यते ॥4॥
परमात्मा है सबका आश्रय हम सबका है वह आधार ।
वह ज्ञानी के मन में बसता दिव्य - गुणों का है आगार ॥4॥
8019
समी सखायो अस्वरन्वने क्रीळन्तमत्यविम् । इन्दुं नावा अनूषत॥5॥
परमात्मा सबका रक्षक है परमात्मा है सखा - समान ।
मन ही मन हम बातें करते दीन - बन्धु हैं वे भगवान ॥5॥
8020
तया पवस्व धारया यया पीतो विचक्षसे । इन्दो स्तोत्रे सुवीर्यम्॥6॥
ज्ञान - कर्म की अविरल गति से मनुज - मात्र का बढता बल ।
आनन्द - रूप है वह परमेश्वर सबको देता कर्मों का फल ॥6॥
बहुत बढिया
ReplyDeleteपरमात्मा है सबका आश्रय हम सबका है वह आधार ।
ReplyDeleteवह ज्ञानी के मन में बसता दिव्य - गुणों का है आगार ॥4॥
उस परमात्मा को नमन..
कर्मन की गति न्यारी...
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