Wednesday 21 May 2014

सूक्त - 36

[ऋषि- प्रभूवसु आङ्गिरस । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

7961
असर्जि रथ्यो यथा पवित्रे चम्वोः सुतः। कार्ष्मन्वाजी न्यक्रमीत्॥1॥

कण - कण  में  वास  तुम्हारा  पर  निर्मल - मन  में  रहते  हो ।
जो  तेरा  सुमिरन  करता  है  उस  पर  कृपा सदा करते  हो ॥1॥

7962
स वह्निः सोम जागृविः पवस्व देववीरति । अभि कोशं मधुश्चुतम्॥2॥

नित्य  शुध्द  हो  नित्य  बुध्द  हो  सबको  तुम  प्रेरित  करते  हो ।
विद्वत् - जन अति प्रिय है तुमको दया - दृष्टि सब पर रखते हो ॥2॥

7963
स नो ज्योतींषि पूर्व्यं पवमान विरोचय । क्रत्वे दक्षाय नो  हिनु ॥3॥

ज्ञान - आलोक दिखाओ भगवन अज्ञान -तमस को तुम्हीं मिटाओ ।
परम - ज्योति की महिमा जानूँ  तुम  मुझको सन्मार्ग दिखाओ॥3॥

7964
शुम्भमान ऋतायुभिर्मृज्यमानो गभस्त्योः। पवते वारे अव्यये॥4॥

चिन्तन- मनन- निदिध्यासन  से  जो  सतत - साधना  करते  हैं ।
वे  ही  मनुज  मोक्ष  पाते  हैं  जो सतत ध्यान  करते  रहते  हैं ॥4॥ 

7965
स विश्वा दाशुषे वसु सोमो दिव्यानि पार्थिवा । पवतामान्तरिक्ष्या॥5॥

जो  प्रभु  से  बहुत  प्यार  करते  हैं वे  दिव्य - गुणों  को अपनाते  हैं ।
मन - वचन - कर्म  में  संगति होती यश मिलने पर सकुचाते हैं ॥5॥

7966
आ दिवस्पृष्ठमश्वयुर्गव्ययुः सोम रोहसि । वीरयुः शवसस्पते ॥6॥

परमात्मा  सज्जन  का  रक्षक  शौर्य - धैर्य  का  वह  स्वामी  है ।
वह  सज्जन  को  वैभव  देता  भक्तों  का  वह  अनुगामी  है  ॥6॥

1 comment:

  1. नित्य शुध्द हो नित्य बुध्द हो सबको तुम प्रेरित करते हो ।
    विद्वत् - जन अति प्रिय है तुमको दया - दृष्टि सब पर रखते हो

    परमात्मा की कृपा हर क्षण हर जगह हरेक पर बरस ही रही है

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