[ऋषि- प्रभूवसु आङ्गिरस । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
7961
असर्जि रथ्यो यथा पवित्रे चम्वोः सुतः। कार्ष्मन्वाजी न्यक्रमीत्॥1॥
कण - कण में वास तुम्हारा पर निर्मल - मन में रहते हो ।
जो तेरा सुमिरन करता है उस पर कृपा सदा करते हो ॥1॥
7962
स वह्निः सोम जागृविः पवस्व देववीरति । अभि कोशं मधुश्चुतम्॥2॥
नित्य शुध्द हो नित्य बुध्द हो सबको तुम प्रेरित करते हो ।
विद्वत् - जन अति प्रिय है तुमको दया - दृष्टि सब पर रखते हो ॥2॥
7963
स नो ज्योतींषि पूर्व्यं पवमान विरोचय । क्रत्वे दक्षाय नो हिनु ॥3॥
ज्ञान - आलोक दिखाओ भगवन अज्ञान -तमस को तुम्हीं मिटाओ ।
परम - ज्योति की महिमा जानूँ तुम मुझको सन्मार्ग दिखाओ॥3॥
7964
शुम्भमान ऋतायुभिर्मृज्यमानो गभस्त्योः। पवते वारे अव्यये॥4॥
चिन्तन- मनन- निदिध्यासन से जो सतत - साधना करते हैं ।
वे ही मनुज मोक्ष पाते हैं जो सतत ध्यान करते रहते हैं ॥4॥
7965
स विश्वा दाशुषे वसु सोमो दिव्यानि पार्थिवा । पवतामान्तरिक्ष्या॥5॥
जो प्रभु से बहुत प्यार करते हैं वे दिव्य - गुणों को अपनाते हैं ।
मन - वचन - कर्म में संगति होती यश मिलने पर सकुचाते हैं ॥5॥
7966
आ दिवस्पृष्ठमश्वयुर्गव्ययुः सोम रोहसि । वीरयुः शवसस्पते ॥6॥
परमात्मा सज्जन का रक्षक शौर्य - धैर्य का वह स्वामी है ।
वह सज्जन को वैभव देता भक्तों का वह अनुगामी है ॥6॥
7961
असर्जि रथ्यो यथा पवित्रे चम्वोः सुतः। कार्ष्मन्वाजी न्यक्रमीत्॥1॥
कण - कण में वास तुम्हारा पर निर्मल - मन में रहते हो ।
जो तेरा सुमिरन करता है उस पर कृपा सदा करते हो ॥1॥
7962
स वह्निः सोम जागृविः पवस्व देववीरति । अभि कोशं मधुश्चुतम्॥2॥
नित्य शुध्द हो नित्य बुध्द हो सबको तुम प्रेरित करते हो ।
विद्वत् - जन अति प्रिय है तुमको दया - दृष्टि सब पर रखते हो ॥2॥
7963
स नो ज्योतींषि पूर्व्यं पवमान विरोचय । क्रत्वे दक्षाय नो हिनु ॥3॥
ज्ञान - आलोक दिखाओ भगवन अज्ञान -तमस को तुम्हीं मिटाओ ।
परम - ज्योति की महिमा जानूँ तुम मुझको सन्मार्ग दिखाओ॥3॥
7964
शुम्भमान ऋतायुभिर्मृज्यमानो गभस्त्योः। पवते वारे अव्यये॥4॥
चिन्तन- मनन- निदिध्यासन से जो सतत - साधना करते हैं ।
वे ही मनुज मोक्ष पाते हैं जो सतत ध्यान करते रहते हैं ॥4॥
7965
स विश्वा दाशुषे वसु सोमो दिव्यानि पार्थिवा । पवतामान्तरिक्ष्या॥5॥
जो प्रभु से बहुत प्यार करते हैं वे दिव्य - गुणों को अपनाते हैं ।
मन - वचन - कर्म में संगति होती यश मिलने पर सकुचाते हैं ॥5॥
7966
आ दिवस्पृष्ठमश्वयुर्गव्ययुः सोम रोहसि । वीरयुः शवसस्पते ॥6॥
परमात्मा सज्जन का रक्षक शौर्य - धैर्य का वह स्वामी है ।
वह सज्जन को वैभव देता भक्तों का वह अनुगामी है ॥6॥
नित्य शुध्द हो नित्य बुध्द हो सबको तुम प्रेरित करते हो ।
ReplyDeleteविद्वत् - जन अति प्रिय है तुमको दया - दृष्टि सब पर रखते हो
परमात्मा की कृपा हर क्षण हर जगह हरेक पर बरस ही रही है