[ऋषि- कवि भार्गव । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
8037
पवस्व वृष्टिमा सु नोSपामूर्मिं दिवस्परि । अयक्ष्मा बृहतीरिषः॥1॥
हे प्रभु नभ से जल - वर्षा दो पृथ्वी पर हो रिमझिम - बरसात ।
अन्न - धान - फल - पल्लव झूमें झूम - झूम कर गाये पात ॥1॥
8038
तया पवस्व धारया यया गाव इहागमन् । जन्यास उप नो गृहम्॥2॥
आनन्द - सरिता पावन कर दे प्रभु तुम ही कोई करो उपाय ।
हर बरस तुम्हीं सम्यक जल देना मिट जाए सबकी हाय - हाय ॥2॥
8039
घृतं पवस्व धारया यज्ञेषु देववीतमः। अस्मभ्यं वृष्टिमा पव ॥3॥
तुम ही सबके परि - पोषक हो अज्ञान - तिमिर को तुम्हीं मिटाओ ।
यश - वैभव तुम ही देना प्रभु आनन्द - धाम की राह दिखाओ ॥3॥
8040
स न ऊर्जे व्य1व्ययं पवित्रं धाव धारया । देवासः शृणवह्नि कम्॥4॥
ज्ञान - योग और क्रिया - योग सम्पूरक बन कर चलें निरन्तर ।
समवेत - स्वरों में वेद उचारें परमेश्वर सँग रहें परस्पर ॥4॥
8041
पवमानो असिष्यदद्रक्षांस्यपजङ्घनत् । प्रत्नवद्रोचयन् रुचः ॥5॥
परमात्मा आलोक - प्रदाता दिव्य - शक्ति का वही निधान ।
वेद - ऋचा का गान करें हम दया - दृष्टि रखना भगवान ॥5॥
8037
पवस्व वृष्टिमा सु नोSपामूर्मिं दिवस्परि । अयक्ष्मा बृहतीरिषः॥1॥
हे प्रभु नभ से जल - वर्षा दो पृथ्वी पर हो रिमझिम - बरसात ।
अन्न - धान - फल - पल्लव झूमें झूम - झूम कर गाये पात ॥1॥
8038
तया पवस्व धारया यया गाव इहागमन् । जन्यास उप नो गृहम्॥2॥
आनन्द - सरिता पावन कर दे प्रभु तुम ही कोई करो उपाय ।
हर बरस तुम्हीं सम्यक जल देना मिट जाए सबकी हाय - हाय ॥2॥
8039
घृतं पवस्व धारया यज्ञेषु देववीतमः। अस्मभ्यं वृष्टिमा पव ॥3॥
तुम ही सबके परि - पोषक हो अज्ञान - तिमिर को तुम्हीं मिटाओ ।
यश - वैभव तुम ही देना प्रभु आनन्द - धाम की राह दिखाओ ॥3॥
8040
स न ऊर्जे व्य1व्ययं पवित्रं धाव धारया । देवासः शृणवह्नि कम्॥4॥
ज्ञान - योग और क्रिया - योग सम्पूरक बन कर चलें निरन्तर ।
समवेत - स्वरों में वेद उचारें परमेश्वर सँग रहें परस्पर ॥4॥
8041
पवमानो असिष्यदद्रक्षांस्यपजङ्घनत् । प्रत्नवद्रोचयन् रुचः ॥5॥
परमात्मा आलोक - प्रदाता दिव्य - शक्ति का वही निधान ।
वेद - ऋचा का गान करें हम दया - दृष्टि रखना भगवान ॥5॥
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