Monday, 12 May 2014

सूक्त - 49

[ऋषि- कवि भार्गव । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

8037
पवस्व वृष्टिमा सु नोSपामूर्मिं दिवस्परि । अयक्ष्मा  बृहतीरिषः॥1॥

हे  प्रभु  नभ  से  जल - वर्षा  दो  पृथ्वी पर हो रिमझिम - बरसात ।
अन्न - धान - फल - पल्लव झूमें  झूम - झूम  कर गाये पात ॥1॥

8038
तया पवस्व धारया यया गाव इहागमन् । जन्यास उप नो गृहम्॥2॥

आनन्द - सरिता  पावन  कर  दे  प्रभु  तुम  ही  कोई  करो  उपाय ।
हर बरस तुम्हीं सम्यक जल देना मिट जाए सबकी हाय - हाय ॥2॥

8039
घृतं पवस्व धारया  यज्ञेषु  देववीतमः। अस्मभ्यं  वृष्टिमा  पव ॥3॥

तुम ही सबके परि - पोषक हो अज्ञान - तिमिर को तुम्हीं मिटाओ ।
यश - वैभव तुम ही देना प्रभु आनन्द - धाम की राह दिखाओ ॥3॥

8040
स न ऊर्जे व्य1व्ययं पवित्रं धाव धारया । देवासः शृणवह्नि कम्॥4॥

ज्ञान - योग और क्रिया - योग सम्पूरक  बन  कर  चलें  निरन्तर ।
समवेत -  स्वरों  में  वेद  उचारें  परमेश्वर  सँग  रहें  परस्पर  ॥4॥

8041
पवमानो असिष्यदद्रक्षांस्यपजङ्घनत् । प्रत्नवद्रोचयन्  रुचः ॥5॥

परमात्मा  आलोक -  प्रदाता  दिव्य -  शक्ति  का  वही  निधान ।
वेद - ऋचा  का  गान करें  हम दया - दृष्टि  रखना  भगवान ॥5॥

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