[ऋषि- अयास्य आङ्गिरस । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
8021
असृग्रन्देववीतयेSत्यासः कृत्व्या इव । क्षरन्तः पर्वतावृधः॥1॥
कर्म - मार्ग पर चलने वाले ज्ञानी - वैज्ञानिक बनते हैं ।
विविध - विधा में विद्वत् - जन अन्वेषण करते रहते हैं ॥1॥
8022
परिष्कृतास इन्दवो योषेव पित्र्यावती । वायुं सोमा असृक्षत॥2॥
सूक्ष्म - भाव का चिन्तन करते जनता को जागरूक करते हैं ।
कर्तव्य - कर्म का बोध कराते सत्पथ पर लेकर चलते हैं ॥2॥
8023
एते सोमास इन्दवः प्रयस्वन्तश्चमू सुता:। इन्द्रं वर्धन्ति कर्मभिः॥3॥
कर्म - मार्ग की महिमा से ही सैन्य - शक्ति का बल बढता है ।
विविध - शक्ति सेना सँग जुडती स्वाभिमान मन में पलता है ॥3॥
8024
आ धावता सुहस्त्यः शुक्रा गृभ्णीत मन्थिना।गोभिःश्रीणीत मत्सरम्॥4॥
कर्म - मार्ग पर जो चलता है देश - धर्म - हित वह जीता है ।
विविध - कलायें विकसित होतीं मनुज तृप्ति - रस को पीता है॥4॥
8025
स पवस्व धनञ्जय प्रयन्ता राधसो महः। अस्मभ्यं सोम गातुवित्॥5॥
चिन्तन शुभ हो यदि हम सबका अभ्युदय देश का निश्चित है ।
कर्म - मार्ग शुभ - फल ही देगा सन्देह नहीं कोई किञ्चित् है॥5॥
8026
एतं मृजन्ति मर्ज्यं पवमानं दश क्षिपः। इन्द्राय मत्सरं मदम्॥6॥
आनन्द - उत्स है वह परमेश्वर वह हम सब की अभिलाषा है ।
आनन्द - हेतु हम भटक रहे हैं निर्वाक - एक वह भाषा है ॥6॥
8021
असृग्रन्देववीतयेSत्यासः कृत्व्या इव । क्षरन्तः पर्वतावृधः॥1॥
कर्म - मार्ग पर चलने वाले ज्ञानी - वैज्ञानिक बनते हैं ।
विविध - विधा में विद्वत् - जन अन्वेषण करते रहते हैं ॥1॥
8022
परिष्कृतास इन्दवो योषेव पित्र्यावती । वायुं सोमा असृक्षत॥2॥
सूक्ष्म - भाव का चिन्तन करते जनता को जागरूक करते हैं ।
कर्तव्य - कर्म का बोध कराते सत्पथ पर लेकर चलते हैं ॥2॥
8023
एते सोमास इन्दवः प्रयस्वन्तश्चमू सुता:। इन्द्रं वर्धन्ति कर्मभिः॥3॥
कर्म - मार्ग की महिमा से ही सैन्य - शक्ति का बल बढता है ।
विविध - शक्ति सेना सँग जुडती स्वाभिमान मन में पलता है ॥3॥
8024
आ धावता सुहस्त्यः शुक्रा गृभ्णीत मन्थिना।गोभिःश्रीणीत मत्सरम्॥4॥
कर्म - मार्ग पर जो चलता है देश - धर्म - हित वह जीता है ।
विविध - कलायें विकसित होतीं मनुज तृप्ति - रस को पीता है॥4॥
8025
स पवस्व धनञ्जय प्रयन्ता राधसो महः। अस्मभ्यं सोम गातुवित्॥5॥
चिन्तन शुभ हो यदि हम सबका अभ्युदय देश का निश्चित है ।
कर्म - मार्ग शुभ - फल ही देगा सन्देह नहीं कोई किञ्चित् है॥5॥
8026
एतं मृजन्ति मर्ज्यं पवमानं दश क्षिपः। इन्द्राय मत्सरं मदम्॥6॥
आनन्द - उत्स है वह परमेश्वर वह हम सब की अभिलाषा है ।
आनन्द - हेतु हम भटक रहे हैं निर्वाक - एक वह भाषा है ॥6॥
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआभार
चिन्तन शुभ हो यदि हम सबका अभ्युदय देश का निश्चित है ।
ReplyDeleteकर्म - मार्ग शुभ - फल ही देगा सन्देह नहीं कोई किञ्चित् है॥5॥
देशभक्ति का सुंदर संदेश..
शुभ कर्मन ते कबहुँ न टरों...
ReplyDelete