Wednesday, 14 May 2014

सूक्त - 46

[ऋषि- अयास्य आङ्गिरस । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

8021
असृग्रन्देववीतयेSत्यासः कृत्व्या इव । क्षरन्तः पर्वतावृधः॥1॥

कर्म -  मार्ग  पर  चलने  वाले  ज्ञानी -  वैज्ञानिक  बनते  हैं ।
विविध - विधा में विद्वत् - जन अन्वेषण करते रहते  हैं ॥1॥

8022
परिष्कृतास इन्दवो योषेव पित्र्यावती । वायुं सोमा असृक्षत॥2॥

सूक्ष्म - भाव का चिन्तन करते जनता  को जागरूक  करते  हैं ।
कर्तव्य - कर्म  का  बोध  कराते  सत्पथ पर लेकर चलते हैं ॥2॥

8023
एते सोमास इन्दवः प्रयस्वन्तश्चमू सुता:। इन्द्रं वर्धन्ति कर्मभिः॥3॥

कर्म - मार्ग  की  महिमा  से  ही  सैन्य - शक्ति  का  बल  बढता  है ।
विविध - शक्ति सेना सँग जुडती स्वाभिमान मन में पलता  है ॥3॥

8024
आ धावता सुहस्त्यः शुक्रा गृभ्णीत मन्थिना।गोभिःश्रीणीत मत्सरम्॥4॥

कर्म - मार्ग  पर  जो  चलता  है  देश -  धर्म -  हित  वह  जीता  है ।
विविध - कलायें विकसित होतीं मनुज तृप्ति - रस को पीता है॥4॥

8025
स पवस्व धनञ्जय प्रयन्ता राधसो महः। अस्मभ्यं सोम गातुवित्॥5॥

चिन्तन  शुभ  हो  यदि हम सबका अभ्युदय देश का निश्चित है ।
कर्म - मार्ग शुभ - फल ही देगा सन्देह नहीं कोई किञ्चित् है॥5॥

8026
एतं मृजन्ति मर्ज्यं पवमानं दश क्षिपः। इन्द्राय मत्सरं मदम्॥6॥

आनन्द - उत्स है  वह  परमेश्वर  वह  हम  सब  की अभिलाषा है ।
आनन्द - हेतु  हम  भटक  रहे  हैं  निर्वाक - एक वह भाषा  है ॥6॥  

3 comments:

  1. बहुत सुन्दर

    आभार

    ReplyDelete
  2. चिन्तन शुभ हो यदि हम सबका अभ्युदय देश का निश्चित है ।
    कर्म - मार्ग शुभ - फल ही देगा सन्देह नहीं कोई किञ्चित् है॥5॥

    देशभक्ति का सुंदर संदेश..

    ReplyDelete
  3. शुभ कर्मन ते कबहुँ न टरों...

    ReplyDelete