[ऋषि- दृळ्हच्युत आगस्त्य । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]
7895
पवस्व दक्षसाधनो देवेभ्यः पीतये हरे । मरुद्भ्यो वायवे मदः॥1॥
ज्ञान - मार्ग के पथिक निरन्तर आनन्द का सुख पाते हैं ।
कर्म - मार्ग के अनुयायी भी आनन्द - मार्ग पर जाते हैं ॥1॥
7896
पवमान धिया हितो3भि योनिं कनिक्रदत् । धर्मणा वायुमा विश॥2॥
जो जन पावन अन्तर्मन से करते हैं परमेश्वर का ध्यान ।
वे पाप - पुण्य को तज कर के करते हैं परम प्राप्ति अभियान॥2॥
7897
सं देवैः शोभते वृषा कविर्योनावधि प्रियः। वृत्रहा देववीतमः॥3॥
यद्यपि प्रभु सर्वत्र व्याप्त है पर पावन - मन में रहता है ।
सब को आभास नहीं होता है योगी इस सुख को सहता है ॥3॥
7898
विश्वा रूपाण्याविशन्पुनानो याति हर्यतः। यत्रामृतास आसते॥4॥
कण- कण में वह विद्यमान है जड- चेतन सब में बसता है ।
उसके होने के कारण ही जग इतना सुन्दर लगता है ॥4॥
7899
अरुषो जगयन्गिरः सोमःपवत आयुषक् । इन्द्रं गच्छन्कविक्रतुः॥5॥
कर्म - मार्ग के द्वारा चल - कर हम सब उसको पा सकते हैं ।
कर्मानुकूल ही फल मिलता है प्रभु को हम अपना सकते हैं॥5॥
7900
आ पवस्व मदिन्तम पवित्रं धारया कवे । अर्कस्य योनिमासदम्॥6॥
साधक जब भी पावन - मन से उसकी उपासना करता है ।
ज्ञान - आलोक वही पाता है आनन्द - सरिता में बहता है ॥6॥
7895
पवस्व दक्षसाधनो देवेभ्यः पीतये हरे । मरुद्भ्यो वायवे मदः॥1॥
ज्ञान - मार्ग के पथिक निरन्तर आनन्द का सुख पाते हैं ।
कर्म - मार्ग के अनुयायी भी आनन्द - मार्ग पर जाते हैं ॥1॥
7896
पवमान धिया हितो3भि योनिं कनिक्रदत् । धर्मणा वायुमा विश॥2॥
जो जन पावन अन्तर्मन से करते हैं परमेश्वर का ध्यान ।
वे पाप - पुण्य को तज कर के करते हैं परम प्राप्ति अभियान॥2॥
7897
सं देवैः शोभते वृषा कविर्योनावधि प्रियः। वृत्रहा देववीतमः॥3॥
यद्यपि प्रभु सर्वत्र व्याप्त है पर पावन - मन में रहता है ।
सब को आभास नहीं होता है योगी इस सुख को सहता है ॥3॥
7898
विश्वा रूपाण्याविशन्पुनानो याति हर्यतः। यत्रामृतास आसते॥4॥
कण- कण में वह विद्यमान है जड- चेतन सब में बसता है ।
उसके होने के कारण ही जग इतना सुन्दर लगता है ॥4॥
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अरुषो जगयन्गिरः सोमःपवत आयुषक् । इन्द्रं गच्छन्कविक्रतुः॥5॥
कर्म - मार्ग के द्वारा चल - कर हम सब उसको पा सकते हैं ।
कर्मानुकूल ही फल मिलता है प्रभु को हम अपना सकते हैं॥5॥
7900
आ पवस्व मदिन्तम पवित्रं धारया कवे । अर्कस्य योनिमासदम्॥6॥
साधक जब भी पावन - मन से उसकी उपासना करता है ।
ज्ञान - आलोक वही पाता है आनन्द - सरिता में बहता है ॥6॥
कण- कण में वह विद्यमान है जड- चेतन सब में बसता है ।
ReplyDeleteउसके होने के कारण ही जग इतना सुन्दर लगता है ॥4॥
सत्यं शिवम सुन्दरम !
गूढ़ ज्ञान...
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