Monday 5 May 2014

सूक्त - 63

[ऋषि- निध्रुवि काश्यप । देवता- पवमान सोम । छन्द- गायत्री ।]

8149
आ पवस्व सहस्त्रिणं रयिं सोम सुवीर्यम् । अस्मे श्रवांसि धारय॥1॥

हे प्रभु परमेश्वर तुम  हमको  सुख- कर  जीवन  करो  प्रदान ।
विज्ञान-ज्ञान से हो पहचान हे दीन-बन्धु हे दया-निधान॥1॥

8150
इषमूर्जं च पिन्वस इन्द्राय मत्सरिन्तमः । चमूष्वा नि सीदसि॥2॥

सेना  में  सतत  शस्त्र  हों शामिल समयानुकूल परिमार्जन हो ।
सामर्थ्य बढे हम बढें निरन्तर अन्वेषण का परिशोधन हो ॥2॥

8151
सुत इन्द्राय विष्णवे सोमःकलशे अक्षरत् । मधुमॉ अस्तु वायवे॥3॥

अन्तर्मन पावन हो सब  का सदाचार अति आवश्यक है ।
राज-धर्म के गुण भी देना यह हर घर हेतु सहायक है॥3॥

8152
एते असृग्रमाशवोSति ह्वरांसि बभ्रवः । सोमा ऋतस्य धारया॥4॥

राज - धर्म का ज्ञान हमें दो साहस - धीरज गुण अपनायें ।
हमसे  शत्रु खौफ खाए पर हम सत् - पथ पर ही जायें ॥4॥

8153
इन्द्रं वर्धन्तो अप्तुरः कृण्वन्तो विश्वमार्यम् । अपघ्नन्तो अराव्णः॥5॥

हे  परमेश्वर  यह  विनती  है  उत्तम - विचार  का  देना  दान ।
परहित में यह जीवन जाए ऐसा कुछ करना कृपा-निधान॥5॥

8154
सुता अनु स्वमा रजाSभ्यर्षन्ति बभ्रवः । इन्द्रं गच्छन्त इन्दवः॥6॥

जिनका अन्तर्मन  पावन  है  उनको  मिलता  है  आत्म - ज्ञान ।
चिन्तन से सब सम्भव हो जाता बन जाता है मनुज- महान ॥6॥

8155
अया पवस्व धारया यया सूर्यमरोचयः । हिन्वानो मानुषीरपः॥7॥

प्रभु तुमसे है  यही प्रार्थना सत् - पथ पर तुम ही  ले चलना ।
कर्मानुकूल  फल  तुम  देते हो मेरी भी सुधि लेते रहना ॥7॥

8156
अयुक्त  सूर  एतशं पवमानो मनावधि । अन्तरिक्षेण यातवे॥8॥

अनन्त -शक्ति के तुम स्वामी हो हम सबका तुम रखना ध्यान ।
हम भी समर्थ बन जायें प्रभु-वर कर्म-योग का हो अभियान॥8॥

8157
उत त्या हरितो दश सूरो अयुक्त यातवे । इन्दुरिन्द्र इति ब्रुवन्॥9॥

मन  सुमिरन - पथ  पर  लग  जाए  ऐसी  कोई  युक्ति बताओ ।
भव - सागर को पार कर सकें इस लायक तुम हमें बनाओ ॥9॥

8158
परीतो वायवे सुतं गिर इन्द्राय मत्सरम् । अव्यो वारेषु सिञ्चत॥10॥

अज्ञान तिमिर छँट जाये मेरा ज्ञान - योग की गली बताओ ।
आनन्द का अमृत मिल जाए ऐसी कोई डगर  बताओ ॥10॥

8159
पवमान विदा रयिमस्मभ्यं सोम दुष्टरम् । यो दूणाशो वनुष्यता॥11॥

वह अलभ्य  धन  हमको  देना  जो  विज्ञान - ज्ञान आश्रित  हो ।
लूट न ले कोई चोरी न हो वह अमूल्य - धन परमार्थित हो ॥11॥

8160
अभ्यर्ष सहस्त्रिणं रयिं गोमन्तमश्विनम् । अभि वाजमुत श्रवः॥12॥

अतुलित - धन के हम स्वामी हों तुम देना सबको धन - धान ।
श्लाघनीय - बल देना भगवन बना  रहे  यह  स्वाभिमान ॥12॥

8161
सोमो देवो न सूर्योSद्रिभिः पवते सुतः । दधानः कलशे रसम्॥13॥

आनन्द - रस हो हर जीवन में यह वसुधा है परिवार हमारा ।
समर्थ रहें हम सब जीवन भर एकमात्र हो तुम्हीं सहारा ॥13॥

8162
एते धामान्यार्या शुक्रा ऋतस्य धारया । वाजं गोमन्तमक्षरन्॥14॥

सदाचार  ही  श्रेष्ठ  बनाता  मानव  पावन -  पथ  पा  जाता  है ।
शुभ- चिन्तन है अति आवश्यक प्रभु पथ पर पहुँचाता है ॥14॥

8163
सुता इन्द्राय वज्रिणे सोमासो दध्याशिरः । पवित्रमत्यक्षरन्॥15॥

कर्म - मार्ग  पर  चलने  वाला आनन्द - लहर  को  पाता  है ।
सज्जन इसका लाभ उठाता आनन्द- उसे मिल जाता है॥15॥

8164
प्र सोम मधुमत्तमो राये अर्ष पवित्र आ । मदो यो देववीतमः॥16॥

जो  उद्योगी  परमानन्द  का  कर  पाते   हैं  अनुसन्धान । 
वह  हैं बहुत बडे वैज्ञानिक ऐसे जन हैं विरल महान॥16॥

8165
तमी मृजन्त्यायवो हरिं नदीषु वाजिनम् । इन्दुमिन्द्राय मत्सरम्॥17॥

जो  प्रभु  का  सुमिरन  करते  हैं  परमानन्द  वही  पाते हैं ।
उनका दोनों लोक सुधरता ज्ञान - देहरी दिखलाते हैं ॥17॥

8166
आ पवस्व हिरण्यवदश्वावत् सोम वीरवत् । वाजं गोमन्तमा भर॥18॥

प्रभु  का  वैभव  भी  अनन्त  है  नहीं  कहीं  कोई  हिसाब  है ।
विज्ञान-ज्ञान का अद्भुत बल है फिर भी वह कोरी किताब है॥18॥

8167
परि वाजे न वाजयुमव्यो वारेषु सिञ्चत । इन्द्राय मधुमत्तमम्॥19॥

कर्म  -  मार्ग  पर  जो  चलते  हैं  प्रभु  उनकी  रक्षा  करता  है ।
लक्ष्य-पूर्ति में साथ निभाता पिता-समान ध्यान रखता है॥19॥

8168
कविं मृजन्ति मर्ज्यं धीभिर्विप्रा अवस्यवः । वृषा कनिक्रदर्षति॥20॥

सत् - पथ  पर  चलने  वाला  ही  उस  प्रभु  का  दर्शन  पाता  है ।
अत्यन्त सूक्ष्म है प्रेम - गली हर कोई जिज्ञासा-वश आता है॥20॥

8169
वृषणं धीभिरप्तुरं सोममृतस्य धारया । मती विप्रा: समस्वरन्॥21॥
 
मनो- कामना  पूरी  करते सज्जन - सँग उन्हें प्यारा है ।
पावन मन से जो भी मॉगो वह देगा वही सहारा  है ॥21॥

8170
पवस्व देवायुषगिन्द्रं गच्छतु ते मदः । वायुमा रोह धर्मणा॥22॥

कर्म-योग का अनुगामी  जब  उस  परमेश्वर  को  भजता  है ।
प्रभु उसको पावन मन देकर उत्तम-गुण प्रदान करता है॥22॥

8171
पवमान नि तोशसे रयिं सोम श्रवाय्यम् । प्रियः समुद्रमा विश॥23॥

परमेश्वर  का  रूप  निराला  दुष्टों  का  जीवन  हर  लेते  हैं ।
पर सज्जन को आश्रय देते उनको अभय - दान देते हैं॥23॥

8172
अपघ्नन् पवसे मृधः क्रतुवित्सोम मत्सरः। नुदस्वादेवयुं जनम्॥24॥

दुष्ट - दलन  प्रभु   ही  करते  हैं  वे  खुद  हैं  दुष्टों  के  काल ।
पर उनको सज्जन प्यारा है सन्तों के बन जाते हैं ढाल॥24॥

8173
पवमाना असृक्षत सोमा: शुक्रास इन्दवः । अभि विश्वानि काव्या॥25॥

अनन्त  शक्ति  का  वह  स्वामी  है  वह  ही  है आलोक - प्रदाता ।
वह  ही  सबकी  रक्षा  करता  वह  ही  पिता  वही   है माता ॥25॥

8174
पवमानास आशवः शुभ्रा असृग्रमिन्दवः । घ्नन्तो विश्वा अप द्विषः॥26॥

परमेश्वर  हमसे  यह  कहते  हैं  पराक्रमी -  जन  आगे  आयें ।
दुष्ट - दलन अति आवश्यक है नेक - कर्म में हाथ बटायें॥26॥

8175
पवमाना दिवस्पर्यन्तरिक्षादसृक्षत । पृथिव्या अधि सानवि॥27॥

हे शूर - वीर तुम सुनो ध्यान से तुम रक्षा का दायित्व निभाओ ।
सबकी रक्षा करो निरन्तर सबका सद्भाव सदा तुम  पाओ ॥27॥

8176
पुनानः सोम धारयेन्दो विश्वा अप स्त्रिधः। जहि रक्षांसि सुक्रतो॥28॥

हे धीर-वीर हे  शूर - वीर तुम नष्ट करो यह दुराचार ।
सज्जन की है यह पावन धरती वसुधा में हो बस सदाचार॥28॥

8177
अपघ्नन्त्सोम रक्षसोSभ्यर्ष कनिक्रदत् । द्युमन्तं शुष्ममुत्तमम्॥29॥

जो  शूर- वीर  हैं  सौम्य  वही  यश- वैभव  का  भी  स्वामी  है ।
उत्तम गुण के संग वह रहता ऐश्वर्य उसी का अनुगामी है ॥29॥

8178
अस्मे वसूनि धारय सोम दिव्यानि पार्थिवा । इन्दो विश्वानि वार्या॥30॥

हे शूर-वीर हो देश प्रथम यह जन्म-भूमि  भारत माता  है । 
गौरव-गान करें हम इसका यह ही ऐश्वर्य - प्रदाता है ॥30॥    
   


    

 

2 comments:

  1. सुन्दर जीवन जीने के सूत्र

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  2. वह अलभ्य धन हमको देना जो विज्ञान - ज्ञान आश्रित हो ।
    लूट न ले कोई चोरी न हो वह अमूल्य - धन परमार्थित हो ॥11॥
    सुंदर भावपूर्ण प्रार्थना..आभार !

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