[ऋषि- ऊर्ध्वकृशन यामायन । देवता- इन्द्र । छन्द-गायत्री-बृहती-पङ्क्ति।]
10341
अयं हि ते अमर्त्य इन्दुरत्यो न पत्यते ।
दक्षो विश्वायुर्वेधसे ॥1॥
हे सृष्टि बनाने वाले भगवन मेरा भी कल्याण करो ।
अमृत-स्वरूप बल-वर्धक औषधि हमें अवश्य प्रदान करो ॥1॥
10342
अयमस्मासु काव्य ऋभुर्वज्रो दास्वते ।
अयं बिभर्त्यूर्ध्वकृशनं मदमृभुर्न कृत्व्यं मदम् ॥2॥
जो सज्जन सत-पथ गामी हैं वज्र तुम्हारा उनका रक्षक हो ।
रक्षा करना प्रभु सदा हमारी हम भक्तों के तुम ही पोषक हो ॥2॥
10343
घृषुःश्येनाय कृत्वन आसु स्वासु वंसगः।अव दीधेदहीशुवः॥3॥
रहे तुम्हारी प्रजा सुरक्षित हे इन्द्र-देव विनती करते हैं ।
नित कर्म-योग में लगे हैं तुमसे संतति की याचना करते हैं॥3॥
10344
यं सुपर्णः परावतः श्येनस्य पुत्र आभरत् ।
शतचक्रं यो3ह्यो वर्तनिः ॥4॥
दुष्ट - दलन करते रहना प्रभु संत-जनों की रक्षा करना ।
वृत्रा-वध अति आवश्यक है सज्जन पर वरद- हस्त रखना ॥4॥
10345
यं ते श्येनश्चारुमवृकं पदाभरदरुणं मानमन्धसः ।
एना वयो वि तार्यायुर्जीवस एना जागार बन्धुता ॥5॥
अन्न- धान के तुम्हीं प्रदाता यही प्रार्थना हम करते हैं ।
अन्न-आयु भर-पूर मिले प्रभु सत्कर्म हेतु तत्पर रहते हैं ॥5॥
10346
एवा तदिन्द्र इन्दुना देवेषु चिध्दारयाते महि त्यजः ।
क्रत्वा वयो वि तार्यायुः सुक्रतो क्रत्वायमस्मदा सुतः ॥6॥
हे शक्ति- पुञ्ज हे अग्नि- देव तुम ही समर्थ संरक्षक हो ।
लंबी -आयु तुम्हीं देना प्रभु तुम ही तो पालक-पोषक हो ॥6॥
10341
अयं हि ते अमर्त्य इन्दुरत्यो न पत्यते ।
दक्षो विश्वायुर्वेधसे ॥1॥
हे सृष्टि बनाने वाले भगवन मेरा भी कल्याण करो ।
अमृत-स्वरूप बल-वर्धक औषधि हमें अवश्य प्रदान करो ॥1॥
10342
अयमस्मासु काव्य ऋभुर्वज्रो दास्वते ।
अयं बिभर्त्यूर्ध्वकृशनं मदमृभुर्न कृत्व्यं मदम् ॥2॥
जो सज्जन सत-पथ गामी हैं वज्र तुम्हारा उनका रक्षक हो ।
रक्षा करना प्रभु सदा हमारी हम भक्तों के तुम ही पोषक हो ॥2॥
10343
घृषुःश्येनाय कृत्वन आसु स्वासु वंसगः।अव दीधेदहीशुवः॥3॥
रहे तुम्हारी प्रजा सुरक्षित हे इन्द्र-देव विनती करते हैं ।
नित कर्म-योग में लगे हैं तुमसे संतति की याचना करते हैं॥3॥
10344
यं सुपर्णः परावतः श्येनस्य पुत्र आभरत् ।
शतचक्रं यो3ह्यो वर्तनिः ॥4॥
दुष्ट - दलन करते रहना प्रभु संत-जनों की रक्षा करना ।
वृत्रा-वध अति आवश्यक है सज्जन पर वरद- हस्त रखना ॥4॥
10345
यं ते श्येनश्चारुमवृकं पदाभरदरुणं मानमन्धसः ।
एना वयो वि तार्यायुर्जीवस एना जागार बन्धुता ॥5॥
अन्न- धान के तुम्हीं प्रदाता यही प्रार्थना हम करते हैं ।
अन्न-आयु भर-पूर मिले प्रभु सत्कर्म हेतु तत्पर रहते हैं ॥5॥
10346
एवा तदिन्द्र इन्दुना देवेषु चिध्दारयाते महि त्यजः ।
क्रत्वा वयो वि तार्यायुः सुक्रतो क्रत्वायमस्मदा सुतः ॥6॥
हे शक्ति- पुञ्ज हे अग्नि- देव तुम ही समर्थ संरक्षक हो ।
लंबी -आयु तुम्हीं देना प्रभु तुम ही तो पालक-पोषक हो ॥6॥
धन, धान्य, स्वास्थ्य और सम्पन्न हो धरती का जीवन।
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