Wednesday, 30 October 2013

सूक्त - 144

[ऋषि- ऊर्ध्वकृशन यामायन । देवता- इन्द्र । छन्द-गायत्री-बृहती-पङ्क्ति।] 

10341
अयं हि ते अमर्त्य इन्दुरत्यो न पत्यते ।
दक्षो                         विश्वायुर्वेधसे ॥1॥

हे   सृष्टि   बनाने   वाले  भगवन  मेरा  भी  कल्याण  करो ।
अमृत-स्वरूप बल-वर्धक औषधि हमें अवश्य प्रदान करो ॥1॥

10342
अयमस्मासु     काव्य      ऋभुर्वज्रो      दास्वते ।
अयं बिभर्त्यूर्ध्वकृशनं मदमृभुर्न कृत्व्यं मदम् ॥2॥

जो सज्जन सत-पथ गामी हैं वज्र तुम्हारा उनका  रक्षक हो ।
रक्षा करना प्रभु सदा हमारी हम भक्तों के तुम ही पोषक हो ॥2॥

10343
घृषुःश्येनाय कृत्वन आसु स्वासु वंसगः।अव दीधेदहीशुवः॥3॥

रहे  तुम्हारी  प्रजा  सुरक्षित  हे  इन्द्र-देव  विनती  करते  हैं ।
नित कर्म-योग में लगे हैं तुमसे संतति की याचना करते हैं॥3॥

10344
यं सुपर्णः परावतः श्येनस्य पुत्र आभरत् ।
शतचक्रं           यो3ह्यो         वर्तनिः  ॥4॥

दुष्ट - दलन  करते  रहना  प्रभु  संत-जनों  की  रक्षा  करना ।
वृत्रा-वध अति आवश्यक है सज्जन पर वरद- हस्त रखना ॥4॥

10345
यं ते श्येनश्चारुमवृकं पदाभरदरुणं मानमन्धसः ।
एना वयो वि तार्यायुर्जीवस एना जागार बन्धुता ॥5॥

अन्न- धान  के  तुम्हीं  प्रदाता  यही  प्रार्थना  हम  करते हैं ।
अन्न-आयु भर-पूर मिले  प्रभु सत्कर्म  हेतु तत्पर रहते हैं ॥5॥

10346
एवा   तदिन्द्र   इन्दुना   देवेषु   चिध्दारयाते   महि  त्यजः ।
क्रत्वा   वयो  वि  तार्यायुः  सुक्रतो  क्रत्वायमस्मदा  सुतः ॥6॥

हे  शक्ति- पुञ्ज हे अग्नि- देव  तुम  ही  समर्थ  संरक्षक  हो ।
लंबी -आयु  तुम्हीं  देना  प्रभु तुम ही तो पालक-पोषक हो ॥6॥


 

1 comment:

  1. धन, धान्य, स्वास्थ्य और सम्पन्न हो धरती का जीवन।

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