[ऋषि- पृथुवैन्य । देवता- इब्द्र । छन्द- त्रिष्टुप ।]
10364
सुष्वाणास इन्द्र स्तुमसि त्वा ससवांसश्च तुविनृम्ण वाजम् ।
आ नो भर सुवितं यस्य चाकन्त्मना तना सनुयाम त्वोता: ॥1॥
सोम अन्न समिधा अर्पित है स्वीकार करो विनती करते हैं ।
धन और धान हमें भी दो प्रभु यही प्रार्थना हम करते हैं ॥1॥
10365
ऋष्वस्त्वमिन्द्र शूर जातो दासीर्विशः सूर्येण सह्याः ।
गुहा हितं गुह्यं गूळहमप्सु बिभृमसि प्रस्त्रवणे न सोमम् ॥2॥
हे प्रभु रक्षा करो हमारी खल असुरों का संहार करो ।
दुष्ट जहॉ भी छिपे हुए हों उनका भी उध्दार करो ॥2॥
10366
अर्यो वा गिरो अभ्यर्च विद्वानृषीणां विप्रः सुमतिं चकानः ।
ते स्याम ये रणयन्त सोमैरेनोत तुभ्यं रथोळह भक्षैः ॥3॥
हम हैं प्रभु आत्मीय तुम्हारे सुन्दर स्तोत्र करो स्वीकार ।
हविष्यान्न सब ग्रहण करो प्रभु सत-गुण के हो तुम आगार॥3॥
10367
इमा ब्रह्मेन्द्र तुभ्यं शंसि दा नृभ्यो नृणां शूरः शवः ।
तेभिर्भव सक्रतुर्येषु चाकन्नुत त्रायस्व गृणत उत स्तीन् ॥4॥
जो सज्जन हैं ऐसे मनुष्य को धीर- वीर बलवान बनाओ ।
तुमसे जो श्रध्दा करते हैं उनकी रक्षा का वचन निभाओ ॥4॥
10368
श्रुधी हवमिन्द्र शूर पृथ्या उत स्तवसे वेन्यस्यार्कैः ।
आ यस्ते योनिं घृतवन्तमस्वारूर्मिर्न निम्नैर्द्रवयन्त वक्वा:॥5॥
हे भगवन हे इन्द्र- देव हम अनुष्ठान - अर्चन करते हैं ।
स्तुति के साथ इन्हें स्वीकारो जो तुमसे प्रेम-भाव रखते हैं ॥5॥
10364
सुष्वाणास इन्द्र स्तुमसि त्वा ससवांसश्च तुविनृम्ण वाजम् ।
आ नो भर सुवितं यस्य चाकन्त्मना तना सनुयाम त्वोता: ॥1॥
सोम अन्न समिधा अर्पित है स्वीकार करो विनती करते हैं ।
धन और धान हमें भी दो प्रभु यही प्रार्थना हम करते हैं ॥1॥
10365
ऋष्वस्त्वमिन्द्र शूर जातो दासीर्विशः सूर्येण सह्याः ।
गुहा हितं गुह्यं गूळहमप्सु बिभृमसि प्रस्त्रवणे न सोमम् ॥2॥
हे प्रभु रक्षा करो हमारी खल असुरों का संहार करो ।
दुष्ट जहॉ भी छिपे हुए हों उनका भी उध्दार करो ॥2॥
10366
अर्यो वा गिरो अभ्यर्च विद्वानृषीणां विप्रः सुमतिं चकानः ।
ते स्याम ये रणयन्त सोमैरेनोत तुभ्यं रथोळह भक्षैः ॥3॥
हम हैं प्रभु आत्मीय तुम्हारे सुन्दर स्तोत्र करो स्वीकार ।
हविष्यान्न सब ग्रहण करो प्रभु सत-गुण के हो तुम आगार॥3॥
10367
इमा ब्रह्मेन्द्र तुभ्यं शंसि दा नृभ्यो नृणां शूरः शवः ।
तेभिर्भव सक्रतुर्येषु चाकन्नुत त्रायस्व गृणत उत स्तीन् ॥4॥
जो सज्जन हैं ऐसे मनुष्य को धीर- वीर बलवान बनाओ ।
तुमसे जो श्रध्दा करते हैं उनकी रक्षा का वचन निभाओ ॥4॥
10368
श्रुधी हवमिन्द्र शूर पृथ्या उत स्तवसे वेन्यस्यार्कैः ।
आ यस्ते योनिं घृतवन्तमस्वारूर्मिर्न निम्नैर्द्रवयन्त वक्वा:॥5॥
हे भगवन हे इन्द्र- देव हम अनुष्ठान - अर्चन करते हैं ।
स्तुति के साथ इन्हें स्वीकारो जो तुमसे प्रेम-भाव रखते हैं ॥5॥
यज्ञ प्राप्ति के बीच सधा, यह मानव जीवन।
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