[ऋषि- ऊर्ध्वग्रावा आर्बुदि । देवता- पाषाण । छन्द - गायत्री । ]
10497
प्र वो ग्रावाणः सविता देवः सुवतु धर्मणा ।
धूर्षु युज्यध्वं सुनुत ॥1॥
हे पत्थर तुम निज कौशल से सामर्थ्यानुरुप कुछ कर्म करो ।
सोम - रस के निष्पादन में तुम यथाशक्ति सहयोग करो ॥1॥
10498
ग्रावाणो अप दुच्छुनामप सेधत दुर्मतिम् ।
उस्त्राः कर्तन भेषजम् ॥2॥
हे पाहन तुम कर्म-वीर हो दुख - दुर्मति को दूर भगाओ ।
सुख-दायक औषधियॉं लेकर रोग-निवारक युक्ति बताओ ॥2॥
10499
ग्रावाण उपरेष्वा महीयन्ते सजोषसः ।
वृष्णे दधतो वृष्ण्यम् ॥3॥
पाषाण परस्पर पदवी पाते अपनों को अपना लेते हैं ।
सोम बनाने में श्रम करते सबको सुखद पेय देते हैं ॥3॥
10500
ग्रावाणः सविता नु वो देवः सुवतु धर्मणा ।
यजमानाय सुन्वते ॥4॥
परम -पिता परमेश्वर सबको वेद - धर्म प्रेषित करते हैं ।
सामर्थ्यानुसार सब कर्म करें यह आशीष दिया करते हैं ॥4॥
10497
प्र वो ग्रावाणः सविता देवः सुवतु धर्मणा ।
धूर्षु युज्यध्वं सुनुत ॥1॥
हे पत्थर तुम निज कौशल से सामर्थ्यानुरुप कुछ कर्म करो ।
सोम - रस के निष्पादन में तुम यथाशक्ति सहयोग करो ॥1॥
10498
ग्रावाणो अप दुच्छुनामप सेधत दुर्मतिम् ।
उस्त्राः कर्तन भेषजम् ॥2॥
हे पाहन तुम कर्म-वीर हो दुख - दुर्मति को दूर भगाओ ।
सुख-दायक औषधियॉं लेकर रोग-निवारक युक्ति बताओ ॥2॥
10499
ग्रावाण उपरेष्वा महीयन्ते सजोषसः ।
वृष्णे दधतो वृष्ण्यम् ॥3॥
पाषाण परस्पर पदवी पाते अपनों को अपना लेते हैं ।
सोम बनाने में श्रम करते सबको सुखद पेय देते हैं ॥3॥
10500
ग्रावाणः सविता नु वो देवः सुवतु धर्मणा ।
यजमानाय सुन्वते ॥4॥
परम -पिता परमेश्वर सबको वेद - धर्म प्रेषित करते हैं ।
सामर्थ्यानुसार सब कर्म करें यह आशीष दिया करते हैं ॥4॥
पाथर जग स्थिरता देता
ReplyDeleteसुंदर सूक्त अनुवाद !
ReplyDeleteRECENT POST : - एक जबाब माँगा था.