[ऋषि- यमी वैवस्वती । देवता- भाववृत्त । छन्द- अनुष्टुप ।]
10394
सोम एकेभ्यः पवते घृतमेक उपासते ।
येभ्यो मधु प्रधावति तॉंश्चिदेवापि गच्छतात् ॥1॥
हे मनुज गुणों को धारण कर लो जहॉं भी मिले ले लो ज्ञान ।
ज्ञान के भी आयाम बहुत हैं इस पर भी देना है ध्यान ॥1॥
10395
तपसा ये अनाधृष्यास्तपसा ये स्वर्ययुः ।
तपो ये चक्रिरे महस्तॉंश्चिदेवापि गच्छतात् ॥2॥
तपोनिष्ठ हो जाए जीवन विपदाओं से हम न घबरायें ।
केवल अपना स्वार्थ न देखें पर-हित पर निज ध्यान लगायें॥2॥
10396
ये युध्यन्ते प्रधनेषु शूरासो ये तनूत्यजः ।
ये वा सहस्त्रदक्षिणास्तॉंश्चिदेवापि गच्छतात् ॥3॥
जन्मभूमि के लिए जो मनुज प्राणों की आहुति देता है ।
यह भी यज्ञ की पूर्णाहुति है मातृभूमि का वह बेटा है ॥3॥
10397
ये चित्पूर्व ऋतसाप ऋतावान ऋतावृधः ।
पितृन्तपस्वतो यम तॉंश्चिदेवापि गच्छतात् ॥4॥
सत्य- ज्ञान की पूँजी पाकर सत- पथ पर ही चलना है ।
पितरों का यह पुण्य-प्रयोजन पीढी-पीढी चलते रहना है ॥4॥
10398
सहस्त्रणीथा: कवयो ये गोपायन्ति सूर्यम् ।
ऋषीन् तपस्वतो यम तपोजॉं अपि गच्छतात् ॥5॥
पुरखों से आशीष मिला है मिले हमें अनगिन उपहार ।
तपः पूत वे पितर हमारे पुनः पुनः आयें हर बार ॥5॥
10394
सोम एकेभ्यः पवते घृतमेक उपासते ।
येभ्यो मधु प्रधावति तॉंश्चिदेवापि गच्छतात् ॥1॥
हे मनुज गुणों को धारण कर लो जहॉं भी मिले ले लो ज्ञान ।
ज्ञान के भी आयाम बहुत हैं इस पर भी देना है ध्यान ॥1॥
10395
तपसा ये अनाधृष्यास्तपसा ये स्वर्ययुः ।
तपो ये चक्रिरे महस्तॉंश्चिदेवापि गच्छतात् ॥2॥
तपोनिष्ठ हो जाए जीवन विपदाओं से हम न घबरायें ।
केवल अपना स्वार्थ न देखें पर-हित पर निज ध्यान लगायें॥2॥
10396
ये युध्यन्ते प्रधनेषु शूरासो ये तनूत्यजः ।
ये वा सहस्त्रदक्षिणास्तॉंश्चिदेवापि गच्छतात् ॥3॥
जन्मभूमि के लिए जो मनुज प्राणों की आहुति देता है ।
यह भी यज्ञ की पूर्णाहुति है मातृभूमि का वह बेटा है ॥3॥
10397
ये चित्पूर्व ऋतसाप ऋतावान ऋतावृधः ।
पितृन्तपस्वतो यम तॉंश्चिदेवापि गच्छतात् ॥4॥
सत्य- ज्ञान की पूँजी पाकर सत- पथ पर ही चलना है ।
पितरों का यह पुण्य-प्रयोजन पीढी-पीढी चलते रहना है ॥4॥
10398
सहस्त्रणीथा: कवयो ये गोपायन्ति सूर्यम् ।
ऋषीन् तपस्वतो यम तपोजॉं अपि गच्छतात् ॥5॥
पुरखों से आशीष मिला है मिले हमें अनगिन उपहार ।
तपः पूत वे पितर हमारे पुनः पुनः आयें हर बार ॥5॥
संग्रहण हो, गुण भरा जो,
ReplyDeleteमन कलुष सब त्यागना है।
कितने उदात्त विचार थे वैदिक ऋषि के ..आप एक बहुत ही प्रशंसनीय मुहिम में लगी हैं -बहुत शुभकामनाएं !
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