[ऋषि- रक्षोहा ब्राह्य । देवता - गर्भसंस्त्राव प्रायश्चित । छन्द - अनुष्टुप ।]
10435
ब्रह्मणाग्निः संविदानो रक्षोहा बाधतामितः ।
अमीवा यस्ते गर्भं दुर्णामा योनिमाशये ॥1॥
अग्नि- देव हम पर प्रसन्न हों तन-मन से वे हरें विकार ।
गर्भ सुरक्षित रहे मातृ का शुभ चिन्तन हो शुभ व्यवहार ॥1॥
10436
यस्ते गर्भममीवा दुर्णामा योनिमाशये ।
अग्निष्टं ब्रह्मणा सह निष्क्रव्यादमनीनशत्॥2॥
मातृ-शक्ति आकुल-व्याकुल है हे अग्निदेव तुम उन्हें बचाओ।
असुर-शक्ति बढ रही निरंतर उन्हें सजा दो मार भगाओ ॥2॥
10437
यस्ते हन्ति पतयन्तं निषत्स्नुं यः सरीसृपम् ।
जातं यस्ते जिघांसति तमितो नाशयामसि ॥3॥
निर्भय होकर रहें नारियॉं तभी वीर होगी संतान ।
सृजन- शक्ति की विग्रह नारी सभी काल में रहे महान ॥3॥
10438
यस्त ऊरु विहरत्यन्तरा दम्पती शये ।
योनिं यो अन्तरारेळिह तमितो नाशयामसि ॥4॥
कोख रहे परिपक्व मात का नारी- जीवन है अनुदान ।
भीतर यदि कोई विकार हो उसका भी हो त्वरित निदान॥4॥
10439
यस्त्वा भ्राता पतिर्भूत्वा जारो भूत्वा निपद्यते ।
प्रजां यस्ते जिघांसति तमितो नाशयामसि ॥5॥
नारी का कोई नहीं है जग में छली जा रही वह हरदम ।
गर्भ -पात करवा देते हैं वह रोक सके यह नहीं है दम ॥5॥
10440
यस्त्वा स्वप्नेन तमसा मोहयित्वा निपद्यते ।
प्रजां यस्ते जिघांसति तमितो नाशयामसि ॥6॥
नारी की इच्छा के विरुध्द कभी भी गर्भपात न हो ।
सृजन हेतु वह संकल्पित है उसके साथ धूर्तता न हो ॥6॥
10435
ब्रह्मणाग्निः संविदानो रक्षोहा बाधतामितः ।
अमीवा यस्ते गर्भं दुर्णामा योनिमाशये ॥1॥
अग्नि- देव हम पर प्रसन्न हों तन-मन से वे हरें विकार ।
गर्भ सुरक्षित रहे मातृ का शुभ चिन्तन हो शुभ व्यवहार ॥1॥
10436
यस्ते गर्भममीवा दुर्णामा योनिमाशये ।
अग्निष्टं ब्रह्मणा सह निष्क्रव्यादमनीनशत्॥2॥
मातृ-शक्ति आकुल-व्याकुल है हे अग्निदेव तुम उन्हें बचाओ।
असुर-शक्ति बढ रही निरंतर उन्हें सजा दो मार भगाओ ॥2॥
10437
यस्ते हन्ति पतयन्तं निषत्स्नुं यः सरीसृपम् ।
जातं यस्ते जिघांसति तमितो नाशयामसि ॥3॥
निर्भय होकर रहें नारियॉं तभी वीर होगी संतान ।
सृजन- शक्ति की विग्रह नारी सभी काल में रहे महान ॥3॥
10438
यस्त ऊरु विहरत्यन्तरा दम्पती शये ।
योनिं यो अन्तरारेळिह तमितो नाशयामसि ॥4॥
कोख रहे परिपक्व मात का नारी- जीवन है अनुदान ।
भीतर यदि कोई विकार हो उसका भी हो त्वरित निदान॥4॥
10439
यस्त्वा भ्राता पतिर्भूत्वा जारो भूत्वा निपद्यते ।
प्रजां यस्ते जिघांसति तमितो नाशयामसि ॥5॥
नारी का कोई नहीं है जग में छली जा रही वह हरदम ।
गर्भ -पात करवा देते हैं वह रोक सके यह नहीं है दम ॥5॥
10440
यस्त्वा स्वप्नेन तमसा मोहयित्वा निपद्यते ।
प्रजां यस्ते जिघांसति तमितो नाशयामसि ॥6॥
नारी की इच्छा के विरुध्द कभी भी गर्भपात न हो ।
सृजन हेतु वह संकल्पित है उसके साथ धूर्तता न हो ॥6॥
प्रकृति चाहती रही सततता,
ReplyDeleteमाता तब माध्यम बन आयी।