[ऋषि - वत्स आग्नेय । देवता - अग्नि । छन्द - गायत्री । ]
10535
प्राग्नये वाचमीरय वृषभाय क्षितिनाम् ।
स नः पर्षदति द्विषः ॥1॥
पूर्ण - काम यदि नर चाहे वह अग्निदेव का करे स्तवन ।
वे सदा सुरक्षा देते हैं स्तुति से पायें उज्ज्वल मन ॥1॥
10536
यः परस्याः परावतस्तिरो धन्वातिरोचते ।
स नः पर्षदति द्विषः ॥2॥
जो अग्नि - देव पूजा - वेदी पर करते हैं पूजा स्वीकार ।
वे नित- प्रति रक्षा करें हमारी उन्हें नमन है बारंबार ॥2॥
10537
यो रक्षांसि निजूर्वति वृषा शुक्रेण शोचिषा ।
स नः पर्षदति द्विषः ॥3॥
अग्नि - देव ही जल देते हैं असुरों को मार गिराते हैं ।
वे राग- द्वेष से हमें बचाते सत - पथ वही दिखाते हैं ॥3॥
10538
यो विश्वाभि विपश्यति भुवना सं च पश्यति ।
स नः पर्षदति द्विषः ॥4॥
जो अग्निदेव सब लोकों का अवलोकन पृथक्-पृथक् करते हैं।
वे षड् - रिपु से हमें बचायें समभाव सभी पर जो रखते हैं ॥4॥
10539
यो अस्य पारे रजसः शुक्रो अग्निरजायत ।
स नः पर्षदति द्विषः ॥5॥
हे दिव्य देह - धारी भगवन् तुम तेज - पुँज के हो प्रतीक ।
सदा हमारी रक्षा करना हे अन्तरिक्ष - स्वामी निर्भीक ॥5॥
10535
प्राग्नये वाचमीरय वृषभाय क्षितिनाम् ।
स नः पर्षदति द्विषः ॥1॥
पूर्ण - काम यदि नर चाहे वह अग्निदेव का करे स्तवन ।
वे सदा सुरक्षा देते हैं स्तुति से पायें उज्ज्वल मन ॥1॥
10536
यः परस्याः परावतस्तिरो धन्वातिरोचते ।
स नः पर्षदति द्विषः ॥2॥
जो अग्नि - देव पूजा - वेदी पर करते हैं पूजा स्वीकार ।
वे नित- प्रति रक्षा करें हमारी उन्हें नमन है बारंबार ॥2॥
10537
यो रक्षांसि निजूर्वति वृषा शुक्रेण शोचिषा ।
स नः पर्षदति द्विषः ॥3॥
अग्नि - देव ही जल देते हैं असुरों को मार गिराते हैं ।
वे राग- द्वेष से हमें बचाते सत - पथ वही दिखाते हैं ॥3॥
10538
यो विश्वाभि विपश्यति भुवना सं च पश्यति ।
स नः पर्षदति द्विषः ॥4॥
जो अग्निदेव सब लोकों का अवलोकन पृथक्-पृथक् करते हैं।
वे षड् - रिपु से हमें बचायें समभाव सभी पर जो रखते हैं ॥4॥
10539
यो अस्य पारे रजसः शुक्रो अग्निरजायत ।
स नः पर्षदति द्विषः ॥5॥
हे दिव्य देह - धारी भगवन् तुम तेज - पुँज के हो प्रतीक ।
सदा हमारी रक्षा करना हे अन्तरिक्ष - स्वामी निर्भीक ॥5॥
सुंदर स्तुति..
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