[ऋषि-ऋषभ देवता । सपत्न-हन्ता । छन्द- अनुष्टुप । ]
10457
ऋषभं मा समानानां सपत्नानानां विषासहिम् ।
हन्तारं शत्रूणां कृधि विराजं गोपतिं गवाम् ॥1॥
हे प्रभु जीवन श्रेष्ठ बनाना षड्-रिपु हो जायें पल में ढेर ।
गो - माता की सेवा कर लें जन - सेवा में हो न देर ॥1॥
10458
अहमस्मि सपत्नहेन्द्र इवारिष्टो अक्षतः ।
अधः सपत्ना मे पदोरिमे सर्वे अभिष्ठिता: ॥2॥
जो अन्यायी हैं विध्वंसक हैं हे प्रभु उनकी गले न दाल ।
परमपिता इतना बल देना हम सज्जन की बन जायें ढाल ॥2॥
10459
अत्रैव वोSपि नह्याम्युभे आत् र्नी इव ज्यया ।
वाचस्पते नि षेधेमान्यथा मदधरं वदान् ॥3॥
हे प्रभु मन निर्मल हो जाये चिन्तन हो जाए उज्ज्वल ।
सत- पथ ही हो ध्येय हमारा तन मन आत्म ब्रह्म हो बल ॥3॥
10460
अभिभूरहमागमं विश्वकर्मेण धाम्ना ।
आ वश्चित्तमा वो व्रतमा वोSहं समितिं ददे ॥4॥
मेरे ही मन में जो दुश्मन हैं वही हैं सबसे बडी चुनौती ।
जो इस पर अँकुश रखते हैं उन्हें ही मंज़िल हासिल होती ॥4॥
10461
योगक्षेमं व आदायाहं भूयासमुत्तम आ वो मूर्धानमक्रमीम् ।
अधस्पदान्म उद्वदत माण्डूका इवोदकान्मण्डूका उदकादिव॥5॥
हो अप्राप्य भी प्राप्य हमें प्रभु कल्पवृक्ष हो जाए चिन्तन ।
सबका हित हो लक्ष्य हमारा सार्थक हो जाए यह जीवन ॥5॥
10457
ऋषभं मा समानानां सपत्नानानां विषासहिम् ।
हन्तारं शत्रूणां कृधि विराजं गोपतिं गवाम् ॥1॥
हे प्रभु जीवन श्रेष्ठ बनाना षड्-रिपु हो जायें पल में ढेर ।
गो - माता की सेवा कर लें जन - सेवा में हो न देर ॥1॥
10458
अहमस्मि सपत्नहेन्द्र इवारिष्टो अक्षतः ।
अधः सपत्ना मे पदोरिमे सर्वे अभिष्ठिता: ॥2॥
जो अन्यायी हैं विध्वंसक हैं हे प्रभु उनकी गले न दाल ।
परमपिता इतना बल देना हम सज्जन की बन जायें ढाल ॥2॥
10459
अत्रैव वोSपि नह्याम्युभे आत् र्नी इव ज्यया ।
वाचस्पते नि षेधेमान्यथा मदधरं वदान् ॥3॥
हे प्रभु मन निर्मल हो जाये चिन्तन हो जाए उज्ज्वल ।
सत- पथ ही हो ध्येय हमारा तन मन आत्म ब्रह्म हो बल ॥3॥
10460
अभिभूरहमागमं विश्वकर्मेण धाम्ना ।
आ वश्चित्तमा वो व्रतमा वोSहं समितिं ददे ॥4॥
मेरे ही मन में जो दुश्मन हैं वही हैं सबसे बडी चुनौती ।
जो इस पर अँकुश रखते हैं उन्हें ही मंज़िल हासिल होती ॥4॥
10461
योगक्षेमं व आदायाहं भूयासमुत्तम आ वो मूर्धानमक्रमीम् ।
अधस्पदान्म उद्वदत माण्डूका इवोदकान्मण्डूका उदकादिव॥5॥
हो अप्राप्य भी प्राप्य हमें प्रभु कल्पवृक्ष हो जाए चिन्तन ।
सबका हित हो लक्ष्य हमारा सार्थक हो जाए यह जीवन ॥5॥
वेदों के शुभ विचार! सुंदर अनुवाद के लिए आभार!
ReplyDeleteनिष्कंटक जीवन दे देना,
ReplyDeleteस्वप्न साधने बहुतेरे हैं।