[ऋषि - शबर काक्षीवत । देवता - गौ । छन्द - त्रिष्टुप । ]
10470
मयोभूर्वातो अभि वातूस्त्रा ऊर्जस्वतीरोषधीरा रिशन्ताम् ।
पीवस्वतीर्जीवधन्या: पिबन्त्ववसाय पद्वते रुद्र मृळ ॥1॥
गो - माता है पूज्य हमारी वह बल- वर्धक औषधियॉं खाये ।
शुध्द- जल मिले गो-माता को वह हमसे अपना- पन पाये ॥1॥
10471
या: सरूपा विरूपा एकरूपा यासामग्निरिष्ट्या नामानि वेद ।
या अङ्गिरसस्तपसेह चक्रुस्ताभ्यःपर्जन्य महि शर्म यच्छ॥2॥
विविध रंग आकृति है उनकी गो - माता की बडी है महिमा ।
हे पर्जन्य - देव विनती है गो - माता की बढ जाए गरिमा ॥2॥
10472
या देवेषु तन्व1मैरयन्त यासां सोमो विश्वा रूपाणि वेद ।
ता असमभ्यं पयसा पिन्वमाना:प्रजावतीरिन्द्र गोष्ठे रिरीह ॥3॥
गो - माता के दधि औ घृत बिन यज्ञ नहीं हो सकता है ।
सुख-पूर्वक गो मॉं पोषित हों ऋग्वेद हमारा यह कहता है ॥3॥
10473
प्रजापतिर्मह्यमेता रराणो विश्वैर्देवैः पितृभिः संविदानः ।
शिवा: सतीरुप नो गोष्ठमाकस्तासां वयं प्रजया सं सदेम ॥4॥
ब्रह्मा जी ने सम्पूर्ण जगत को दिया है यह उज्ज्वल उपहार ।
गो - माता को मिले सुरक्षा गो- माता बिन जग निस्सार ॥4॥
10470
मयोभूर्वातो अभि वातूस्त्रा ऊर्जस्वतीरोषधीरा रिशन्ताम् ।
पीवस्वतीर्जीवधन्या: पिबन्त्ववसाय पद्वते रुद्र मृळ ॥1॥
गो - माता है पूज्य हमारी वह बल- वर्धक औषधियॉं खाये ।
शुध्द- जल मिले गो-माता को वह हमसे अपना- पन पाये ॥1॥
10471
या: सरूपा विरूपा एकरूपा यासामग्निरिष्ट्या नामानि वेद ।
या अङ्गिरसस्तपसेह चक्रुस्ताभ्यःपर्जन्य महि शर्म यच्छ॥2॥
विविध रंग आकृति है उनकी गो - माता की बडी है महिमा ।
हे पर्जन्य - देव विनती है गो - माता की बढ जाए गरिमा ॥2॥
10472
या देवेषु तन्व1मैरयन्त यासां सोमो विश्वा रूपाणि वेद ।
ता असमभ्यं पयसा पिन्वमाना:प्रजावतीरिन्द्र गोष्ठे रिरीह ॥3॥
गो - माता के दधि औ घृत बिन यज्ञ नहीं हो सकता है ।
सुख-पूर्वक गो मॉं पोषित हों ऋग्वेद हमारा यह कहता है ॥3॥
10473
प्रजापतिर्मह्यमेता रराणो विश्वैर्देवैः पितृभिः संविदानः ।
शिवा: सतीरुप नो गोष्ठमाकस्तासां वयं प्रजया सं सदेम ॥4॥
ब्रह्मा जी ने सम्पूर्ण जगत को दिया है यह उज्ज्वल उपहार ।
गो - माता को मिले सुरक्षा गो- माता बिन जग निस्सार ॥4॥
गोमाता के रूप में भेजा,
ReplyDeleteपोषण का देवत्व जगत में।