[ऋषि -संवर्त आङ्गिरस । देवता - उषा । छन्द- गायत्री ।]
10482
आ याहि वनसा सह गावः सचन्त वर्तनिं यदूधभिः ॥1॥
हे उषा-किरण गो-रथ पर आओ नूतन ऊष्मा ऊर्जा लाओ ।
रथ-चक्र नहाए ओस-बिन्दु से तुम हँसती मुस्काती आओ ॥1॥
10483
आ याहि वस्व्या धिया मंहिष्ठो जारयन्मखः सुदानुभिः ॥2॥
हे उषा - काल धन- वैभव लाओ श्लोक-श्रवण करने आओ ।
कर्म- योग का पाठ- पढाओ पूर्णाहुति का दर्शन समझाओ ॥2॥
10484
पितुभृतो न तन्तुमित्सुदानवः प्रति दध्मो यजामसि ॥3॥
अन्न-दान की महिमा गाओ दान-यज्ञ - माहात्म्य बताओ ।
यज्ञ- भाव हमको समझाओ तुम अपनी स्तुति सुनने आओ ॥3॥
10485
उषा अप स्वसुस्तमः सं वर्तयति वर्तनिं सुजातता ॥4॥
तमस मिटाती उषा हमारी जीवन को आलोक दिखाती ।
कोई न भटके अँधकार में यही सोचकर प्रतिदिन आती ॥4॥
10482
आ याहि वनसा सह गावः सचन्त वर्तनिं यदूधभिः ॥1॥
हे उषा-किरण गो-रथ पर आओ नूतन ऊष्मा ऊर्जा लाओ ।
रथ-चक्र नहाए ओस-बिन्दु से तुम हँसती मुस्काती आओ ॥1॥
10483
आ याहि वस्व्या धिया मंहिष्ठो जारयन्मखः सुदानुभिः ॥2॥
हे उषा - काल धन- वैभव लाओ श्लोक-श्रवण करने आओ ।
कर्म- योग का पाठ- पढाओ पूर्णाहुति का दर्शन समझाओ ॥2॥
10484
पितुभृतो न तन्तुमित्सुदानवः प्रति दध्मो यजामसि ॥3॥
अन्न-दान की महिमा गाओ दान-यज्ञ - माहात्म्य बताओ ।
यज्ञ- भाव हमको समझाओ तुम अपनी स्तुति सुनने आओ ॥3॥
10485
उषा अप स्वसुस्तमः सं वर्तयति वर्तनिं सुजातता ॥4॥
तमस मिटाती उषा हमारी जीवन को आलोक दिखाती ।
कोई न भटके अँधकार में यही सोचकर प्रतिदिन आती ॥4॥
दिन आरम्भ की महिमा से भरे शब्द।
ReplyDelete