[ऋषि-चक्षु सौर्य । देवता- सूर्य । छन्द- गायत्री ।]
10414
सूर्यो नो दिवस्पातु वातो अन्तरिक्षात् ।
अग्निर्नः पार्थिवेभ्यः ॥1॥
हे सूर्य-देव तुम मनुज-मात्र की हर अनिष्ट से रक्षा करना ।
हे अग्नि-देव तुम हर संकट से इस वसुधा की चौकसी करना ॥1॥
10415
जोषा सवितर्यस्य ते हरः शतं सवॉं अर्हति।
पाहि नो दिद्युतः पतन्त्याः ॥2॥
हम रवि को हविष्यान्न देते हैं वे मन से उसे ग्रहण करते हैं ।
वे कर्म - योग का पाठ - पढाते हम सबकी रक्षा करते हैं ॥2॥
10416
चक्षुर्नो देवः सविता चक्षुर्न उत पर्वतः ।
चक्षुर्धाता दधातु नः ॥3॥
दृष्टि-शक्ति सूरज देता है वह सूरज पिता सदृश लगता है ।
भोर में आकर वही जगाता उसके आते ही जग जगता है ॥3॥
10417
चक्षुर्नो धेहि चक्षुषे चक्षुर्विख्यै तनूभ्यः ।
सं चेदं वि च पश्येम ॥4॥
हे प्रभु मुझे दृष्टि वह देना जिससे जीवन सार्थक हो जाये ।
सत-पथ पर हम चलें सर्वदा जन-हित में यह जीवन जाये ॥4॥
10418
सुसंदृशं त्वा वयं प्रति पश्येम सूर्य ।
वि पष्येम नृचक्षसः ॥5॥
हे सूर्य - देव सादर प्रणाम है प्रतिदिन अर्घ्य तुम्हें देते हैं ।
सम-भाव सीखते हैं हम तुमसे शुभ-भाव सहित अपना लेते हैं ॥5॥
10414
सूर्यो नो दिवस्पातु वातो अन्तरिक्षात् ।
अग्निर्नः पार्थिवेभ्यः ॥1॥
हे सूर्य-देव तुम मनुज-मात्र की हर अनिष्ट से रक्षा करना ।
हे अग्नि-देव तुम हर संकट से इस वसुधा की चौकसी करना ॥1॥
10415
जोषा सवितर्यस्य ते हरः शतं सवॉं अर्हति।
पाहि नो दिद्युतः पतन्त्याः ॥2॥
हम रवि को हविष्यान्न देते हैं वे मन से उसे ग्रहण करते हैं ।
वे कर्म - योग का पाठ - पढाते हम सबकी रक्षा करते हैं ॥2॥
10416
चक्षुर्नो देवः सविता चक्षुर्न उत पर्वतः ।
चक्षुर्धाता दधातु नः ॥3॥
दृष्टि-शक्ति सूरज देता है वह सूरज पिता सदृश लगता है ।
भोर में आकर वही जगाता उसके आते ही जग जगता है ॥3॥
10417
चक्षुर्नो धेहि चक्षुषे चक्षुर्विख्यै तनूभ्यः ।
सं चेदं वि च पश्येम ॥4॥
हे प्रभु मुझे दृष्टि वह देना जिससे जीवन सार्थक हो जाये ।
सत-पथ पर हम चलें सर्वदा जन-हित में यह जीवन जाये ॥4॥
10418
सुसंदृशं त्वा वयं प्रति पश्येम सूर्य ।
वि पष्येम नृचक्षसः ॥5॥
हे सूर्य - देव सादर प्रणाम है प्रतिदिन अर्घ्य तुम्हें देते हैं ।
सम-भाव सीखते हैं हम तुमसे शुभ-भाव सहित अपना लेते हैं ॥5॥
प्रकृति तत्व सारे गतिमय, तेरी ऊर्जा से।
ReplyDeleteKoi iska matlab boldijiyegaa?
ReplyDeleteसं चेदं वि च पश्येम