[ऋषि- अर्चन हैरण्यस्तूप । देवता- सविता । छन्द- त्रिष्टुप ।]
10369
सविता यन्त्रैः पृथिवीमरम्णादस्कम्भने सविता द्यामदृंहत् ।
अश्वमिवाधुक्षध्दुनिमन्तरिक्षमतूर्ते बध्दं सविता समुद्रम् ॥1॥
सविता अपने ही साधन से इस वसुधा को स्थिर रखते हैं ।
गगन से मेघ-गागर भर-भर पृथ्वी पर प्रेषित करते हैं ॥1॥
10370
यत्रा समुद्रः स्कभितो व्यौनदपां नपात्सविता तस्य वेद ।
अतो भूरत आ उत्थितं रजोSतो द्यावापृथिवी अप्रथेताम् ॥2॥
हे अग्नि- देव हे जल- दायक तुमसे ही जग में जीवन है ।
बादल करते अभिषेक धरा का जिससे यह उर्वर उपवन है ॥2॥
10371
पश्चेदमन्यदभवद्यजत्रममर्त्यस्य भुवनस्य भूना ।
सुपर्णो अङ्ग सवितुर्गरुत्मान्पूर्वो जातःस उ अस्यानु धर्म॥3॥
हे प्रकाश-पुञ्ज हे सविता तुम सब देवों में अग्रगण्य हो ।
अपनी धारक क्षमता के कारण सदा-सदा से ही प्रणम्य हो॥3॥
10372
गावइव ग्रामं यूयुधिरिवाश्वान्वाश्रेव वत्सं सुमना दुहाना ।
पतिरिव जायामभि नो न्येतु धर्ता दिवः सविता विश्ववारः॥4॥
बछडे के पीछे गाय भागती और पति पत्नी के पास जाते हैं ।
वैसे ही सविता हमें संभालो हम हर पल तेरे गुण गाते हैं॥4॥
10373
हिरण्यस्तूपः सवितर्यथा त्वाङ्गिरसो जुह्वे वाजे अस्मिन् ।
एवा त्वार्चन्नवसे वन्दमानःसोमस्येवांशु प्रति जागराहम्॥5॥
सविता सुन लो स्तुति हमारी हम तेरा अभिनंदन करते हैं ।
प्रतिदिन परिचर्या में प्रस्तुत सत्कर्म सदा करते रहते हैं ॥5॥
10369
सविता यन्त्रैः पृथिवीमरम्णादस्कम्भने सविता द्यामदृंहत् ।
अश्वमिवाधुक्षध्दुनिमन्तरिक्षमतूर्ते बध्दं सविता समुद्रम् ॥1॥
सविता अपने ही साधन से इस वसुधा को स्थिर रखते हैं ।
गगन से मेघ-गागर भर-भर पृथ्वी पर प्रेषित करते हैं ॥1॥
10370
यत्रा समुद्रः स्कभितो व्यौनदपां नपात्सविता तस्य वेद ।
अतो भूरत आ उत्थितं रजोSतो द्यावापृथिवी अप्रथेताम् ॥2॥
हे अग्नि- देव हे जल- दायक तुमसे ही जग में जीवन है ।
बादल करते अभिषेक धरा का जिससे यह उर्वर उपवन है ॥2॥
10371
पश्चेदमन्यदभवद्यजत्रममर्त्यस्य भुवनस्य भूना ।
सुपर्णो अङ्ग सवितुर्गरुत्मान्पूर्वो जातःस उ अस्यानु धर्म॥3॥
हे प्रकाश-पुञ्ज हे सविता तुम सब देवों में अग्रगण्य हो ।
अपनी धारक क्षमता के कारण सदा-सदा से ही प्रणम्य हो॥3॥
10372
गावइव ग्रामं यूयुधिरिवाश्वान्वाश्रेव वत्सं सुमना दुहाना ।
पतिरिव जायामभि नो न्येतु धर्ता दिवः सविता विश्ववारः॥4॥
बछडे के पीछे गाय भागती और पति पत्नी के पास जाते हैं ।
वैसे ही सविता हमें संभालो हम हर पल तेरे गुण गाते हैं॥4॥
10373
हिरण्यस्तूपः सवितर्यथा त्वाङ्गिरसो जुह्वे वाजे अस्मिन् ।
एवा त्वार्चन्नवसे वन्दमानःसोमस्येवांशु प्रति जागराहम्॥5॥
सविता सुन लो स्तुति हमारी हम तेरा अभिनंदन करते हैं ।
प्रतिदिन परिचर्या में प्रस्तुत सत्कर्म सदा करते रहते हैं ॥5॥
ऊर्जा चक्रों का समुचित अध्ययन और वर्णन..
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