Monday, 28 October 2013

सूक्त - 149

[ऋषि- अर्चन हैरण्यस्तूप । देवता- सविता । छन्द- त्रिष्टुप ।]

10369
सविता यन्त्रैः पृथिवीमरम्णादस्कम्भने सविता द्यामदृंहत् ।
अश्वमिवाधुक्षध्दुनिमन्तरिक्षमतूर्ते बध्दं सविता समुद्रम् ॥1॥

सविता  अपने ही साधन से इस वसुधा को स्थिर रखते हैं ।
गगन  से  मेघ-गागर  भर-भर  पृथ्वी  पर प्रेषित करते हैं ॥1॥

10370
यत्रा समुद्रः स्कभितो व्यौनदपां नपात्सविता तस्य वेद ।
अतो भूरत आ उत्थितं रजोSतो  द्यावापृथिवी  अप्रथेताम् ॥2॥

हे अग्नि- देव  हे  जल- दायक तुमसे ही जग में जीवन है ।
बादल करते अभिषेक धरा का जिससे यह उर्वर उपवन है ॥2॥

10371
पश्चेदमन्यदभवद्यजत्रममर्त्यस्य      भुवनस्य        भूना । 
सुपर्णो अङ्ग सवितुर्गरुत्मान्पूर्वो जातःस उ अस्यानु धर्म॥3॥ 

हे  प्रकाश-पुञ्ज  हे  सविता तुम सब देवों  में अग्रगण्य हो ।
अपनी धारक क्षमता के कारण सदा-सदा से ही प्रणम्य हो॥3॥

10372
गावइव  ग्रामं यूयुधिरिवाश्वान्वाश्रेव  वत्सं  सुमना दुहाना ।
पतिरिव जायामभि नो न्येतु धर्ता दिवः सविता विश्ववारः॥4॥

बछडे के पीछे गाय  भागती  और पति पत्नी के पास जाते हैं ।
वैसे  ही सविता  हमें संभालो  हम हर पल तेरे गुण गाते हैं॥4॥

10373
हिरण्यस्तूपः सवितर्यथा  त्वाङ्गिरसो जुह्वे  वाजे अस्मिन् ।
एवा त्वार्चन्नवसे वन्दमानःसोमस्येवांशु प्रति जागराहम्॥5॥

सविता सुन लो स्तुति हमारी हम तेरा अभिनंदन करते हैं ।
प्रतिदिन  परिचर्या  में प्रस्तुत सत्कर्म सदा करते रहते हैं ॥5॥  

1 comment:

  1. ऊर्जा चक्रों का समुचित अध्ययन और वर्णन..

    ReplyDelete