[ ऋषि - सर्पराज्ञी । देवता - सूर्य । छन्द - गायत्री । ]
10543
आयं गौः पृश्निरक्रमीदसदन् मातरं पुरः ।
पितरं च प्रयन्त्स्वः ॥1॥
नीले - नभ में प्रकट हुए थे आलोकवान सूरज- तेजस्वी ।
धरती मॉं को पहले छूते फिर अंतरिक्ष और स्वः ओजस्वी ॥1॥
10544
अंतश्चरति रोचनास्य प्राणादपानाती ।
व्यख्यन्महिषो दिवम् ॥2॥
सूर्य - देव का यह प्रकाश नभ में संचारित होता है ।
इन सूर्य - रश्मियों से ही प्राणापान भी संचालित होता है ॥2॥
10545
त्रिंशध्दाम वि राजति वाक्पतङ्गाय धीयते ।
प्रति वस्तोरह द्युभिः ॥3॥
सूर्य - देव सबके प्रेरक हैं विश्राम कभी नहीं करते हैं ।
आलोक और ऊष्मा देते हैं सब उनकी पूजा करते हैं ॥3॥
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग. ]
10543
आयं गौः पृश्निरक्रमीदसदन् मातरं पुरः ।
पितरं च प्रयन्त्स्वः ॥1॥
नीले - नभ में प्रकट हुए थे आलोकवान सूरज- तेजस्वी ।
धरती मॉं को पहले छूते फिर अंतरिक्ष और स्वः ओजस्वी ॥1॥
10544
अंतश्चरति रोचनास्य प्राणादपानाती ।
व्यख्यन्महिषो दिवम् ॥2॥
सूर्य - देव का यह प्रकाश नभ में संचारित होता है ।
इन सूर्य - रश्मियों से ही प्राणापान भी संचालित होता है ॥2॥
10545
त्रिंशध्दाम वि राजति वाक्पतङ्गाय धीयते ।
प्रति वस्तोरह द्युभिः ॥3॥
सूर्य - देव सबके प्रेरक हैं विश्राम कभी नहीं करते हैं ।
आलोक और ऊष्मा देते हैं सब उनकी पूजा करते हैं ॥3॥
शकुन्तला शर्मा , भिलाई [ छ. ग. ]
बेहतरीन सूक्त संग्रहणीय
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