[ऋषि - विश्वामित्र,जमदग्नि । देवता- इन्द्र । छन्द- जगती । ]
10462
तुभ्येदमिन्द्र परि षिच्यते मधु त्वं सुतस्य कलशस्य राजसि।
त्वं रयिं पुरुवीरामु नस्कृधि त्वं तपः परितप्याजयः स्वः ॥1॥
हे सूर्य - देव आलोक - प्रदाता हविष्यान्न प्रेषित करते हैं ।
तुम्हीं हमें धन संतति देते कृतज्ञता - ज्ञापित करते हैं ॥1॥
10463
स्वर्जितं महि मन्दानमन्धसो हवामहे परि शक्रं सुतॉं उप ।
इमं नो यज्ञमिह बोध्या गहि स्पृधो जयन्तं मघवानमीमहे ॥2॥
हे इन्द्र यज्ञ में तुम भी आओ आवश्यक अन्न-धान ले आओ ।
ईर्ष्या- द्वेष से हमें बचाओ जीवन सत -पथ- पर ले जाओ ॥2॥
10464
सोमस्य राज्ञो वरुणस्य धर्मणि बृहस्पतेरनुमत्या उ शर्मणि ।
तवाहमद्य मघवन्नुपस्तुतौ धातविर्धातः कलशॉं अभक्षयम्॥3॥
सानिध्य पा सकें सोमदेव का बृहस्पति से मिल जाए ज्ञान ।
वरुण- देव की मिले तरलता सूरज से सीखें श्रेष्ठ- दान ॥3॥
10465
प्रसूतो भक्षमकरं चरावपि स्तोमं चेमं प्रथमः सूरिरुन्मृजे ।
सुते सातेन यद्यागमं वॉं प्रति विश्वामित्रजमदग्नी जमे ॥4॥
हे देव ज्ञान से करें परिष्कृत मन में नित उभरे शुभ -विचार ।
सबके हित में अपना हित है यह है वेद- ज्ञान का सार ॥4॥
10462
तुभ्येदमिन्द्र परि षिच्यते मधु त्वं सुतस्य कलशस्य राजसि।
त्वं रयिं पुरुवीरामु नस्कृधि त्वं तपः परितप्याजयः स्वः ॥1॥
हे सूर्य - देव आलोक - प्रदाता हविष्यान्न प्रेषित करते हैं ।
तुम्हीं हमें धन संतति देते कृतज्ञता - ज्ञापित करते हैं ॥1॥
10463
स्वर्जितं महि मन्दानमन्धसो हवामहे परि शक्रं सुतॉं उप ।
इमं नो यज्ञमिह बोध्या गहि स्पृधो जयन्तं मघवानमीमहे ॥2॥
हे इन्द्र यज्ञ में तुम भी आओ आवश्यक अन्न-धान ले आओ ।
ईर्ष्या- द्वेष से हमें बचाओ जीवन सत -पथ- पर ले जाओ ॥2॥
10464
सोमस्य राज्ञो वरुणस्य धर्मणि बृहस्पतेरनुमत्या उ शर्मणि ।
तवाहमद्य मघवन्नुपस्तुतौ धातविर्धातः कलशॉं अभक्षयम्॥3॥
सानिध्य पा सकें सोमदेव का बृहस्पति से मिल जाए ज्ञान ।
वरुण- देव की मिले तरलता सूरज से सीखें श्रेष्ठ- दान ॥3॥
10465
प्रसूतो भक्षमकरं चरावपि स्तोमं चेमं प्रथमः सूरिरुन्मृजे ।
सुते सातेन यद्यागमं वॉं प्रति विश्वामित्रजमदग्नी जमे ॥4॥
हे देव ज्ञान से करें परिष्कृत मन में नित उभरे शुभ -विचार ।
सबके हित में अपना हित है यह है वेद- ज्ञान का सार ॥4॥
सुंदर अनुवाद !
ReplyDeleteRECENT POST : - एक जबाब माँगा था.
प्रांजल
ReplyDeleteसभी देव अपने कर्मों को,
ReplyDeleteसाध रहे जीवन मर्मों को।