[ऋषि- पूरण वैश्वामित्र । देवता- इन्द्र । छन्द - त्रिष्टुप । ]
10425
तीव्रस्याभिवयसो अस्य पाहि सर्वरथा वि हरी इह मुञ्च ।
इन्द्र मा त्वा यजमानासो अन्ये नि रीरमन्तुभ्यमिमे सुतासः॥1॥
हे सेनापति तुम करो चौकसी यह धन-धान्य से पूर्ण भूमि है ।
दुश्मन कहीं तुम्हें न ठग ले रक्षा कर यह मातृभूमि है ॥1॥
10426
तुभ्यं सुतास्तुभ्यमु सोत्वासस्त्वां गिरः श्वात्र्या आ ह्वयन्ति ।
इन्द्रेदमद्य सवनं जुषाणो विश्वस्य विद्वॉं इह पाहि सोमम् ॥2॥
यश- वैभव हैं सभी तुम्हारे आज भी हैं और हैं ये कल भी ।
निज कर्म-योग की कर लो चिंता रहे सुरक्षित कल भी अब भी॥2॥
10427
य उशता मनसा सोममस्मै सर्वह्रदा देवकामः सुनोति ।
न गा इन्द्रस्तस्य परा ददाति प्रशस्तमिच्चारुमस्मै कृणोति ॥3॥
जो यज्ञ-भाव से पूर्ण-ह्रदय से प्रभु को भोग अर्पित करता है ।
उसका संकल्प पूर्ण होता है उसका राष्ट्र प्रगति करता है ॥3॥
10428
अनुस्पष्टो भवत्येषो अस्य यो अस्मै रेवान्न सुनोति सोमम् ।
निररत्नौ मघवा तं दधाति ब्रह्मद्विषो हन्त्यनानुदिष्टः ॥4॥
जो प्रभु का चिन्तन करता है वह सदा सुरक्षित रहता है ।
ज्ञान-वान वह बन जाता है दिनों-दिन वह उन्नति करता है ॥4॥
10429
अश्वायन्तो गव्यन्तो वाजयन्तो हवामहे त्वोपगन्तवा उ ।
आभूषन्तस्ते सुमतौ नवायां वयमिन्द्र त्वा शुनं हुवेम ॥5॥
हे सेनापति संकल्प करो तुम अस्त्र - शस्त्र की करो सुरक्षा ।
बल - शाली सेना हो अपनी राष्ट्र - यज्ञ की सदा हो रक्षा ॥5॥
10425
तीव्रस्याभिवयसो अस्य पाहि सर्वरथा वि हरी इह मुञ्च ।
इन्द्र मा त्वा यजमानासो अन्ये नि रीरमन्तुभ्यमिमे सुतासः॥1॥
हे सेनापति तुम करो चौकसी यह धन-धान्य से पूर्ण भूमि है ।
दुश्मन कहीं तुम्हें न ठग ले रक्षा कर यह मातृभूमि है ॥1॥
10426
तुभ्यं सुतास्तुभ्यमु सोत्वासस्त्वां गिरः श्वात्र्या आ ह्वयन्ति ।
इन्द्रेदमद्य सवनं जुषाणो विश्वस्य विद्वॉं इह पाहि सोमम् ॥2॥
यश- वैभव हैं सभी तुम्हारे आज भी हैं और हैं ये कल भी ।
निज कर्म-योग की कर लो चिंता रहे सुरक्षित कल भी अब भी॥2॥
10427
य उशता मनसा सोममस्मै सर्वह्रदा देवकामः सुनोति ।
न गा इन्द्रस्तस्य परा ददाति प्रशस्तमिच्चारुमस्मै कृणोति ॥3॥
जो यज्ञ-भाव से पूर्ण-ह्रदय से प्रभु को भोग अर्पित करता है ।
उसका संकल्प पूर्ण होता है उसका राष्ट्र प्रगति करता है ॥3॥
10428
अनुस्पष्टो भवत्येषो अस्य यो अस्मै रेवान्न सुनोति सोमम् ।
निररत्नौ मघवा तं दधाति ब्रह्मद्विषो हन्त्यनानुदिष्टः ॥4॥
जो प्रभु का चिन्तन करता है वह सदा सुरक्षित रहता है ।
ज्ञान-वान वह बन जाता है दिनों-दिन वह उन्नति करता है ॥4॥
10429
अश्वायन्तो गव्यन्तो वाजयन्तो हवामहे त्वोपगन्तवा उ ।
आभूषन्तस्ते सुमतौ नवायां वयमिन्द्र त्वा शुनं हुवेम ॥5॥
हे सेनापति संकल्प करो तुम अस्त्र - शस्त्र की करो सुरक्षा ।
बल - शाली सेना हो अपनी राष्ट्र - यज्ञ की सदा हो रक्षा ॥5॥
गुँथा एक है जीवन का क्रम..
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