[ऋषि -शिबि औशीनर, प्रतर्दन काशिराज, वसुमना रोहिदश्व । देवता-इन्द्र ।छन्द- त्रिष्टुप-अनुष्टुप।]
10511
उत्तिष्ठताव पश्यतेन्द्रस्य भागमृत्वियम् ।
यदि श्रातो जुहोतन यद्यश्रातोममत्तन ॥1॥
इन्द्र- देव का यज्ञ- भाग अब ऋतु के अनुकूल बनाना है ।
सामग्री सब संचित करके उन्हें निमंत्रण भिजवाना है ॥1॥
10512
श्रातं हविरो श्विन्द्र प्र याहि जगाम सूरो अध्वनो विमध्यम् ।
परि त्वासते निधिभिः सखायः कुलपा न व्राजपतिं चरन्तम् ॥2॥
हे इन्द्र- देव सोमादि- सहित सब हविष्यान्न हम लाए हैं ।
तुम आओ सादर ग्रहण करो हम तुम्हें बुलाने आए हैं ॥2॥
10513
श्रातं मन्य ऊधनि श्रातमग्नौ सुश्रातं मन्ये तदृतं नवीयः ।
माध्यन्दिनस्य सवनस्य दध्नःपिबेन्द्र वज्रिन्पुरुकृज्जुषाणः॥3॥
हे इन्द्र - देव आओ देखो गोरस का हवि हम लाए हैं ।
तुम आओ सोम - पान कर लो हम वह भी लेकर आए हैं ॥3॥
10511
उत्तिष्ठताव पश्यतेन्द्रस्य भागमृत्वियम् ।
यदि श्रातो जुहोतन यद्यश्रातोममत्तन ॥1॥
इन्द्र- देव का यज्ञ- भाग अब ऋतु के अनुकूल बनाना है ।
सामग्री सब संचित करके उन्हें निमंत्रण भिजवाना है ॥1॥
10512
श्रातं हविरो श्विन्द्र प्र याहि जगाम सूरो अध्वनो विमध्यम् ।
परि त्वासते निधिभिः सखायः कुलपा न व्राजपतिं चरन्तम् ॥2॥
हे इन्द्र- देव सोमादि- सहित सब हविष्यान्न हम लाए हैं ।
तुम आओ सादर ग्रहण करो हम तुम्हें बुलाने आए हैं ॥2॥
10513
श्रातं मन्य ऊधनि श्रातमग्नौ सुश्रातं मन्ये तदृतं नवीयः ।
माध्यन्दिनस्य सवनस्य दध्नःपिबेन्द्र वज्रिन्पुरुकृज्जुषाणः॥3॥
हे इन्द्र - देव आओ देखो गोरस का हवि हम लाए हैं ।
तुम आओ सोम - पान कर लो हम वह भी लेकर आए हैं ॥3॥
इन्द्रिय नमः
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