Saturday, 26 October 2013

सूक्त - 153

[ऋषि- मातायें । देवता- इन्द्र । छन्द- गायत्री ।]

10389
ईङ्खयन्तीरपस्युव  इन्द्रं  जातमुपासते । भेजानासः सुवीर्यम् ॥1॥

उस  सर्व - शक्ति - सम्पन्न  देव  की  मातृशक्ति  पूजा  करती  है ।
माताओं    की   मनो  -  कामना   पूरी  देव -  शक्ति   करती   है ॥1॥

10390
त्वमिन्द्र  बलादधि   सहसो  जात  ओजसः । त्वं  वृषन्वृषेदसि ॥2॥

हे   प्रभु  हमें  समर्थ  बना  दो  हम  शौर्य - धैर्य   के  बनें  प्रतीक ।
तुम   हो  अवढर  दानी  प्रभु वर  छूटे  न  ज्ञान - गली  की  लीक ॥2॥

10391
त्वमिन्द्रासि वृत्रहा व्य1न्तरिक्षमतिरः।उद् द्यामस्तभ्ना ओजसा॥3॥

हे   प्रभु   जग   है   देह   तुम्हारा   यह   अन्तरिक्ष   तेरा   विस्तार । 
चर  में  अचर  में  तुम  ही  तुम  हो  सर्जक  पोषक  पालन - हार ॥3॥

10392
त्वमिन्द्र  सजोषसमर्कं  बिभर्षि  बाह्वोः । वज्रं  शिशान  ओजसा ॥4॥

सूर्य   तुम्हारा   सखा   सहृदय   जग   को  करता   है  आलोकित ।
मित्र - वरुण  के  हाथ  प्राण -  द्वय  प्राण - उदान  हुए   स्थापित ॥4॥

10393
त्वमिन्द्राभिभूरसि विश्वा जातान्योजसा । स विश्वा भुव आभवः ॥5॥

सर्व  सामर्थ्य -  वान  हो  प्रभु  जी  नमन  तुम्हें  हम  करते  हैं ।
हम  सब  के  भीतर  सूक्ष्म  रूप  में  पवन  रूप  धर  कर रहते हैं ॥5॥
 

1 comment:

  1. शौर्य और धैर्य सदा से ही वांछनीय गुण रहे हैं।

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