[ऋषि- मातायें । देवता- इन्द्र । छन्द- गायत्री ।]
10389
ईङ्खयन्तीरपस्युव इन्द्रं जातमुपासते । भेजानासः सुवीर्यम् ॥1॥
उस सर्व - शक्ति - सम्पन्न देव की मातृशक्ति पूजा करती है ।
माताओं की मनो - कामना पूरी देव - शक्ति करती है ॥1॥
10390
त्वमिन्द्र बलादधि सहसो जात ओजसः । त्वं वृषन्वृषेदसि ॥2॥
हे प्रभु हमें समर्थ बना दो हम शौर्य - धैर्य के बनें प्रतीक ।
तुम हो अवढर दानी प्रभु वर छूटे न ज्ञान - गली की लीक ॥2॥
10391
त्वमिन्द्रासि वृत्रहा व्य1न्तरिक्षमतिरः।उद् द्यामस्तभ्ना ओजसा॥3॥
हे प्रभु जग है देह तुम्हारा यह अन्तरिक्ष तेरा विस्तार ।
चर में अचर में तुम ही तुम हो सर्जक पोषक पालन - हार ॥3॥
10392
त्वमिन्द्र सजोषसमर्कं बिभर्षि बाह्वोः । वज्रं शिशान ओजसा ॥4॥
सूर्य तुम्हारा सखा सहृदय जग को करता है आलोकित ।
मित्र - वरुण के हाथ प्राण - द्वय प्राण - उदान हुए स्थापित ॥4॥
10393
त्वमिन्द्राभिभूरसि विश्वा जातान्योजसा । स विश्वा भुव आभवः ॥5॥
सर्व सामर्थ्य - वान हो प्रभु जी नमन तुम्हें हम करते हैं ।
हम सब के भीतर सूक्ष्म रूप में पवन रूप धर कर रहते हैं ॥5॥
10389
ईङ्खयन्तीरपस्युव इन्द्रं जातमुपासते । भेजानासः सुवीर्यम् ॥1॥
उस सर्व - शक्ति - सम्पन्न देव की मातृशक्ति पूजा करती है ।
माताओं की मनो - कामना पूरी देव - शक्ति करती है ॥1॥
10390
त्वमिन्द्र बलादधि सहसो जात ओजसः । त्वं वृषन्वृषेदसि ॥2॥
हे प्रभु हमें समर्थ बना दो हम शौर्य - धैर्य के बनें प्रतीक ।
तुम हो अवढर दानी प्रभु वर छूटे न ज्ञान - गली की लीक ॥2॥
10391
त्वमिन्द्रासि वृत्रहा व्य1न्तरिक्षमतिरः।उद् द्यामस्तभ्ना ओजसा॥3॥
हे प्रभु जग है देह तुम्हारा यह अन्तरिक्ष तेरा विस्तार ।
चर में अचर में तुम ही तुम हो सर्जक पोषक पालन - हार ॥3॥
10392
त्वमिन्द्र सजोषसमर्कं बिभर्षि बाह्वोः । वज्रं शिशान ओजसा ॥4॥
सूर्य तुम्हारा सखा सहृदय जग को करता है आलोकित ।
मित्र - वरुण के हाथ प्राण - द्वय प्राण - उदान हुए स्थापित ॥4॥
10393
त्वमिन्द्राभिभूरसि विश्वा जातान्योजसा । स विश्वा भुव आभवः ॥5॥
सर्व सामर्थ्य - वान हो प्रभु जी नमन तुम्हें हम करते हैं ।
हम सब के भीतर सूक्ष्म रूप में पवन रूप धर कर रहते हैं ॥5॥
शौर्य और धैर्य सदा से ही वांछनीय गुण रहे हैं।
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