[ ऋषि - तपुमूर्धा बार्हस्पत्य । देवता - बृहस्पति| । छन्द- त्रिष्टुप् । ]
10520
बृहस्पतिर्नयतु दुर्गहा तिरः पुनर्नेषदघशंसाय मन्म ।
क्षिपदशस्तिमप दुर्मतिं हन्नथा करद्यजमानाय शं यो: ॥1॥
देव- बृहस्पति बुध्दि -प्रदाता शुभ -चिन्तन से भर दो मन ।
रोग - शोक मिट जाए ऐसा चिंता -विहीन कर दो चिंतन ॥1॥
10521
नराशंसो नोSवतु प्रयाजे शं नो अस्त्वनुयाजो हवेषु ।
क्षिपदशस्तिमप दुर्मतिं हन्नथा करद्यजमानाय शं योः ॥2॥
सज्जनता हो मेरा गहना और अशुभ निवारण हो जाये ।
हे अग्निदेव निर्भीक बनाओ जीवन परम शान्ति बन जाये ॥2॥
10522
तपुमूर्धा तपतु रक्षसो ये ब्रह्मद्विषः शरवे हन्तवा उ ।
क्षिपदशस्तिमप दुर्मतिं हन्नथा करद्यजमानाय शं योः ॥3॥
हे गुरु रिपु से तुम्हीं बचाओ शुभ - भावों से भर दो मेरा मन ।
हम शुध्द बनें हम बुध्द बनें सुख-शांति भरा हो यह जीवन ॥3॥
10520
बृहस्पतिर्नयतु दुर्गहा तिरः पुनर्नेषदघशंसाय मन्म ।
क्षिपदशस्तिमप दुर्मतिं हन्नथा करद्यजमानाय शं यो: ॥1॥
देव- बृहस्पति बुध्दि -प्रदाता शुभ -चिन्तन से भर दो मन ।
रोग - शोक मिट जाए ऐसा चिंता -विहीन कर दो चिंतन ॥1॥
10521
नराशंसो नोSवतु प्रयाजे शं नो अस्त्वनुयाजो हवेषु ।
क्षिपदशस्तिमप दुर्मतिं हन्नथा करद्यजमानाय शं योः ॥2॥
सज्जनता हो मेरा गहना और अशुभ निवारण हो जाये ।
हे अग्निदेव निर्भीक बनाओ जीवन परम शान्ति बन जाये ॥2॥
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तपुमूर्धा तपतु रक्षसो ये ब्रह्मद्विषः शरवे हन्तवा उ ।
क्षिपदशस्तिमप दुर्मतिं हन्नथा करद्यजमानाय शं योः ॥3॥
हे गुरु रिपु से तुम्हीं बचाओ शुभ - भावों से भर दो मेरा मन ।
हम शुध्द बनें हम बुध्द बनें सुख-शांति भरा हो यह जीवन ॥3॥
ज्ञान समस्त जड़ता को नष्ट करे।
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