[ ऋषि -1 वासिष्ठ,2 भारद्वाज, 3 धर्मसौर्य ।देवता -विश्वेदेवा ।छन्द -त्रिष्टुप ।]
10517
प्रथश्च यस्य सप्रथश्च नामानुष्टुभस्य हविषो हविर्यत् ।
धातुर्द्युतानात्सवितुश्च विष्णो रथन्तरमा जभारा वसिष्ठः ॥1॥
वसिष्ठ - भारद्वाज ऋषि ने अनुष्टुप से तब हवन किया ।
धाता-सविता और विष्णु ने रथन्तर साम को ग्रहण किया ॥1॥
10518
अविन्दन्ते अतिहितं यदासीद्यज्ञस्य धाम परमं गुहा यत् ।
धातुर्द्युतानात्सवितुश्च विष्णोर्भरद्वाजो बृहदा चक्रे अग्नेः ॥2॥
जो यज्ञाधार निगूढ बहुत था सविता को मिला था वृहत् साम ।
धाता- सविता -विष्णु- अग्नि से भारद्वाज फिर लाए साम ॥2॥
10519
तेSविन्दन्मनसा दीध्याना यजुः ष्कन्नं प्रथमं देवयानम् ।
धातुर्द्युतानात्सवितुश्च विष्णोरा सूर्यादभरन्धर्ममेते ॥3॥
विद्वत् - जन ने तपो - शक्ति से याग - कर्म को प्राप्त किया ।
धाता - विष्णु और सविता से पुनीत धर्म को ग्रहण किया ॥3॥
10517
प्रथश्च यस्य सप्रथश्च नामानुष्टुभस्य हविषो हविर्यत् ।
धातुर्द्युतानात्सवितुश्च विष्णो रथन्तरमा जभारा वसिष्ठः ॥1॥
वसिष्ठ - भारद्वाज ऋषि ने अनुष्टुप से तब हवन किया ।
धाता-सविता और विष्णु ने रथन्तर साम को ग्रहण किया ॥1॥
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अविन्दन्ते अतिहितं यदासीद्यज्ञस्य धाम परमं गुहा यत् ।
धातुर्द्युतानात्सवितुश्च विष्णोर्भरद्वाजो बृहदा चक्रे अग्नेः ॥2॥
जो यज्ञाधार निगूढ बहुत था सविता को मिला था वृहत् साम ।
धाता- सविता -विष्णु- अग्नि से भारद्वाज फिर लाए साम ॥2॥
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तेSविन्दन्मनसा दीध्याना यजुः ष्कन्नं प्रथमं देवयानम् ।
धातुर्द्युतानात्सवितुश्च विष्णोरा सूर्यादभरन्धर्ममेते ॥3॥
विद्वत् - जन ने तपो - शक्ति से याग - कर्म को प्राप्त किया ।
धाता - विष्णु और सविता से पुनीत धर्म को ग्रहण किया ॥3॥
सुन्दर विवरण साम ज्ञान का
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