Wednesday, 23 October 2013

सूक्त - 159

[ऋषि- शची पौलोमी । देवता- आत्म-तुष्टि । छन्द- अनुष्टुप ।]

10419
उदसौ    सूर्यो    अगादुदयं   मामको   भगः।
अहं तद्विद्वला पतिमभ्यसाक्षि विषासहिः ॥1॥ 

हे  सूर्य-देवता  करो  अनुग्रह  सुख सौभाग्य प्रदान करो ।
पति का संग रहे जीवन भर यश-वैभव का भण्डार भरो ॥1॥

10420
अहं    केतुरहं    मूर्धाहमुग्रा    विवाचनी ।
ममेदनु  क्रतुं पतिः सेहानाया उपाचरेत् ॥2॥

सबसे  आगे  सदा  रहें  हम   सबसे   हो  उत्तम  व्यवहार ।
सम्यक चिंतन मनन सदा हो सादा जीवन उच्च विचार॥2॥

10421
मम  पुत्राः  शत्रुहणोSथो  मे  दुहिता  विराट ।
उताहमस्मि सञ्जया पत्यौ मे श्लोक उत्तमः॥3॥

दया  करो  हम  पर  हे  प्रभु  जी पायें हम उत्तम सन्तान ।
घर  में  लक्ष्मी  का  डेरा  हो  श्रेष्ठ- कर्म  से  बनें  महान ॥3॥

10422
येनेन्द्रो हविषा कृत्व्यभवद् द्युम्न्युत्तमः ।
इदं तदक्रि देवा असपत्ना किलाभुवम् ॥4॥

स्वामित्व रहे अविचल जिससे प्रभु हम वैसा ही कर्म करें । 
यज्ञ भाव मय यह जीवन हो त्याग-सहित उपभोग करें ॥4॥

10423
असपत्ना   सपत्नघ्नी      जयन्त्यभिभूवरी ।
आवृक्षमन्यासां वर्चो राधो अस्थेयसामिव॥5॥

षड्-रिपुओं से बचे रहें हम सद्-गुण का पहनें आभूषण ।
अनुष्ठान बन जाए जीवन सन्तुष्ट रहे यह मन हर क्षण ॥5॥

10424
समजैषमिमा       अहं      सपत्नीरभिभूवरी ।
यथाहमस्य वीरस्य विराजानि जनस्य च ॥6॥

प्रेम से जीत लें हम सबका मन कभी किसी से वैर न हो ।
विनती  करते  हैं हम प्रभु जी मेरे लिए कोई गैर न हो ॥6॥   

1 comment:

  1. गृह, पुरुष और प्रकृति का व्यवहार जगत।

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