[ऋषि- साधन । देवता- विश्वेदेवा । छन्द- त्रिष्टुप ।]
10409
इमा नु कं भुवना सीषधामेन्द्रश्च विश्वे च देवा: ॥1॥
जग में जितने भी सुख-साधन हैं वह उपलब्ध हमें हो जाए ।
देवों की हम पर कृपा-दृष्टि हो जीवन जन-हित के काम आए॥1॥
10410
यज्ञं च नस्तन्वं च प्रजा चादित्यैरिन्द्रः सह चीक्लृपाति ॥2॥
कर्म-योग हो सफल सर्वदा स्वस्थ रहे सबका तन-मन ।
सीखें संस्कार सभी संतानें सज्जनता ही हो सबका धन ॥2॥
10411
आदित्यैरिन्द्रः सगणो मरुद्भिरस्माकं भूत्वविता तनूनाम् ॥3॥
हे आदित्य देव विनती करते हैं जीवन-यज्ञ सफल हो जाये ।
हे पवन-देव सान्निध्य तुम्हारा सब संकट से हमें बचाये ॥3॥
10412
हत्वाय देवा असुरान्यदायन्देवा देवत्वमभिरक्षमाणा: ॥4॥
यही सृष्टि का नेम-नियम है सदा सत्य की जीत हुई है ।
देव सहायक हैं हम सबके असत की हरदम हार हुई है ॥4॥
10413
प्रत्यञ्चमर्कमनयञ्छचीभिरादित्स्वधामिषिरां पर्यपश्यन् ॥5॥
शुभ-चिन्तन सब कुछ देता है जीवन में वह हँसता- गाता है ।
कृतज्ञता में बडी शक्ति है असंभव भी संभव हो जाता है ॥5॥
10409
इमा नु कं भुवना सीषधामेन्द्रश्च विश्वे च देवा: ॥1॥
जग में जितने भी सुख-साधन हैं वह उपलब्ध हमें हो जाए ।
देवों की हम पर कृपा-दृष्टि हो जीवन जन-हित के काम आए॥1॥
10410
यज्ञं च नस्तन्वं च प्रजा चादित्यैरिन्द्रः सह चीक्लृपाति ॥2॥
कर्म-योग हो सफल सर्वदा स्वस्थ रहे सबका तन-मन ।
सीखें संस्कार सभी संतानें सज्जनता ही हो सबका धन ॥2॥
10411
आदित्यैरिन्द्रः सगणो मरुद्भिरस्माकं भूत्वविता तनूनाम् ॥3॥
हे आदित्य देव विनती करते हैं जीवन-यज्ञ सफल हो जाये ।
हे पवन-देव सान्निध्य तुम्हारा सब संकट से हमें बचाये ॥3॥
10412
हत्वाय देवा असुरान्यदायन्देवा देवत्वमभिरक्षमाणा: ॥4॥
यही सृष्टि का नेम-नियम है सदा सत्य की जीत हुई है ।
देव सहायक हैं हम सबके असत की हरदम हार हुई है ॥4॥
10413
प्रत्यञ्चमर्कमनयञ्छचीभिरादित्स्वधामिषिरां पर्यपश्यन् ॥5॥
शुभ-चिन्तन सब कुछ देता है जीवन में वह हँसता- गाता है ।
कृतज्ञता में बडी शक्ति है असंभव भी संभव हो जाता है ॥5॥
देव व मानव के सहयोग से स्फुरित यह प्रकृति..
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