[ऋषि- मृळीक वासिष्ठ । देवता- अग्नि । छन्द- बृहती, जगती ।]
10374
समिध्दश्चित्समिध्यसे देवेभ्यो हव्यवाहन ।
आदित्यै रुद्रैर्वसुभिर्न आ गहि मृळीकाय न आ गहि ॥1॥
हे अग्नि- देव तुम आ जाओ हम सादर तुम्हें बुलाते हैं ।
सबका कल्याण तुम्हीं करते हो तुमसे हम यश-धन पाते हैं॥1॥
10375
इमं यज्ञमिदं वचो जुजुषाण उपागहि ।
मर्तासस्त्वा समिधान हवामहे मृळीकाय हवामहे ॥2॥
हे भगवन तुमसे विनती है यह अनुष्ठान स्वीकार करें ।
यह श्रध्दा से भरा भाव है सुख- साधन हमें प्रदान करें ॥2॥
10376
त्वामु जातवेदसं विश्ववारं गृणे धिया ।
अग्ने देवॉं आ वह नः प्रियव्रतान्मृलीकाय प्रियव्रतान् ॥3॥
हे अग्नि-देव सुख-श्रोत तुम्हीं हो सब देवों को संग लेकर आओ।
हाथ - जोड विनती करते हैं सुख- समृध्दि हमें दे जाओ ॥3॥
10377
अग्निर्देवो देवानामभवत्पुरोहितोSग्निं मनुष्या3ऋषयः समीधिरे।
अग्निं महो धनसातावहं हुवे मृळीकं धनसातये ॥4॥
तुम दिव्य गुणों के स्वामी हो सब देवों में अग्रगण्य हो ।
धन और धान हमें देना प्रभु तुम पूजनीय तुम ही वरेण्य हो ॥4॥
10378
अग्निरत्रिं भरद्वाजं गविष्ठिरं प्रावन्नः कण्वं त्रसदस्युमाहवे ।
अग्निं वसिष्ठो हवते पुरोहितो मृलीकाय पुरोहितः ॥5॥
सदा सुरक्षा देना प्रभुवर दुश्मन से हमारी रक्षा करना ।
हे अग्नि- देव तुम पूज्य सभी के हम पर वरद-हस्त रखना ॥5॥
10374
समिध्दश्चित्समिध्यसे देवेभ्यो हव्यवाहन ।
आदित्यै रुद्रैर्वसुभिर्न आ गहि मृळीकाय न आ गहि ॥1॥
हे अग्नि- देव तुम आ जाओ हम सादर तुम्हें बुलाते हैं ।
सबका कल्याण तुम्हीं करते हो तुमसे हम यश-धन पाते हैं॥1॥
10375
इमं यज्ञमिदं वचो जुजुषाण उपागहि ।
मर्तासस्त्वा समिधान हवामहे मृळीकाय हवामहे ॥2॥
हे भगवन तुमसे विनती है यह अनुष्ठान स्वीकार करें ।
यह श्रध्दा से भरा भाव है सुख- साधन हमें प्रदान करें ॥2॥
10376
त्वामु जातवेदसं विश्ववारं गृणे धिया ।
अग्ने देवॉं आ वह नः प्रियव्रतान्मृलीकाय प्रियव्रतान् ॥3॥
हे अग्नि-देव सुख-श्रोत तुम्हीं हो सब देवों को संग लेकर आओ।
हाथ - जोड विनती करते हैं सुख- समृध्दि हमें दे जाओ ॥3॥
10377
अग्निर्देवो देवानामभवत्पुरोहितोSग्निं मनुष्या3ऋषयः समीधिरे।
अग्निं महो धनसातावहं हुवे मृळीकं धनसातये ॥4॥
तुम दिव्य गुणों के स्वामी हो सब देवों में अग्रगण्य हो ।
धन और धान हमें देना प्रभु तुम पूजनीय तुम ही वरेण्य हो ॥4॥
10378
अग्निरत्रिं भरद्वाजं गविष्ठिरं प्रावन्नः कण्वं त्रसदस्युमाहवे ।
अग्निं वसिष्ठो हवते पुरोहितो मृलीकाय पुरोहितः ॥5॥
सदा सुरक्षा देना प्रभुवर दुश्मन से हमारी रक्षा करना ।
हे अग्नि- देव तुम पूज्य सभी के हम पर वरद-हस्त रखना ॥5॥
सूर्य का अवतार, पृथ्वी पर, ऊर्जाचक्र को संचालित करने के लिये।
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