Saturday, 12 October 2013

सूक्त - 185

[ ऋषि - सत्यधृति वारुणि । देवता - आदित्य । छन्द - गायत्री । ]

10529
महि त्रीणामवोSस्तु द्युक्षं मित्रस्यार्यम्णः ।
दुराधर्षं                              वरुणस्य ॥1॥

हे प्रकाश - पुँज  ऊर्जा  के स्वामी कृपया हमें सुरक्षा दें ।
हम निज षड् रिपुओं को जीतें समर्थ बनें यह शिक्षा दें ॥1॥

10530
नहि तेषाममा चन नाध्वसु वारणेषु ।
ईशे                        रिपुरघशंसः ॥2॥ 

आदित्य-आश्रित जो रहते हैं उनका अहित नहीं हो सकता ।
आसुरी शक्ति निर्बल होती है भक्त की बढ जाती है क्षमता ॥2॥

10531
यस्मै पुत्रासो अदितेः प्र जीवसे मत् र्याय ।
ज्योतिर्यच्छन्त्यजस्त्रम्                   ॥3॥

अदिति -सुत देते जिसे सुरक्षा पावन पथ पर बढता जाता है ।
रिपु  उसका  निर्बल  होता  है  वह  तेजस्वी बन जाता  है ॥3॥

1 comment:

  1. ऊर्जा चक्र हमारी सुरक्षा करे।

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