[ ऋषि - सत्यधृति वारुणि । देवता - आदित्य । छन्द - गायत्री । ]
10529
महि त्रीणामवोSस्तु द्युक्षं मित्रस्यार्यम्णः ।
दुराधर्षं वरुणस्य ॥1॥
हे प्रकाश - पुँज ऊर्जा के स्वामी कृपया हमें सुरक्षा दें ।
हम निज षड् रिपुओं को जीतें समर्थ बनें यह शिक्षा दें ॥1॥
10530
नहि तेषाममा चन नाध्वसु वारणेषु ।
ईशे रिपुरघशंसः ॥2॥
आदित्य-आश्रित जो रहते हैं उनका अहित नहीं हो सकता ।
आसुरी शक्ति निर्बल होती है भक्त की बढ जाती है क्षमता ॥2॥
10531
यस्मै पुत्रासो अदितेः प्र जीवसे मत् र्याय ।
ज्योतिर्यच्छन्त्यजस्त्रम् ॥3॥
अदिति -सुत देते जिसे सुरक्षा पावन पथ पर बढता जाता है ।
रिपु उसका निर्बल होता है वह तेजस्वी बन जाता है ॥3॥
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महि त्रीणामवोSस्तु द्युक्षं मित्रस्यार्यम्णः ।
दुराधर्षं वरुणस्य ॥1॥
हे प्रकाश - पुँज ऊर्जा के स्वामी कृपया हमें सुरक्षा दें ।
हम निज षड् रिपुओं को जीतें समर्थ बनें यह शिक्षा दें ॥1॥
10530
नहि तेषाममा चन नाध्वसु वारणेषु ।
ईशे रिपुरघशंसः ॥2॥
आदित्य-आश्रित जो रहते हैं उनका अहित नहीं हो सकता ।
आसुरी शक्ति निर्बल होती है भक्त की बढ जाती है क्षमता ॥2॥
10531
यस्मै पुत्रासो अदितेः प्र जीवसे मत् र्याय ।
ज्योतिर्यच्छन्त्यजस्त्रम् ॥3॥
अदिति -सुत देते जिसे सुरक्षा पावन पथ पर बढता जाता है ।
रिपु उसका निर्बल होता है वह तेजस्वी बन जाता है ॥3॥
ऊर्जा चक्र हमारी सुरक्षा करे।
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