[ ऋषि- जय । देवता- इन्द्र । छन्द - त्रिष्टुप । ]
10514
प्र ससाहिषे पुरुहूत शत्रूञ्जयेष्ठस्ते शुष्म इह रातिरस्तु ।
इन्द्रा भर दक्षिणेना वसूनि पतिः सिन्धूनामसि रेवतीनाम् ॥1॥
हे इन्द्र - देव तुम तेजस्वी हो तुमसे मिलता है अनुदान ।
तुम तो वैभव के अधिपति हो विविध - विभव का दे दो दान ॥1॥
10515
मृगो न भीमः कुचरो गिविष्ठा: परावत आ जगन्था परस्याः।
सृकं संशाय पविमिन्द्र तिग्मं वि शत्रून्ताळिह वि मृधों नुदस्व॥2॥
हे इन्द्र - देव हे वज्र - हस्त इन्द्र - प्रस्थ से बाहर आओ ।
सिंह के सदृश साहसी हो रिपु - दमन करो और हमें बचाओ ॥2॥
10516
इन्द्र क्षत्रमभि वाममोजोSजायथा वृषभ चषणीनाम् ।
अपानुदो जनममित्रयन्तमुरुं देवेभ्यो अकृणोरु लोकम् ॥3॥
हे इन्द्र - देव तुम समर्थ हो रिपुओं से रक्षा करो हमारी ।
तुमने स्वर्ग रचा है सुन्दर अब इच्छा पूरी करो हमारी ॥3॥
10514
प्र ससाहिषे पुरुहूत शत्रूञ्जयेष्ठस्ते शुष्म इह रातिरस्तु ।
इन्द्रा भर दक्षिणेना वसूनि पतिः सिन्धूनामसि रेवतीनाम् ॥1॥
हे इन्द्र - देव तुम तेजस्वी हो तुमसे मिलता है अनुदान ।
तुम तो वैभव के अधिपति हो विविध - विभव का दे दो दान ॥1॥
10515
मृगो न भीमः कुचरो गिविष्ठा: परावत आ जगन्था परस्याः।
सृकं संशाय पविमिन्द्र तिग्मं वि शत्रून्ताळिह वि मृधों नुदस्व॥2॥
हे इन्द्र - देव हे वज्र - हस्त इन्द्र - प्रस्थ से बाहर आओ ।
सिंह के सदृश साहसी हो रिपु - दमन करो और हमें बचाओ ॥2॥
10516
इन्द्र क्षत्रमभि वाममोजोSजायथा वृषभ चषणीनाम् ।
अपानुदो जनममित्रयन्तमुरुं देवेभ्यो अकृणोरु लोकम् ॥3॥
हे इन्द्र - देव तुम समर्थ हो रिपुओं से रक्षा करो हमारी ।
तुमने स्वर्ग रचा है सुन्दर अब इच्छा पूरी करो हमारी ॥3॥
राजधर्म का वहन करें इन्द्र
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