[ऋषि-ध्रुव आङ्गिरस । देवता- राजा । छन्द -अनुष्टुप ।]
10486
आ त्वाहार्षमन्तरेधि ध्रुवस्तिष्ठाविचाचलिः ।
विशस्त्वा सर्वा वाञ्छन्तु मा त्वद्राष्ट्रमधि भ्रशत् ॥1॥
प्रजातंत्र में जन - राजा है उसे सब पर अंकुश रखना है ।
देश का अहित न होने पाए उसे इस चिंतन पर चलना है ॥1॥
10487
इहैवैधि माप च्योष्ठा: पर्वत इवाविचाचलिः ।
इन्द्र इवेह ध्रुवस्तिष्ठेह राष्ट्रमु धारय ॥2॥
हे प्रजा तुम्हीं तो राजा हो कर्तव्य - परायण बन जाओ ।
सूर्य समान अटल रहकर तुम राष्ट्र -प्रगति में जुट जाओ ॥2॥
10488
इममिन्द्रो अदीधरद् ध्रुवं ध्रुवेण हविषा ।
तस्मै सोमो अधि ब्रवत्तस्मा उ ब्रह्मणस्पतिः ॥3॥
जनता जागरूक हो यदि तो देश में स्थिरता आती है ।
जग में उसका जस बढता है जनता जनप्रिय बन जाती है ॥3॥
10489
ध्रुवा द्यौर्ध्रुवा पृथिवी ध्रुवासः पर्वता इमे ।
ध्रुवं विश्वमिदं जगद् ध्रुवो राजा विशामयम् ॥4॥
ध्रुव- सम अटल रहे यह धरती प्रजा के हाथ में ही सत्ता हो ।
सबका हो अधिकार बराबर वाशिंगटन हो या कलकत्ता हो ॥4॥
10490
ध्रुवं ते राजा वरुणो ध्रुवं देवो बृहस्पतिः ।
ध्रुवं त इन्द्रश्चाग्निश्च राष्टं धारयतां ध्रुवम् ॥5॥
कृपा रहे नित वरुण- देव की बृहस्पति दें उत्तम ज्ञान ।
अग्नि - देव से यह विनती है स्थिर हो मेरा राष्ट्र - महान ॥5॥
10491
ध्रुवं ध्रुवेण हविषाभि सोमं मृशामसि ।
अथो त इन्द्रः केवलीर्विशो बलिहृतस्करत् ॥6॥
सोम - देव आशीष हमें दें बढ जाए भारत- स्वाभिमान ।
देश के हित में जनता जागे सिरमौर बने फिर हिन्दुस्तान॥6॥
10486
आ त्वाहार्षमन्तरेधि ध्रुवस्तिष्ठाविचाचलिः ।
विशस्त्वा सर्वा वाञ्छन्तु मा त्वद्राष्ट्रमधि भ्रशत् ॥1॥
प्रजातंत्र में जन - राजा है उसे सब पर अंकुश रखना है ।
देश का अहित न होने पाए उसे इस चिंतन पर चलना है ॥1॥
10487
इहैवैधि माप च्योष्ठा: पर्वत इवाविचाचलिः ।
इन्द्र इवेह ध्रुवस्तिष्ठेह राष्ट्रमु धारय ॥2॥
हे प्रजा तुम्हीं तो राजा हो कर्तव्य - परायण बन जाओ ।
सूर्य समान अटल रहकर तुम राष्ट्र -प्रगति में जुट जाओ ॥2॥
10488
इममिन्द्रो अदीधरद् ध्रुवं ध्रुवेण हविषा ।
तस्मै सोमो अधि ब्रवत्तस्मा उ ब्रह्मणस्पतिः ॥3॥
जनता जागरूक हो यदि तो देश में स्थिरता आती है ।
जग में उसका जस बढता है जनता जनप्रिय बन जाती है ॥3॥
10489
ध्रुवा द्यौर्ध्रुवा पृथिवी ध्रुवासः पर्वता इमे ।
ध्रुवं विश्वमिदं जगद् ध्रुवो राजा विशामयम् ॥4॥
ध्रुव- सम अटल रहे यह धरती प्रजा के हाथ में ही सत्ता हो ।
सबका हो अधिकार बराबर वाशिंगटन हो या कलकत्ता हो ॥4॥
10490
ध्रुवं ते राजा वरुणो ध्रुवं देवो बृहस्पतिः ।
ध्रुवं त इन्द्रश्चाग्निश्च राष्टं धारयतां ध्रुवम् ॥5॥
कृपा रहे नित वरुण- देव की बृहस्पति दें उत्तम ज्ञान ।
अग्नि - देव से यह विनती है स्थिर हो मेरा राष्ट्र - महान ॥5॥
10491
ध्रुवं ध्रुवेण हविषाभि सोमं मृशामसि ।
अथो त इन्द्रः केवलीर्विशो बलिहृतस्करत् ॥6॥
सोम - देव आशीष हमें दें बढ जाए भारत- स्वाभिमान ।
देश के हित में जनता जागे सिरमौर बने फिर हिन्दुस्तान॥6॥
राजा की मर्यादायें हैं, निष्ठायें हैं।
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