Saturday, 12 October 2013

सूक्त - 186

[ ऋषि - उल वातायन । देवता - वायु । छन्द -गायत्री । ]

10532
वात आ वातु भेषजं शम्भु मयोभु नो हृदे ।
प्र     ण       आयूँषि             तारिषत् ॥1॥

जो औषधि हमें शान्ति दे सुख दे वह उपलब्ध हमें हो जाये ।
हे वायु-देव विनती करते हैं औषधियॉं पुनर्नवा बन जाये ॥1॥

10533
उत  वात पितासि न उत भ्रातोत नः सखा ।
स        नो         जीवातवे           कृधि ॥2॥

हे पवन-देव तुम पिता-तुल्य हो बंधु-तुल्य हो मित्र तुल्य ।
जीवन-रक्षक ओखद दे दो जीवन बन जाये सुधा-तुल्य ॥2॥

10534
यददो वात ते गृहे3 मृतस्य निधिर्हितः ।
ततो         नो        देहि        जीवसे ॥3॥

प्रवाह - मान हे पवन - देव तुम प्राण - पवन के हो भण्डार ।
पाथेय - प्राण पावन-पथ-पर प्रदान करो अमृत-आगार ॥3॥
 

1 comment:

  1. प्राणवायु से सब ऊर्जस्वित हो, सुन्दर अनुवाद

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