[ ऋषि - उल वातायन । देवता - वायु । छन्द -गायत्री । ]
10532
वात आ वातु भेषजं शम्भु मयोभु नो हृदे ।
प्र ण आयूँषि तारिषत् ॥1॥
जो औषधि हमें शान्ति दे सुख दे वह उपलब्ध हमें हो जाये ।
हे वायु-देव विनती करते हैं औषधियॉं पुनर्नवा बन जाये ॥1॥
10533
उत वात पितासि न उत भ्रातोत नः सखा ।
स नो जीवातवे कृधि ॥2॥
हे पवन-देव तुम पिता-तुल्य हो बंधु-तुल्य हो मित्र तुल्य ।
जीवन-रक्षक ओखद दे दो जीवन बन जाये सुधा-तुल्य ॥2॥
10534
यददो वात ते गृहे3 मृतस्य निधिर्हितः ।
ततो नो देहि जीवसे ॥3॥
प्रवाह - मान हे पवन - देव तुम प्राण - पवन के हो भण्डार ।
पाथेय - प्राण पावन-पथ-पर प्रदान करो अमृत-आगार ॥3॥
10532
वात आ वातु भेषजं शम्भु मयोभु नो हृदे ।
प्र ण आयूँषि तारिषत् ॥1॥
जो औषधि हमें शान्ति दे सुख दे वह उपलब्ध हमें हो जाये ।
हे वायु-देव विनती करते हैं औषधियॉं पुनर्नवा बन जाये ॥1॥
10533
उत वात पितासि न उत भ्रातोत नः सखा ।
स नो जीवातवे कृधि ॥2॥
हे पवन-देव तुम पिता-तुल्य हो बंधु-तुल्य हो मित्र तुल्य ।
जीवन-रक्षक ओखद दे दो जीवन बन जाये सुधा-तुल्य ॥2॥
10534
यददो वात ते गृहे3 मृतस्य निधिर्हितः ।
ततो नो देहि जीवसे ॥3॥
प्रवाह - मान हे पवन - देव तुम प्राण - पवन के हो भण्डार ।
पाथेय - प्राण पावन-पथ-पर प्रदान करो अमृत-आगार ॥3॥
प्राणवायु से सब ऊर्जस्वित हो, सुन्दर अनुवाद
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