[ ऋषि - प्रजावान प्राजापत्य । देवता - यजमान, यजमान-पत्नी, होत्र । ]
10523
अपश्यं त्वा मनसा चेकितानं तपसो जातं तपसो विभूतम् ।
इह प्रजामिह रयिं रराणः प्र जायस्व प्रजया पुत्रकाम ॥1॥
हे मनुज तपस्वी और यशस्वी तुम शुभ कर्मों के ज्ञाता हो ।
इस लोक में धन-संतति पाओ वह पाओ जो मन भाता हो॥1॥
10524
अपश्यं त्वा मनसा दीध्यानां स्वायां तनू ऋत्व्ये नाधमानाम् ।
उप मामुच्चा युवतिर्बभूया: प्र जायस्व प्रजया पुत्रकामे ॥2॥
हे नारी तुम रूपवती हो मैं सहृदय आमंत्रित करता हूँ ।
मातृत्व - पूर्ण जीवन हो तेरा मैं यही निवेदन करता हूँ ॥2॥
10525
अहं गर्भमदधामोषधीष्वहं विश्वेषु भुवनेष्वन्तः ।
अहं प्रजा अजनयं पृथिव्यामहं जनिभ्यो अपरीषु पुत्रान् ॥3॥
नर और नारी जब मिलते हैं तब गर्भाधान हुआ करता है ।
वनस्पतियों और सब प्राणी का वंश- वृक्ष बढने लगता है ॥3॥
10523
अपश्यं त्वा मनसा चेकितानं तपसो जातं तपसो विभूतम् ।
इह प्रजामिह रयिं रराणः प्र जायस्व प्रजया पुत्रकाम ॥1॥
हे मनुज तपस्वी और यशस्वी तुम शुभ कर्मों के ज्ञाता हो ।
इस लोक में धन-संतति पाओ वह पाओ जो मन भाता हो॥1॥
10524
अपश्यं त्वा मनसा दीध्यानां स्वायां तनू ऋत्व्ये नाधमानाम् ।
उप मामुच्चा युवतिर्बभूया: प्र जायस्व प्रजया पुत्रकामे ॥2॥
हे नारी तुम रूपवती हो मैं सहृदय आमंत्रित करता हूँ ।
मातृत्व - पूर्ण जीवन हो तेरा मैं यही निवेदन करता हूँ ॥2॥
10525
अहं गर्भमदधामोषधीष्वहं विश्वेषु भुवनेष्वन्तः ।
अहं प्रजा अजनयं पृथिव्यामहं जनिभ्यो अपरीषु पुत्रान् ॥3॥
नर और नारी जब मिलते हैं तब गर्भाधान हुआ करता है ।
वनस्पतियों और सब प्राणी का वंश- वृक्ष बढने लगता है ॥3॥
एक संतुलन, पथ प्रशस्त है।
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